बारिश की रिमझिम फुहारें सावन के आने का संकेत दे रही थीं। राखी का त्योहार आने में कुछ ही दिन बाकी थे। पूर्वी को बेसब्री से इंतजार था। अपने छोटे भाई कमल और भाभी लता का। पूरे दो साल बाद आ रहे हैं वे। कहीं इस बार भी उनका आना टल न जाए। पूर्वी के मन में विचारों का सैलाब उमड़ने लगा। तभी मां की आवाज उसे सुनाई दी।
पूर्वी बिटिया आज स्कूल नहीं जाना है क्या?
मां तुम्हारा लाडेसर बेटा जो आ रहा है। इसलिए मैने दो दिनों की छुट्टी ले ली है। मुझे ढेर सी तैयारियां करनी है। पूर्वी खुशी से चहकते हुए बोली।
हां बेटी कितनी रौनक हो जाएगी घर में। अब गुड़िया एक साल की हो गई होगी। जब घुंघरू की पायल पहनकर पूरे घर में वह दौडेÞगी तो कितना अच्छा लगेगा।
मां तू अपनी नातिन के बारे में सोचो। मैं तो चली कमल के कमरे की सफाई करने।
पूर्वी ने कमल के बेडरूम को नया ही लुक दे दिया। चद्दर, परदे सब नए लगाए। ड्राइंग रूम पर टंगी बाबूजी की तस्वीर को जैसे ही पूजा उतारने लगी तभी मां ने बीच में ही रोक दिया।
अरे! क्या कर रही हो ?
नहीं मां तुम पिछली बातों को भूल गई क्या ? क्या कहा था लता भाभी ने- अरे ये ड्राइंग रूम है या कबाड़खाना। एक सप्ताह की ही तो बात है। बाद में वापस फोटो यहीं लगा देंगे। एडजस्ट करना सीखो। तुम्हारी बहू नए जमाने की है। कुछ देर के लिए सन्नाटा सा पसर गया।
पूर्वी ने माहौल बदलने के लिहाज से कहा- मां याद है तुम्हें। जब कमल हायर सेकेंडरी एक्जाम में मेरिट में आया था। तब बाबूजी ने पूरे मोहल्ले में लड्डू बंटवाए थे। सच ही कहा था उन्होंने कि उनका बेटा जरूर एक दिन बहुत बड़ा अफसर बनेगा और बाबूजी की बात सच भी निकली।
पर बेटी! तुम्हारे बाबूजी के सपने पूरे होते इसके पहले ही ईश्वर ने उन्हें अपने पास बुला लिया। आज वे जीवित होते तो कितने खुश होते। बाबूजी का सपना तुम्हारी बदौलत ही पूरा हुआ है। तूने बीमार मां की देखभाल के साथ ही ट्यूशन कर, कपडेÞ सिलकर अपने छोटे भाई को इंजीनियर बनाया। खुद की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। अपनी शादी तक नहीं की।
अरे मां, तुम भी ये क्या बीती बातें लेकर बैठ गर्इं। मेरा भाई पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो गया। उसकी गृहस्थी बस गई। और हमें क्या चाहिए। अच्छा बहुत बातें हो गई हैं। दवाई खाकर अब सो जाओ।
मां तो सो गई पर आज उसकी आंखों में नींद नहीं थी। लेटे-लेटे बंद आंखों में पुरानी बातें फिल्म की रील की तरह प्रतिबिंबित होने लगीं। बाबूजी के जाने के बाद मुसीबतें झेलकर कमल की पढ़ाई, मां की बीमारी की जिम्मेदारी उठाने के लिए उसे कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ीं, तब कहीं जाकर कमल इंजीनियर बन पाया। कितना खुश था वह जब उसका कैंपस सेलेक्शन हुआ। पोस्टिंग के लिए पुणे जाते वक्त बच्चों जैसा रोया था।
रुंधे गले से बस इतना ही कह पाया -दीदी, तुम्हारी तपस्या और आशीर्वाद की बदौलत ही मैं आज उस मुकाम पर पहुंचा हूं। बस एक बार वहां सेटेल हो जाऊं। तब तुम्हारी नौकरी छुड़वाकर अपने साथ ले जाऊंगा। बहुत नौकरी कर ली तुम अब आराम करोगी। पर कमल के पूना जाने के बाद कभी बंग्लुरू, दिल्ली बार-बार तबादला होता रहा। ऐसे में वह भला उन लोगों को कैसे अपने साथ रखता। दो-चार महीने में वह खुद आ जाता, ढेरों साड़ियां, उपहार, रुपया लेकर। रोज रात को फोन करके हाल-चाल पूछता पर दिल्ली जाने के बाद उसके फोन आने भी धीरे-धीरे कम होते गए। अपनी ही कंपनी के एक अधिकारी की बेटी से अचानक ही कोर्टमैरिज का समाचार उसने फोेन पर दिया तो मां को बहुत बड़ा सदमा पहुंचा।
न जाने कितने सपने संजोए थे मां ने अपने लाडले को लेकर। पर एक ही झटके में उनके तमाम सपने चूर-चूर हो गए। कुछ ही दिनों बाद कमल जब लता को लेकर घर आया तो उन्होंने जी-जान से बढ़-चढ़कर नई बहू का स्वागत किया। पर हाई-फाई सोसायटी की रहने वाली लता ने प्यार अपनेपन, रिश्तों की जरा भी कद्र नहीं की। दो दिन ही रहकर वे दोनों वापस दिल्ली चले गए। कमल चाह कर भी उन्हें अपने साथ नहीं ले जा सका।
शादी के बाद धीरे-धीरे कमल उनसे दूर होता गया। दो साल का लंबा अरसा बीत गया कमल को घर आए। हर बार कोई न कोई बहाना। सोचते -सोचते आंखों-आंखों में रात कैसे बीत गई पता ही नहीं चला। एक धूप का टुकड़ा खिडकी से झांक रहा था। उजाले की किरण मन में खुशी की लहर लेकर आई। देखा मां तो अभी सो रही है। चुपचाप पूजा उठकर ड्राइंग रूम में गई। फोन लगाया। फोन कमल ने ही उठाया।
हलो, मैं दीदी बोल रही हूं। मां की तबियत बहुत ज्यादा खराब है। अगर मिलना है तो कल की फ्लाइट से आ जाओ। प्लीज कम सून।
दूसरे ही दिन कमल लता और गुड़िया को लेकर आ पहुंचा। दरवाजे की घंटी बजते ही मां ने ही दरवाजा खोला तो कमल चौंक पड़ा।
नाराजगी भरे स्वर मे बोला-ये क्या दीदी। तुमने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला ? कितने घबरा गए थे हम। ऐसा मजाक क्यों किया ।
कमल ! ये मजाक नहीं है। अगर मैं ऐसा नहीं करती तो मेरे भाई तुम इस बार भी नहीं आते।
अरे राखी पर तो मैं आने ही वाला था। हमारा टिकट भी बुक था।
तुम क्या जानो राखी के मायने। दो साल से राखी के रेशमी धागे तुम्हारी कलाई का इंतजार कर रहें हैं। राखी क्या है। एक कच्चा धागा ही तो हैं ? टूट भी जाए तो क्या है? रुपया, पैसे, बीवी, पद, सोसायटी की चकाचौंध से तुम तो रिश्तों का मतलब ही भूल चुके हो। दो साल से मां की आंखें तुम्हारे इंतजार में पथरा गई हैं। क्या साड़ी, रुपया, पैसा भेज कर या फोन पर कभी कभार दो शब्द बोलकर भाई, बेटे होने का फर्ज अदा हो जाता हैं। रिश्तों को जोड़ा जा सकता है?
बस करो दीदी। मुझे माफ कर दो। मैं सचमुच बहक गया था। बाहरी चकाचौंध, पद, पैसे ने मुझे राह से भटका दिया। मां के त्याग, तुम्हारी तपस्या, स्नेह और मेहनत को मैं भूल ही गया था। मुझे माफ कर दो। अपने प्यारे लाडले छोटे भाई की आंखो में पश्चात्ताप के आंसुओं के छलकते सैलाब को देखते ही पूजा की आंखें भी आंसुओं से छलछला पड़ी।
बस अब बहुत हो गया। मैं तो तुम्हें सही राह दिखाना चाहती थी। मुझे पूरा विश्वास था कि मेरा भाई कमल इस कदर हमें कभी नहीं भूल सकता है।
दीदी इसमें कमल की ही गलती नहीं है। मैं भी बराबर की भागीदार हूं। प्लीज मुझे भी माफ कर दें। मैं आप लोंगों के प्यार और रिश्तों के मोल को समझ ही नहीं पाई। लता के स्वर में पश्चात्ताप की झलक थी।
रात को पूरे आंगन में दीपों की कतारें झिलमिला रही थी। पूरे घर में प्यार स्नेह, वह अपनेपन के दीप बरसों बाद जगमगा उठे।
कमल हंसते हुए बोला-अरे ये क्या मां। आपने तो राखी के त्योहार में सचमुच दीवाली ही मना डाली। रेशम की डोर का बंधन, रिश्तों के बंधन को अब और भी मजबूती का अहसास करा रहा था। ०
कहानीः स्नेह का बंधन
बारिश की रिमझिम फुहारें सावन के आने का संकेत दे रही थीं। राखी का त्योहार आने में कुछ ही दिन बाकी थे।
Written by सुधा तैलंग

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First published on: 14-08-2016 at 02:48 IST