सर्वमंगल मिश्रा

कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग का वास होता है। स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक होता है पोषक आहार यानी संपूर्ण विटामिनयुक्त भोजन। भोजन हम सभी करते हैं। भोजन के अभाव में इंसान को कई बीमारियां घेर लेती हैं। रोगों का जमावड़ा शरीर में हो जाता है पर असर तन, मन और धन सब पर पड़ता है। यों तो जीवन भोजन के बिना संभव नहीं, लेकिन भोजन की कमी के ज्यादातर शिकार बच्चे और महिलाएं होते हैं। बच्चों की देखभाल तो उनके मां-बाप फिर भी कर लेते हैं। लेकिन उन महिलाओं की यह बीमारी दूर नहीं हो पाती जिनके ऊपर पूरे घर को संभालने का भार होता है। इसी कारण महिलाएं सबकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखते-रखते अपने स्वास्थ्य पर ध्यान ही नहीं दे पातीं या खुद के प्रति लापरवाह बनी रहती हैं।

ऐसे में कुपोषण महिलाओं में बढ़ता जाता है, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब होने लगता है और वक्त से पहले झुर्रियां, बुढ़ापा, मानसिक कमजोरी, थकान जैसे लक्षण उनके शरीर में दिखने लगते हैं। आज भले ही महिलाओं की जीवन शैली पुरुषों से थोड़ी मिलती जुलती हो गई है, पर एक समय था जब महिलाओं का समय अधिकतर चूल्हा-चौके में ही व्यतीत होता था। पहले महिलाएं आज की तरह घर बाहर काम करने नहीं जाती थीं। आज घर के बाहर उनका भी उतना समय ही व्यतीत होता है जितना पुरुषों का। कई कामकाजी महिलाएं आज भी दोनों दायित्व निभाती हैं। आर्थिक तंगी से जूझने के कारण अधिकतर महिलाएं रक्ताल्पता का शिकार हो जाती हैं। ऐसा भी देखा जाता है कि जब परिवार किसी वजह से आर्थिक तंगी या किसी मानसिक उलझन से गुजरता है तो ऐसे वक्त में महिलाएं भोजन का ही सर्वप्रथम त्याग कर देती हैं।
भूखे पेट रहने से स्नायु तंत्र प्रभावित होता है। दिमाग के साथ साथ शरीर की अन्य ग्रंथियों पर भी इसका असर पड़ता है। जब यही प्रक्रिया जीवन में लगातार चलने लगती है तो उसका असर व्यापक होने लगता है। मानसिक उलझन बढ़ने लगती है। याददाश्त पर असर पड़ने लगता है। शरीर में थकान, कमजोरी जैसी चीजें असर करने लगती हैं। हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। ग्रंथियां कमजोर होनी लगती हैं। जिसके फलस्वरुप तरह तरह की बीमारियां वक्त से पहले घर कर लेती हैं। महिलाएं जाने अनजाने घुटनों के दर्द, तंत्रिक तंत्र आदि की कमजोरी से ग्रसित हो जाती हैं।
गांव में रहने वाली महिलाओं की जीवन शैली शहरों से हटकर होती है। परंपरागत और पुरानी शैली के अनुसार आज भी बहुत से घरों में बड़े बजुर्गों, बच्चों और घर के बाकी सदस्यों को खिलाने के बाद ही महिलाएं स्वयं खाने बैठती हैं। खाना है तो ठीक वरना जो बचा हुआ खाना खाकर संतुष्ट हो जाती हैं। आमतौर पर किसानों का परिवार ग्रामीण इलाकों में रहता है। फसल अच्छी हुई तो किसान-परिवार का पेट भर पाता है। वर्ना गरीबी और भुखमरी की चपेट में महिलाओं का जीवन शेष हो जाता है। महिलाओं में खून की कमी जल्दी होती है। एक पहलू और ध्यान देने योग्य है। जरूरी नहीं कि दुबले पतले लोग ही कुपोषण का शिकार होते हैं। मोटे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। कई बार गर्भधारण के बाद भी महिलाओं में यह बीमारी पाई जाती है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाली 56 प्रतिशत महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं।१