महात्मा गांधी के दौर में ही उनके विचार और विरासत को लेकर समाजवादी नेताओं की बड़ी जमात सामने आ गर्ई थी। आजादी के बाद यह जमात देश में गैर-कांग्रेसवाद की धुरी बन गई। यह भी कि देश में विपक्षी राजनीति के जितने दिलचस्प प्रयोग समाजवादियों ने किए हैं, उतने अन्य किसी वैचारिक-राजनीतिक जमात ने शायद ही किए हों। इस लिहाज से जो नाम कई नैतिक वजहों और नाटकीय प्रसंगों के कारण सबसे पहले ध्यान में आता है, वह है राजनारायण।
फक्कड़पने के साथ राजनारायण ने आजीवन जिस तरह की राजनीति की, वह संघर्ष और वैचारिक प्रतिबद्धता के लिहाज से बेमिसाल है। खासतौर पर देश में गैर-कांग्रेसवाद की राजनीति का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें इस समाजवादी नेता के हिस्से कई प्रसंग आएंगे।
वे राममनोहर लोहिया के साथ सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में शामिल थे। बाद में चौधरी चरण सिंह के करीब आए और इस कारण एक दौर में उन्हें चौधरी साहब का ‘हनुमान’ तक कहा गया। हालांकि बाद में ‘राम’ और ‘हनुमान’ के इस रिश्ते का यह भी हश्र सामने आया कि राम के खिलाफ हनुमान बागपत से चुनाव मैदान में कूद पड़े।
हर किसी के लिए उपलब्ध और हर किसी की मदद के लिए फौरी तौर पर आगे आने वाले इस समाजवादी नेता ने अपने जीवन में लंबा संघर्ष किया। उनके संघर्ष का एक सिरा स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ा था, तो दूसरा सिरा राजनीति के जनपक्षीय मिजाज से।
दिलचस्प है कि 69 साल की अपनी जिंदगी में वे 80 बार जेल गए। समय का हिसाब लगाएं तो उनकी जिंदगी के तकरीबन 17 साल कारावास में ही बीते। इनमें तीन साल आजादी से पहले और 14 साल आजादी के बाद के रहे। संघर्ष के प्रति ऐसी निर्भीक आस्था अन्यत्र दुर्लभ है।
उनका जन्म बनारस के एक जमींदार परिवार में हुआ था। पर उनका फक्कड़ मन सामंती अकड़ से दूर हमेशा जन-हिमायत में खड़ा रहा। समाजवाद के रास्ते ने उनके मन को जब और गढ़ा तो अपने हिस्से की जमीन उन्होंने गरीबों को दे दी। जाहिर है कि परिवार में उनके ऐसे फैसले के लिए कोई अनुकूलता नहीं थी पर वे अपने फैसले पर न सिर्फ कायम रहे बल्कि आगे भी वही राह पकड़ी जिसमें वे गरीबों के और काम आ सकें। यहां तक कि अपने बेटों तक के लिए उन्होंने कोई संपत्ति नहीं छोड़ी।
वे जब सक्रिय राजनीति में आए तो इंदिरा गांधी के खिलाफ संसद से लेकर सड़क तक हर जगह लड़ाई लड़ी। 1971 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली से इंदिरा के हाथों हार झेल चुके राजनारायण ने हिम्मत नहीं हारी। इंदिरा पर चुनावी धांधली का बड़ा आरोप लगाते हुए वे अदालत पहुंच गए। मुकदमा लंबा चला और वह दिन भी आया जब इंदिरा गांधी को अदालत में हाजिर होना पड़ा।
बाद में अदालत ने रायबरेली चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पर छह सालों तक चुनाव लड़ने पर रोक लग गई।
इसी दौरान देश में आपातकाल लगा। राजनारायण गिरफ्तार कर लिए गए। विपक्ष के तमाम नेताओं की भी गिरफ्तारी हुई। आपातकाल हटने के बाद 1977 में जब आम चुनाव की घोषणा हुई तो रायबरेली से एक बार फिर इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण थे।
इस चुनाव में इंदिरा की करारी हार हुई। केंद्र में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो राजनारायण स्वास्थ्य मंत्री बने। यह सरकार अपने जिन अंतर्विरोधों के कारण गिरी, राजनारायण की उसमें अहम भूमिका थी। एक ऐसे दौर में जब राजनीतिक स्फीति देश में लोकतंत्र की जड़ें हिलाने पर आमादा है, इस फक्कड़ समाजवादी नेता का जीवन एक रोशन सबक की तरह है।