सूर्यकुमार पांडेय

बेहतर हो इनका जीना
पैरों में टूटी चप्पल है, एक अंगौछा कंधे पर,
रामदीन घर से निकला है, सुबह दिहाड़ी धंधे पर।
दिन भर खट कर चार-पांच सौ रुपए अगर कमाएगा,
उनमें से सौ-दो सौ रख कर, बाकी घर भिजवाएगा।

सौ रुपयों का आटा-सब्जी वह खरीद कर लाएगा,
नमक, मसाले, हल्दी लेगा, फिर चूल्हा सुलगाएगा।
मेहनत की रोटी सेंकेगा और मजे से खाएगा,
सड़क किनारे खुली जगह पर, तब थक कर सो जाएगा।

ऐसे कितने रामदीन जो रोज मजूरी करते हैं,
हाड़तोड़ मेहनत करते, पर भाग न कभी संवरते हैं।
रोज कुआं खोदना और फिर रोज वही पानी पीना,
आओ हम सोचें, कल कैसे बेहतर हो इनका जीना।

शब्द-भेद
कुछ शब्द एक जैसे लगते हैं। इस तरह उन्हें लिखने में अक्सर गड़बड़ी हो जाती है। इससे बचने के लिए आइए उनके अर्थ जानते हुए उनका अंतर समझते हैं।

गुलाल / गुलेल
होली में उपयोग होने वाला रंगीन पाउडर, जिसे उड़या या गाल पर मला जाता है, उसे गुलाल कहते हैं। जबकि दो मुंह वाली लकड़ी में रबड़ बांध कर ढेला फेंकने वाले यंत्र को गुलेल कहते हैं, जिसे चिड़िया वगैरह मारने-भगाने में उपयोग किया जाता है।

जूठा / झूठा
खाने के बाद अगर कोई वस्तु थाली में बची रह जाती है, तो उसे जूठा कहते हैं। इसके अलावा जिस बर्तन में खाया जाता है, उसे भी जब तक धोकर साफ नहीं किया जाता, जूठा कहते हैं। जबकि झूठ बोलने वाले को झूठा कहते हैं।