शिव मोहन यादव
बिट्टी अभी दरवाजे पर खड़ी अपनी कुछ सहेलियों को स्कूल जाते देख रही थी। तभी दादी मां ने बुलाया- ‘बिट्टी, जरा देख तो दाल बन गई होगी, चूल्हे से उतार लो।’
बिट्टी दौड़ कर आई और उसने चमचे में लेकर दाल देखी, फिर चूल्हे से पतीले को उतार कर नीचे रख दिया। फिर आवाज लगाई- ‘भैया, आओ जल्दी! नाश्ता तैयार है, लो खा लो।’
‘थैंकू बिट्टी!’ कह कर वह नाश्ता करने लगा। थैंकू सुन कर वह मुस्करा दी और बोली- ‘जल्दी खाकर स्कूल जाओ। देखो चुर्री और कट्टर दोनों चले गए। राधा भी चली गई। तुम क्या छुट्टी के टाइम जाओगे?’
‘अरे नहीं बिट्टी, देखना मैं साइकिल से उनसे पहले स्कूल पहुंच जाऊंगा।’ लल्ला ने कहा।
‘अरे वाह भैया! तुम्हारी साइकिल न हुई हेलीकाप्टर हो गया।’ बिट्टी ने गर्दन मटकाते हुए कहा।
‘हां बिट्टी! मेरी तो साइकिल ही हेलीकाप्टर है।’ लल्ला ने मुस्कराते हुए जवाब दिया तो उसकी दादी झूठा-मूठा गुस्सा करते हुए बोलीं- ‘ज्यादा हेलीकाप्टर मत बनाया करो साइकिल को। आराम से चलाया करो। कहीं फिसल गए तो बत्तीसी झर जाएगी, समझे।’
लल्ला की डांट पड़ते देख बिट्टी खिलखिला कर हंस दी। लल्ला भी नाश्ता खाते हुए नीचे मुंह करके मुस्कराता रहा। बिट्टी को हंसता देख दादी को गुस्सा आ गया, बोलीं- ‘तू ज्यादा खिलखिल-खिलखिल करती है। चल उधर, कपड़े रखे हैं, धो दे जाकर।’
‘ठीक है दादी। अभी धोए देती हूं।’ कह कर बिट्टी कपड़े धोने चल दी। बिट्टी को यों डांटा जाना लल्ला को खराब लगा, लेकिन वह क्या करता। नाश्ता करके, बस्ता लेकर चल दिया विद्यालय। रास्ते भर सोचता रहा- ‘बिट्टी दिन भर काम करती रहती है, पूरे घर में झाड़ू लगाना, बरतन मांजना, कपड़े धोना, गोबर डालना, फिर भी बेचारी डांटी जाती है। अब मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।’
शाम को जब वह विद्यालय से घर पहुंचा तो देखा बिट्टी पानी भर रही थी। वह दौड़ कर आई और मुंडी हिलाते हुए बोली- ‘पता है भैया, आज मैंने आपके लिए हलवा बनाया है।’
लल्ला मुस्कुरा दिया, तभी मम्मी की आवाज सुनाई दी- ‘बिट्टी, उससे क्या गपशप करने लगी, पहले उसे कुछ खाने को तो दे।’
‘जी मम्मी, अभी लाई!’ कह कर वह लल्ला के लिए हलवा लाने चली गई।
इतने में लल्ला ने दो-तीन कॉपी और दो-तीन किताबें बस्ते से निकाल कर खटिया पर रखीं और एक थैला ढूंढ़ने लगा। तब तक बिट्टी ने हलवा लाकर उसी खटिया पर रख दिया और बोली- ‘अरे भैया, आज मैंने आपकी पसंद का हलवा बनाया है और आपने अभी तक हाथ भी नहीं धोए।’
‘अभी आया।’ कह कर वह अपने काम में लगा रहा और फिर बिट्टी का बनाया हुआ एक सुंदर-सा झोला लेकर आया, उसमें निकाली हुर्इं सब कॉपी-किताबें रखने लगा। बिट्टी ने पूछा- ‘ये क्या कर रहे हो भैया?’
इतने में उनकी मम्मी और दादी भी आ गर्इं। लल्ला बोला- ‘बिट्टी, इन किताबों से तुम पढ़ने चलोगी स्कूल में!’
‘क्या! क्या कह रहे हो लल्ला!’ दादी जी आश्चर्य से इतना ही बोल पार्इं। बिट्टी का भी मुंह खुला रह गया। मम्मी तो सुनती ही रहीं।
‘हां दादी मां, मैंने अध्यापक जी से बात कर ली है। उन्होंने बिट्टी का नाम लिखने की इजाजत दे दी है। स्कूल में बिट्टी की भी कोई फीस नहीं लगेगी। मेरी तरह इसे भी किताबें, स्कूली कपड़े, सब मुफ्त में मिलेंगे। ये देखो, तीन किताबें तो अध्यापक जी ने पहले से ही दे दीं।’ कहते हुए वह झोले से किताबें निकाल कर दिखाता हुआ बोला।
यह सुन कर मम्मी तो कुछ नहीं बोलीं, पर दादी गुस्सार्इं- ‘ये भी पढ़ने चली जाएगी तो घर के काम कौन करेगा?’
‘दादीजी, हम-दोनों मिल कर सुबह के काम कर लिया करेंगे, बचे हुए काम शाम को एक साथ कर लेंगे।’ लल्ला ने कहा तो दादी चुप हो गर्इं। मम्मी मुस्करा दीं। बिट्टी को भैया की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था, वह बड़े ध्यान से उसकी बातें पढ़ने की कोशिश कर रही थी। जब वह आश्वस्त हो गई तो दादीजी से बोली- ‘दादीजी, हम सबेरे-सबेरे ही आपके सब काम कर दिया करेंगे, क्या भैया के साथ हम भी स्कूल जा सकते हैं?’
‘दादी को बिट्टी की मासूमियत और उसकी पढ़ने की लगन देख कर उन्हें अच्छा लगा। वे उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं- ‘तू पढ़ना चाहती है, तो कल से ही विद्यालय जाएगी।’
दादीजी के इतना कहते ही वह उनके गले लग गई। मम्मी ने भी प्यार से उस पर हाथ फेरा। सबका प्यार पाकर वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी। तभी वह लल्ला के पास आई और उससे गले लग कर बोली- ‘थैंकू भैया!’ यह सुन कर सब खिलखिला कर हंस पड़े।
