सिराज अहमद
कक्षा में सभी बच्चे शांत भाव से बैठे मास्टरजी को ध्यान से सुन रहे थे। तभी अचानक से स्कूल की घंटी टनटना के बज उठी। तेज हाथों से किताबें बस्ते के अंदर रखी जाने लगीं। और घर जाने के लिए हर कक्षा से शोर करता हुआ बच्चो का झुंड निकल कर स्कूल के फाटक की तरफ लपक पड़ा। लेकिन फाटक तो बंद था। पास पहुंच कर बच्चे उसके खुलने का इंतजार करने लगे।
आज समय से पहले ही घंटी बज गई थी। सभी हैरत में थे। अभी तो दो पीरियड बाकी थे। तभी दौड़ता-भागता चपरासी वहां आ पहुंचा।
अब तक प्रधानाचार्य भी अपने कक्ष से बाहर आ चुके थे। उनके पूछने पर पता चला कि घंटी चपरासी ने नहीं बजाई। वह तो रजिस्टर पहुंचाने दूसरे कक्ष तक गया था।
फिर घंटी किसने बजाई? आखिर यह किसकी शरारत थी ?
प्रधानाचार्य ने बच्चों की तरफ घूरते हुए पूछा-
जिसने यह हरकत की हो, साफ साफ बता दे वर्ना आज किसी को घर जाने नहीं दिया जाएगा।
सभी कक्षा के बच्चो को मैदान में बुलाकर पूछा गया लेकिन किसी ने कुबूल नहीं किया।
ठीक है, आज कोई भी घर नहीं जाएगा। कोई जवाब न पाकर प्रधानाचार्य अपने कक्ष की ओर मुड़ गए।
बच्चों में आपस में कानाफूसी शुरू हो गई।
मुझे लगता है, यह इमरान ने किया है, वह कितना शैतान है! हो न हो, यह उसी की शरारत है। रजिया बोली।
लेकिन वह तो आज स्कूल ही नहीं आया है। अमित ने बताया।
पंकज भी हो सकता है। वह कितनी बार मास्टरजी से अपनी शरारतों के लिए पिट चुका है। दूसरे कक्षा में भी बच्चे समूह बनाकर बाते कर रहे थे। उसी में से एक ने कहा।
नहीं नहीं, उसने ऐसा पहले कभी नहीं किया। इम्तियाज ने उसका पक्ष लेते हुए कहा।
लेकिन यह पता नहीं चल पाया कि किसने घंटी बजाई।
तो क्या आज हम घर नहीं जा पाएंगे। प्रियंका ने मास्टरजी से मुंह लटकाकर पूछा।
जब तक यह नहीं पता चल जाता कि घंटी किसने बजाई, तब तक फाटक नहीं खुलेगा। मास्टरजी नाक पर चश्मा चढ़ाते हुए बोले।
कक्षा फिर से शुरू हो गई। एक-एक कर के सारे पीरियड भी खत्म हो गए। छुट्टी का समय भी आ गया लेकिन आज प्रधानाचार्य के आदेशानुसार चपरासी ने छुट्टी की घंटी नहीं बजाई।
कुछ ही देर में फिर बच्चों को मैदान में एकत्र किया गया। साथ ही साथ सभी शिक्षक भी शामिल हुए।
मैं पूछता हूँ कि घंटी किसने बजाई थी। प्रधानाचार्य ने तेज आवाज में सभी बच्चों की तरफ घूरते हुए दोबारा पूछा।
बच्चों को जैसे कोई सांप सूंघ गया। नजरें झुकाए सब के सब सावधान मुद्रा में जमे रहे। कोई कुछ न बोला।
प्रधानाचार्य गुस्से में लाल पीले हुए जा रहे थे।
तभी उसी बीच एक बार फिर से घंटी बज उठी।
टनटन टनटन टनटन।
चौंक कर एक साथ सभी घंटी की तरफ मुड़ पड़े।
एक नकलची बंदर था, जो छड़ी हाथ में लिए लगातार घंटी पीट रहा था।
ऐसा किसी ने सोचा ही न था।
उसे देखकर एकदम से बच्चो की हंसी से पूरा मैदान गूंज उठा। शोरगुल सुनकर बंदर भाग कर दूर जा बैठा।
यह वही बंदर था जो अक्सर स्कूल की इमारत के आसपास मंडराया करता था, कभी स्कूल की छत पर बैठा दिखता तो कभी मैदान में उछलता कूदता।
प्रधानाचार्य के साथ-साथ अध्यापकगण भी अपनी हंसी रोक न पाए।
स्कूल का फाटक खोल दिया गया। सभी बच्चे खुशी-खुशी अपने घर की ओर रवाना हो गए। आज सभी की जुबान पर नकलची बंदर की कहानी थी।