आज हरीश के पिता का गुस्सा आसमान छू रहा था। सुबह-सुबह वे आज हरीश पर चिल्ला रहे थे-समझता नहीं नालायक, आइंदा उनके यहां गया तो ठीक नहीं होगा। पिता के गुस्से से हरीश भीतर तक डर गया था। पति को इतना जोर से चिल्लाता देख हरीश की मां बीच में ही बोली-क्यों, क्या बात है सुबह-सुबह क्या हाय-तौबा मचा रखी है आपने?
‘दीनू के बच्चे के साथ खेलने लगा है तुम्हारा लाडला। क्या इसे वही मिला है दोस्त बनाने को, कॉलोनी में और भी भले परिवारों के बालक हैं। लाख बार बता चुका हूं कि दीनू छोटी जाति का है।’ हरीश के पिता अब भी गुस्से में थे। यह सुनकर तो हरीश की मां भी चुप हो गई और हरीश के पास जाकर धीरे से बोली-हां बच्चे, वे लोग गंदे हैं। उनके पास नहीं खेला करते। तुम अच्छे बच्चे हो न। मां की इस चेतावनी ने हरीश को और भी चुप कर डरा दिया।
कुछ दिन बाद एक घटना और घटी। एक दिन दीनू का बेटा दौड़ा-दौड़ा आया और हरीश के घर के बाहर खड़ा होकर चीखकर बोला-बाबूजी, बाबूजी! हरीश का ऐक्सीडेंट हो गया। वह अभी स्कूल से लौट रहा था कि रास्ते में लॉरी वाला टक्कर मार कर उसे गिरा कर भाग गया। हरीश के पिता यह सुनते ही बाहर की ओर लपक कर आए और बोले-कहां है मेरा हरीश?
घबराइए नहीं बाबूजी, मैं उसे अस्पताल में भर्ती करा कर आपसे कहने आया हूं। डॉक्टर ने कहा है कि चिंता की कोई बात नहीं है। लेकिन फिर भी आप जल्दी चलिए। दीनू का बच्चा बोला।हरीश के माता-पिता दोनों दीनू के बच्चे के साथ अस्पताल की ओर दौड़े। अस्पताल पहुंचे तो देखा हरीश को ग्लूकोज चढ़ रहा था, वह अभी तक बेहोशी की स्थिति में था। माता-पिता उसकी यह दशा देखकर बहुत ही चिंता में थे, इस बीच वे बार-बार दीनू के बच्चे से जो उन्हीं के पास गुमसुम दुखी उदास सा खड़ा था, एक्सीडेंट के बारे में तरह-तरह के सवाल पूछ कर अपने मन हो धीरज दे रहे थे।
कुछ देर बाद हरीश को होश आया और वह मां-मां बोला। मां ने भाग कर उसे सीने से लगा लिया। लेकिन मां ने देखा कि हरीश की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे और रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसकी यह दशा देखकर मां की आंखों से भी आंसू बहने लगे और वह हरीश से बोली-क्या बात है हरीश! तुम रो क्यों रहे हो ? क्या कहीं दर्द ज्यादा है ?
हां मां दिल में दर्द है। सच मुझे दीनू काका के रामू ने बचा लिया।माता-पिता दोनों ने हरीश से नजरें चुरा लीं। पर हरीश फिर आगे बोला-आप तो कहते थे मैं उसके साथ नहीं रहूं, लेकिन मेरा सच्चा दोस्त तो वही है। मैंने उस दिन से उससे बोलना बंद कर दिया था। लेकिन अब मैं फिर उससे बोलूंगा, रामू को बुला दो मां। यह कह कर हरीश फिर रोने लगा।
माता-पिता ने पास खड़े रामू को अपने पास बुलाया और दुलार देकर हरीश के पास खड़ा किया। हरीश हंस भी रहा था और रो भी रहा था। उसकी इस स्थिति को देखकर रामू भी अपने दिल को नहीं रोक पाया और उसकी भी दोनों आंखें खुशी और दुख से भर आई। पास खड़े हरीश के माता-पिता की आंखों से आंसू बहा जा रहा था। आज उनकी आंखें खुल गई कि ऊंच-नीच जात-पांत कुछ नहीं होती। सब आदमी हैं और आदमी ही आदमी के काम आता है। हरीश और रामू सच्चे अर्थों में मित्र हैं तथा आदमी की जाति आदमी है और कुछ नहीं है।