जीवन की साधारण से साधारण घटना भी हमें बड़ी सीख दे सकती है। महापुरुषों के जीवन से जुड़े ऐसे कई बड़े प्रसंग हैं, जिनमें उन्होंने एक सामान्य सी घटना को भी इतना महत्त्वपूर्ण माना कि वह लोगों के लिए जिंदगी का एक बड़ा सबक बन गया। गौतम बुद्ध ऐसे ही एक महापुरुष हैं, जिनके प्रति लोगों की आस्था का आलम यह रहा कि वे उन्हें भगवान मानने लगे।

बुद्ध के जीवन की ऐसी ही घटना बताई जाती है जब वे किसी उपवन में एक फलदार पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे। उसी उपवन में कुछ बच्चे खेलकूद रहे थे। इन बच्चों में से कुछ बच्चे वहां पहुंच गए जहां बुद्ध विश्राम कर रहे थे। ये बच्चे पेड़ पर पत्थर मारकर फल तोड़ने लगे। तभी एक पत्थर बुद्ध के सिर पर लगा और उससे खून बहने लगा।

सिर पर चोट लगी तो बुद्ध की आंखों में आंसू छलछला गए। बच्चों ने यह देखा तो उन्हें अपनी गलती का भान हुआ और वे काफी भयभीत हो गए। उन्हें लगा कि अब बुद्ध उन्हें भला-बुरा कहेंगे। डर के मारे बच्चों ने महात्मा बुद्ध के चरण पकड़ लिए और उनसे क्षमा याचना करने लगे।

उनमें से एक बच्चे ने कहा, ‘हमसे भारी भूल हो गई है, हमारी वजह से आपको पत्थर लगा और आपकी आंखें भर आईं। हमें माफ कर दें। अब हमसे ऐसी गलती नहीं होगी!’ इस पर बुद्ध ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘बच्चों, मैं इसलिए दुखी हूं कि तुमने पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे फल दिए, लेकिन मुझे मारने पर मैं तुम्हें सिर्फ भय दे सका।’

बच्चों के लिए महात्मा बुद्ध की बातें एक ऐसे सबक की तरह थीं, जो वे आजीवन नहीं भूल सकते थे। उन्हें उनकी बातें सुनकर अहसास हुआ कि महापुरुषों का जीवन केवल परमार्थ के लिए ही होता है, खुद को तकलीफ पहुंचने के बावजूद वे सिर्फ दूसरों की खुशी के बारे में ही सोचते हैं और ऐसे लोग ही महामानव कहलाते हैं।