मैसूर हिरियन्ना दार्शनिक, संस्कृत विद्वान और भारतीय सौंदर्यशास्त्र के विशेषज्ञ थे। उनका जन्म मैसूर में हुआ था। वहीं उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा हुई, फिर उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कालेज से बीए और एमए किया था। उनकी पहली नौकरी मैसूर ओरिएंटल लाइब्रेरी (अब ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट) में पुस्तकाध्यक्ष के रूप में हुई थी। उन्होंने 1653 मुद्रित कार्यों और 1358 पांडुलिपियों को संग्रहीत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनमें से कई पांडुलिपियां प्राचीन संस्कृत और कन्नड़ में थीं।
मैसूर विश्वविद्यालय के पहले कुलपति एचवी नंजुंदैया की सिफारिश पर हिरियन्ना को 1912 में महाराजा कालेज, मैसूर में संस्कृत में व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें 1914 में संस्कृत के सहायक प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया गया। वहीं एआर वाडिया से उनका संपर्क हुआ, जो दर्शनशास्त्र विभाग के प्रमुख थे। सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी उस समय वहां अध्यापक थे। दोनों विद्वानों ने भारतीय और पश्चिमी दर्शनशास्त्र के अध्ययन में अपनी गहन रुचि साझा की। राधाकृष्णन ने ही सुझाव दिया था कि एम. हिरियन्ना के ‘क्लास रूम नोट्स’ यानी कक्षा में पढ़ाने के लिए तैयार नोट्स को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाना चाहिए, जो अंतत: ‘भारतीय दर्शन की रूपरेखा’ नाम से प्रकाशित हुई।
हिरियन्ना ने ‘शिक्षण कला’ से लेकर ईशावास्योपनिषद, केनोपनिषद, कठोपनिषद, बृहदारण्यकोपनिषद पर बहुत गंभीरता से लिखा है। उन्हें संस्कृत भाषा (भाषाविज्ञान), संस्कृत गद्य और पद्य, तुलनात्मक व्याकरण, भारत में वैदिक और उत्तर-वैदिक दार्शनिक विचार और दर्शन की विभिन्न शाखाओं- चार्वाक भौतिकवाद, बौद्ध दर्शन आदि में गहरी रुचि थी। 1939 में उनसे हैदराबाद में अखिल भारतीय दर्शन सम्मेलन की अध्यक्षता करने का अनुरोध किया गया था।
तुलनात्मक भाषाशास्त्र, साहित्य, अलंकार (भाषण के आंकड़े) और कई दर्शनों में हिरियन्ना का योगदान बहुत प्रामाणिक था। वे ‘स्वप्नवासवदत्तम’ का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिसका शीर्षक उन्होंने ‘द ड्रीम क्वीन’ रखा। अद्वैत पर उनकी रचनाएं ‘नैशकर्म्य-सिद्धि’, ‘इष्ट-सिद्धि’ और ‘वेदांत-सार’ सबसे प्रामाणिक मानी जाती हैं। पश्चिमी दार्शनिक सिद्धांतों को उन्होंने ‘मिशन आफ फिलासफी’ में बड़े शानदार ढंग से स्पष्ट किया है।
उन्होंने ‘ड्यूटी’, ‘आइडियल आफ परफेक्शन’, ‘नैतिक अच्छा बनाम गैर-नैतिक अच्छा’ पर इमैनुएल कांट के विचारों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने सुकरात और प्लेटो का तुलनात्मक अध्ययन किया था। उपनिषदों का उनका अंग्रेजी अनुवाद तीन दशकों के उनके अथक परिश्रम का परिणाम था। भारतीय सौंदर्यशास्त्र पर उनकी रचनाएं इस विषय पर आधुनिक भारतीय लेखन और दृष्टिकोण का आधार बनती हैं।
भारतीय दर्शनशास्त्र के अध्ययन में मैसूर हिरियन्ना का योगदान महत्त्वपूर्ण है। उनकी कृतियां आज भी दुनिया भर के पुस्तकालयों में अनिवार्य रूप से जगह पाती हैं। उपनिषदों का उनका अनुवाद अब तक किए गए कुछ बेहतरीन अनुवादों में है। संस्कृत भाषा और साहित्य अध्ययन की दुनिया में उनके ज्ञान और योगदान पर उन्हें मद्रास संस्कृत अकादमी ने ‘संस्कृतसेवाधुरिना’ की उपाधि से सम्मानित किया था। उनके छात्रों और समकालीनों ने 1952 में उनके सम्मान में ‘प्रो एम. हिरियाना फेलिसिटेशन वाल्यूम’ शीर्षक से एक खंड निकाला था। उनकी जन्म शताब्दी को यादगार बनाने के लिए, 1972 में एक जन्म शताब्दी स्मरणोत्सव खंड प्रकाशित किया गया था। इन दोनों संस्करणों में कुछ विद्वानों के लेख शामिल हैं, जो हिरियन्ना के प्रिय विषयों पर हैं।