विप्रम
ताराम पांडे सर ने प्राचार्य जी को बताया- ‘सर, हमारे विद्यार्थी अनुशासनहीन हो रहे हैं।’ प्राचार्य जी एकटक देखते रह गए। पांडे सर ने अपनी बात जारी रखी- ‘सर, कुछ विद्यार्थी बहुत शैतान हो गए हैं। उन्हें जरा शर्म नहीं। पीछे से सीटी बजाते हैं। मैंने एक-दो की अच्छी-खासी मरम्मत भी कर दी है। पर मानते ही नहीं। चिकने घड़े हैं सब। सर, पानी सिर से गुजर जाए, इससे पहले ही कुछ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।’ प्राचार्य जी चश्मा उतारते हुए बोले- ‘ठीक है, पांडेजी! आपने कम से कम यह शिकायत तो की। यहां और भी शिक्षक हैं। शायद उन्हें सीटी की आवाज सुनाई नहीं पड़ती। खैर, कुछ अवश्य किया जाएगा।’ अगले दिन विद्यालय के नोटिस बोर्ड पर सूचना थी: समस्त विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि मंगलवार को विद्यालय के सभागार में सीटी बजाने की एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इच्छुक विद्यार्थी अपने नाम श्री सीताराम पांडे, संस्कृत शिक्षक को लिखा दें। आदेशानुसार, प्रधानाचार्य। यह सूचना आग की तरह फैल गई। विद्यालय में एक कौतूहल का वातावरण पैदा हो गया। समस्त विद्यार्थी उत्सुकता में सीटी की किस्मों पर बातें करने लगे। बातों से ज्यादा तरह-तरह से सीटी बजाने लगे। मजे की बात यह हुई कि पहले कुछ विद्यार्थी ही सीटी बजाया करते थे। अब सीटी बजाने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो गई। विद्यालय में कभी इस ओर से, तो कभी उस ओर से सीटी बज उठती। वह दिन भी आ गया, जब सीटी बजाने की प्रतियोगिता का आयोजन होना था। समस्त विद्यार्थी एक-एक कर सभागार में जमा होने लगे। प्रार्थना और राष्ट्रगान के बाद बारी-बारी से कक्षाओं के क्रमानुसार प्रतियोगी विद्यार्थियों को स्टेज पर बुलाया गया। विद्यार्थी आते रहे और अपनी-अपनी सीटी का प्रदर्शन करके जाते रहे। इस दौरान कभी-कभी दर्शक-विद्यार्थियों में से भी कोई सीटी बजा देता था। अंतत: तीन विद्यार्थियों का चयन हुआ। हनीफ मोहम्मद कक्षा नौ, प्रथम आया। द्वितीय स्थान पर कक्षा आठवीं का भूरे लाल और अंतिम स्थान पर शमशेर सिंह गिल जो कक्षा सातवीं का छात्र था।
पांडे सर ने प्राचार्य को संबोधित करते हुए कहा- ‘मैं अब आदरणीय प्रधानाचार्य साहब से अनुरोध करता हूं कि वे अपने कर-कमलों से विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तकें दें और अपने दो शब्द प्रकट कर हमें आशीर्वाद देने का कष्ट करें।’प्राचार्य अपनी कुर्सी से उठे। एक नजर उन्होंने अध्यापकों की ओर डाली। फिर समस्त विद्यार्थियों को मंद-मंद मुस्कराते हुए देखा। फिर बोले- ‘मेरे विद्वान, योग्य अध्यापक साथियों और उपस्थित विद्यार्थियो! आज मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है कि हमने अपने विद्यालय में एक ऐसी प्रतियोगिता का आयोजन किया है जो न कभी सुनी गई और न कभी कहीं आयोजित की गई। सीटी बजाने की प्रतियोगिता किसी विद्यालय में भला क्यों की जाए? इसके अतिरिक्त अनेक विषय हैं। फिर भी मुझे लगा कि हमारे विद्यार्थी सीटी बजाने को बहुत लालायित रहते हैं। विद्यालय में रह-रह कर सीटी बजाया करते हैं। ऐसे में इस प्रतियोगिता का आयोजन करना परम आवश्यक हो गया था।’ प्राचार्य का भाषण चल रहा था। समस्त विद्यार्थी चुपचाप नजरें झुकाए सुन रहे थे- ‘सीटी बजाना कोई बुरी बात नहीं। तरन्नुम में सीटी बजाई जाए, मेरा मतलब सीटी में एक संगीत हो, लय हो तो उसका आनंद कुछ और है। संगीतमय सीटी मन को भाती है। बेसुरी और बेवक्त की सीटी का क्या मतलब? ऐसी सीटी बजाने वालों की वर्ग-बिरादरी का पता चलता है कि वे किस परिवार-खानदान से संबंध रखते हैं। वैसे सीटी तो चौकीदार-पहरेदार, कंडक्टर-गार्ड, सिपाही-रेफरी या आपके पीटीई सर भी बजाते हैं अपनी-अपनी सीटियों से। इन लोगों का सीटी बजाना अपने-अपने काम से जुड़ा है। दुख तो तब होता है जब हमारे विद्यार्थी चाहे-अनचाहे सीटी बजाते हैं।’
प्राचार्य ने अब एक नजर अध्यापकों की ओर घुमाई। तभी पांडे सर के एक इशारे पर सभी अध्यापकों ने बड़ी जोर के ताली बजा दी। प्राचार्य ने भी उनके साथ-साथ ताली बजा कर सभागार का वातावरण कुछ हल्का-फुल्का करना चाहा।सचमुच, समस्त विद्यार्थी प्रोत्साहित हो ताली बजाने लगे। प्राचार्य ने हाथों से इशारा करते हुए कहा- ‘शांत! शांत! देखा जाए तो, बच्चो! सीटी बजाना एक कला है, और एक कसरत भी। फिर भी मैं चाहूंगा कि सीटी बजाने से बचा जाए। जब भी सीटी बजाने को दिल करे तो मुंह से केवल सी-टी अक्षरों की रुक-रुक कर जोर से उच्चारण करें। सीटी शब्द स्वयं में एक अद्भुत अनुभव की अनुभूति देगा। यहां मैं आप सबको सख्त शब्दों में कहना चाहूंगा कि हमारे पास बजाने वाले समस्त विद्यार्थियों की पूरी सूची है। कहीं ऐसा न हो कि सीटी किसी ने बजाई और सजा मिले किसी और को। वैसे भी इस विद्यालय में केवल तीन सौ चौबीस विद्यार्थी सीटी बजाते हैं। सौ के लगभग विद्यार्थी संकोच-झिझकवश इस प्रतियोगिता में सम्मिलित न हुए हों। फिर भी सीटी बजाने वालों की संख्या इतनी नहीं है, जो समस्त विद्यालय का अनुशासन भंग कर दे।… अंत में आप सभी समझदार और आज्ञाकारी बच्चों को मैं दो शब्दों में कहूंगा- पीरियड हो या छुट्टी, सीटी से करो कुट्टी। हां तो, पांडेजी! अब एक-एक कर विजेताओं को पुकारिए।’ इतने में सबने देखा कि तीनों विजेता एक साथ स्टेज पर आ रहे हैं। तीनों प्राचार्य के सम्मुख आकर खड़े हो गए। हनीफ मोहम्मद ने हाथ जोड़ते हुए कहा- ‘सर, मुझे क्षमा कर दीजिए।’ उसके साथ ही भूरेलाल और शमशेर सिंह गिल भी बोले- ‘सर, हम वचन देते हैं कि आज से हम कभी भी सीटी नहीं बजाएंगे।’ उसी समय अन्य विद्यार्थीगण भी एक साथ बोल उठे- ‘हां, सर! हम भी प्रण लेते हैं। आज से सीटी बजाने की छुट्टी।’ प्राचार्य मंद-मंद मुस्कराते हुए जाने लगे तो पांडे सर ने टोका- ‘सर, इन विजेताओं को पुरस्कार स्वरूप ये पुस्तकें तो दे दीजिए।’
सचमुच, उस दिन के बाद कभी किसी ने विद्यालय में न सीटी बजाई न किसी ने सीटी की आवाज़ सुनी। ०