मलयालम, संस्कृत और हिंदी भाषा में इसे चंदन कहते हैं। कन्नड़ में श्रीगंधा और गुजराती में सुकेत। वनस्पति शास्त्री इसे सेंटलम अल्यम कहते हैं, जो सेंटलेसी परिवार का सदस्य है। इसकी बीस जातियां और भी होती हैं मगर भारत में पाई जाने वाली चंदन जाति ही सर्वश्रेष्ठ है और व्यापारिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भी है। काफी समय तक चंदन का पौधा भारत का मूलवासी माना गया मगर अब वैज्ञानिकों के अनुसार चंदन इंडोनेशिया का मूलवासी है। वहां पर तीन प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं।
वैज्ञानिकों ने चंदन वृक्ष के स्वभाव और दूसरी बातों की जानकारी प्राप्त कर ली है। यह एक सदाबहार पेड़ है जो मूल रूप से परजीवी होता है। इस पौधे की जड़ें हॉस्टोरिया के सहारे दूसरे पेड़ों की जड़ों से जुड़कर भोजन, पानी और खनिज पाती रहती हंै। चंदन के परपोषकों में नागफनी, नीम, सिरीस, अमलतास, हरड़ आदि पेड़ों की जड़ें मुख्य हैं। चंदन इन पेड़ों के आसपास ही उगते हैं। स्वयं चंदन का वन नहीं होता।
चंदन के वन में कोई सुगंध या खुशबू नहीं आती है। चंदन के पेड़ में साल में दो बार नई कोपलें, फल और फूल आते है। बरसात के पहले और बरसात के बाद चंदन के पेड़ फलों और फूलों से लदकर पूरे वन को एक नई आभा से युक्त कर देते हैं।
चंदन के हरे पेड़ में खुशबू नहीं होती है। वास्तव में चंदन के पेड़ की पक्की लकड़ी जिसे हीरा कहा जाता है, में ही खुशबू होती है। इसी लकड़ी का प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है। दक्षिण भारत में चंदन बहुतायत से पैदा होता है। इसी प्रकार पेसिफिक चंदन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में पैदा होता है। चीन, मलेशिया और इंडोनेशिया में भी चंदन पाया जाता है। चंदन चार प्रकार का माना जाता है। सफेद, लाल, मयूर और नाग चंदन।
इससे मिलता जुलता एक और पौधा होता है टेरोकार्पस सेंटलाइनस, मगर यह चंदन नहीं है। चंदन का पेड़ कम वर्षा वाली पथरीली जमीन में जल्दी से बढ़ता है और इस जमीन पर लगे पेड़ में हीरा (कठोर लकड़ी) और तेल की मात्रा ज्यादा होती है।
चंदन की लकड़ी का आसवन करके तेल निकाला जाता है। जड़ों में तने से ज्यादा तेल होता है। लकड़ी में तेल दस प्रतिशत तक होता है। 1916 में बंग्लुरू में चंदन से तेल निकालने का पहला कारखाना लगाया गया। चंदन के तेल का निर्यात फ्रांस, अमेरिका, जापान, सिंगापुर, इटली, ब्रिटेन आदि देशों को किया जाता है। भारत में चंदन का तेल सौंदर्य प्रसाधन के रूप में मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, कन्नौज, लखनऊ, कानपुर आदि में खपता है। लगभग संपूर्ण तेल सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त होता है। एक किलो तेल लगभग दो हजार रुपए में बिकता है और निर्यात से प्रतिवर्ष करोड़ो रुपया प्राप्त होता है।
आयुर्वेद में चंदन को शीतल, शक्तिवर्धक, दंतक्षयनाशक और शरीर को शक्ति देने वाला माना गया है। चंदनासव, चंदन का शरबत आदि पिया जाता है। स्त्रियों के आलेपन, शृंगार, सुगंध और प्रसाधन के लिए चंदन का उपयोग ईसा के दो हजार वर्ष पूर्व से ही होता रहा है। संस्कृत साहित्य में चंदन का अनेक बार उल्लेख हुआ है। चंदन की लकड़ी का उपयोग नक्काशी के सुंदर काम के लिए भी किया जाता है। नक्काशी से सुंदर, कलात्मक मूर्तियां, खिलौने और दूसरे सजावटी सामान वर्षों से भारत में बनते और बिकते रहे हैं।
मैसूर, सागर, भरतपुर और काठियावाड़ में इस हस्तशिल्प के कारीगर आज भी अपना हस्तकौशल दिखा रहे हैं। भारत में लगभग आठ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में चंदन की खेती होती है। चंदन की लकड़ी की तस्करी भी होती है। चंदन का पेड़, स्माइक रोग हो जाने पर जल्दी मर जाता है। मैसूर के राजा टीपू सुल्तान ने 1792 में ही चंदन को राज वृक्ष घोषित कर दिया था। वास्तव में चंदन हमारी संस्कृति का अंग रहा है। इसे सरकारी संरक्षण मिलना चाहिए। (यशवंत कोठारी)
