सीमा श्रोत्रिय
एक बार की बात है। जंगल में एक बड़ी नदी थी। सभी जानवर उस नदी में पानी पीते थे। उन्हें नदी से पानी के लिए कोई मना नहीं करता था। जिस जंगल में यह नदी पड़ती थी, उस जंगल का राजा भी बड़ा दयालु था। वह कभी किसी बात के लिए भोली-भाली जनता को परेशान नहीं करता था। एक बार उस जंगल पर पड़ोस के राजा ने आक्रमण कर दिया। लड़ाई में अनेक जानवर मारे गए, धन-संपदा का नुकसान हुआ सो अलग। यह सोच कर राजा ने अपने पड़ोसी राजा को बुला कर पूछा- ‘आप क्या चाहते हैं? हमें युद्ध पसंद नहीं है। आप जैसा कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे।’
पड़ोसी राजा ने कहा- ‘हमें आपकी विशाल नदी की आवश्यकता है। हमें और कुछ नहीं चाहिए।’
जंगल के राजा ने कहा- ‘ठीक है, आप भी इस नदी का इस्तेमाल कीजिए और हम भी इसका पानी प्रयोग में लाते रहेंगे।’
पड़ोसी राजा ने कहा- ‘नहीं, जब यह नदी हमारी हो जाएगी, तब आप इसका पानी प्रयोग में नहीं लाएंगे।’
जंगल के राजा ने कहा- ‘पर इसमें आपको क्या आपत्ति है? फिर हमारी जनता क्या पीएगी?’
पड़ोसी राजा दुष्ट स्वाभाव का था। उसने कहा- ‘अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो फिर आपको हमारे साथ युद्ध करना पड़ेगा और युद्ध में जो जीतेगा, नदी उसी की हो जाएगी।’ जंगल का राजा अपनी प्रजा से बेहद प्यार करता था। वह किसी भी कीमत पर अपनी प्रजा को खोना नहीं चाहता था। उसने पड़ोसी राजा से दो दिन का समय मांगा। अब जंगल का राजा बहुत परेशान हो गया। उसने एकांत में चिंतन शुरू किया। तभी एकाएक उसे एक युक्ति सूझी। उसने सोचा, नदी पड़ोसी राजा को दे देते हैं। हम अपने लिए एक अलग पानी का स्रोत ढूंढ़ लेते हैं। मैं सबसे पहले पानी के लिए गड्ढा खोदना शुरू करूंगा। मुझे देख कर सारी प्रजा अपने आप आ जाएगी। जब मेरी जनता के साथ इतना बड़ा अन्याय हो रहा है, तो मुझे भी उसकी समस्या का हल निकालने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। जब राजा ने गड्ढा खोदना शुरू किया, तभी पड़ोसी राजा वहां से गुजरा। उसने राजा को गड्ढा खोदते हुए देखा, तो उसे विश्वास नहीं हुआ। उसने पास जाकर राजा से कारण जानना चाहा। जंगल के राजा ने कहा- ‘मैं अपनी जनता से बेहद प्यार करता हूं। अगर जनता मेरे कारण दुखी होती है, तो मैं यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं खुद मिट सकता हूं, लेकिन जनता को दुखी नहीं देख सकता।’ राजा के मुख से इतनी महान बातें सुन कर पड़ोसी राजा हिल गया और लज्जित महसूस करने लगा। उसने सोचा, यह कितना महान आदमी है कि अपनी प्रजा के दुख के लिए खुद को भी मिटा सकता है। युद्ध भी इसलिए नहीं होने दिया कि बेकसूर जनता मारी न जाए। और एक मैं इतना खुदगर्ज हूं कि पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता को भी इसकी प्रजा से छीन रहा हूं।
वह राजा के चरणों में गिर पड़ा। उसने कहा- ‘महाराज मुझे माफ कर दीजिए। मुझे कोई हक नहीं है, आपकी इस भोली-भाली जनता के हिस्से का पानी छीनने का। आप महान हैं और आपकी इस सोच ने आज मेरी आंखें खोल दी हैं। वाकई हम अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर दूसरों का हक छीनने में जरा भी नहीं हिचकते। आज से मैं कभी किसी के साथ लड़ाई नहीं करूंगा और मैं भी अपनी जनता के साथ अच्छा व्यवहार करूंगा। मैं आज ही अपने राज्य वापस लौट कर ऐसा काम करूंगा, जिससे जनता का प्यार मुझे मिले और मैं उनके अहित के लिए काम नहीं करूंगा।’ दूसरी तरफ, पश्चाताप भरी उसकी बातें सुन कर जंगल के राजा ने अपने सैनिकों को तुरंत आदेश दिया कि एक रास्ता पड़ोसी राजा के लिए नदी में से निकाल दो, ताकि उस देश की जनता भी नदी के पानी का उपयोग कर सके। पड़ोसी राजा जंगल के राजा की उदारता से बहुत प्रभावित हुआ।