बरसात में मधुरिम ताल पानी से लबालब भर गया। कमलकुंज में खिले कमल नई उमंग में भरकर मुस्करा उठे। मधुरिम ताल के आसपास की हरियाली भी खुश होकर लहलहाने लगी।
ताल के किनारे गुलाब और कपास के दो पौधे पास-पास उगे हुए थे। सुहावने मौसम के कारण नारंगी गुलाब और वासंती कपास के फूलों की किलकारियों में नई पुलक थी। उनका सारा समय ऐसे ही हंसते-मुस्कराते, तितली, मधुमक्खियों और भौरों से बतियाते हुए गुजर जाता था। वे बहुत खुश थे। अचनाक भौंरों ने गुलाब के फूलों के साथ क्रूरता दिखानी आरंभ कर दी। वे गुलाबों का पराग तो चूसते ही, साथ में उनकी कोमल पंखुड़ियां भी तोड़कर ले जाते। गुलाब पीड़ा से कराह उठते। जब वे अपना विकृत चेहरा पानी में निहारते तो यह पीड़ा दोगुनी हो जाती।
वैसे तो कपास के फूल भी कोमल थे, लेकिन गुलाब की गंध बहुत अच्छी थी। भौंरे इनकी सुगंधित पंखुड़ियों का प्रयोग अपने बिस्तर को नरम और सुवासित करने के लिए करते थे। दूसरे दिन जब पंखुड़ियां बेकार हो जाती थीं तो वे ताजी पंखुड़ियां तोड़ने चले आते थे। इस प्रकार गुलाब के फूलों का सारा सुख-चैन छिन गया था। उनका जीना दूभर हो गया। वे हर समय रोते-कराहते रहते।कपास के फूलों से उनका दुख देखा नहीं जाता। उन्होंने भौंरो को बहुत प्रकार से समझाया, लेकिन वे किसी भी तरह से मानने को तैयार नहीं थे। काफी सोच-विचार के बाद उन्हें कुछ याद आया। तब उन्होंने भौंरों से प्रार्थना की, ‘प्यारे भाइयों! आप अपना बिस्तर नरम करने के लिए ही तो गुलाब की पंखुड़ियां नोचते हैं। आप नहीं जानते कि इससे उन्हें कितना कष्ट होता है। कृपया, हमारी बात मान लीजिए और हमारे साथियों को और अधिक मत सताइए।’
कुछ भौंरे उनकी बात सुनने के लिए तैयार हो गए। कपास के फूलों ने उनसे कहा, ‘आप लोग कुछ दिन और उसी तरह बिता लीजिए, जैसे पहले रहते थे। कुछ ही दिनों बाद हम नरम रुई के गुद्दे फाहों में बदल जाएंगे। ये फाहे ले जाकर आप लोग अपने-अपने बिस्तर सजा लीजिएगा।’गुलाब के फूल उनकी बातें सुन रहे थे। वे खुशी से झूम उठे। तभी कुछ भौंरों ने रुई के सुवासित न होने ही शिकायत करते हुए कपास के फूलों की बात मानना अस्वीकार कर दिया।गुलाब के फूलों को फिर धक्का लगा। लेकिन, तुरंत ही कपास के फूलों ने स्थिति संभाल ली। वे बोले, ‘सुगंध के लिए आप गुलाबों का पराग तो ले ही जाते हैं।’ ‘अच्छा ठीक है।’ भौंरों ने उनकी बात मान ली। गुलाब के फूलों ने कपास के फूलों को प्रसन्नतामिश्रित नयनों से देखकर धन्यवाद दिया। गुलाब की कलियों ने कपास के फूलों के सम्मान में मधुर गीत गुनगुनाए। अब उन्हें कोई भय नहीं था। ०
