संगीत और कला के क्षेत्र में बहुत कम ऐसी प्रतिभाएं होंगी, जिन्हें बिना संघर्ष किए मुकाम मिला हो। खासकर फिल्म उद्योग में। हेमंत कुमार भी उनमें एक हैं। उन्हें कुछ ज्यादा ही संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि उनकी रेशमी आवाज का जादू ऐसा था कि उनके स्वर कानों में पड़ जाएं, तो सदा के लिए जगह बना लेते थे। मगर विचित्र है कि उन दिनों वे जहां भी स्वर परीक्षा के लिए गए, हर जगह उन्हें ठुकराया गया। कोई संगीत निर्देशक उन्हें अपने साथ जोड़ने को तैयार नहीं था। मगर उनमें संगीत का जुनून और अपनी आवाज पर भरोसा ऐसा था कि हिम्मत नहीं हारी। फिर जब वे एक बार चुन लिए गए और गीत गाया, तो फिर उनका जादू चल गया।
हेमंत कुमार मिजाज से साहित्यिक थे। रवींद्रनाथ ठाकुर के गीतों के दीवाने। उन्होंने उनके गीतों को अपने कंठ में बसा लिया था। उनके संगी-साथी भी साहित्यिक रुचि के लोग ही थे। जब उन्हें संगीत की स्वर परीक्षाओं में कहीं चयनित नहीं किया गया, तो वे कहानियां लिखने लगे थे। उस समय की कई प्रतिष्ठित बांग्ला पत्रिकाओं में उनकी कहानियां छपीं।
संगीत के क्षेत्र में वे हेमंत कुमार के नाम से चर्चित रहे, पर उनका पूरा नाम था हेमंत कुमार मुखोपाध्याय। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था। उनका परिवार पश्चिम बंगाल के बहारू गांव से आकर बीसवीं सदी के शुरुआती दिनों में ही कोलकाता आकर बस गया। हेमंत कुमार कोलकाता में ही पले-बढ़े और वहीं शिक्षा पाई। वहीं उनकी मुलाकात उनके गहरे दोस्त और प्रतिष्ठित कवि सुभाष मुखोपाध्याय से हुई।
इंटरमीडिएट पास करने के बाद हेमंत कुमार ने जादवपुर विश्वविद्यालय में अभियांत्रिकी की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया, लेकिन संगीत के क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। कुछ दिनों तक उन्होंने साहित्य में भी हाथ आजमाया और उनकी कई लघुकथाएं बांग्ला पत्र-पत्रिकाओं में छपी। पर अंतत: तीस के दशक में उन्होंने स्वयं को पूरी तरह संगीत के प्रति समर्पित कर दिया।
हेमंत कुमार ने 1933 में आल इंडिया रेडियो के लिए अपना पहला गीत रिकार्ड करवाया। उन्हें बंगाली संगीतकार शैलेस दासगुप्ता से काफी प्रेरणा मिली थी। 1980 के दशक में एक साक्षात्कार में हेमंत कुमार ने कहा कि उन्होंने उस्ताद फैयाज खान से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली, लेकिन उस्ताद की मौत के बाद उनका यह क्रम टूट गया। 1937 में हेमंत कुमार ने अपना पहला गैर-फिल्मी संगीत का डिस्क कोलंबिया लाबेल कंपनी के लिए जारी किया, जिसमें संगीत शैलेस दासगुप्ता ने दिया और गीत लिखा था नरेश भट्टाचार्य ने।
इसके बाद से 1984 तक हेमंत कुमार ने हर साल ग्रामोफोन कंपनी आफ इंडिया (जीसीआइ) के लिए गैर-फिल्मी गीत गाते रहे। उनका पहला हिंदी डिस्क इसी कंपनी के लिए जारी हुआ, जिसमें दो गीत- ‘कितना दुख भुलाया तुमने’ और ‘ओ प्रीत निभाने वाली’ काफी मशहूर हुए, जिन्हें लिखा था फैय्याज हाशमी ने और संगीत दिया कमल दासगुप्ता ने। उन्होंने फिल्म ‘इरादा’ के लिए पहली बार हिंदी में गीत गाया, जिसमें पंडित अमरनाथ ने संगीत दिया था और अजीज कश्मीर ने गाने के बोल लिखे थे।
हेमंत कुमार रवींद्र संगीत के अग्रगण्य गायक माने जाते हैं। उन्होंने 1944 में बांग्ला फिल्म ‘प्रिया बंगधाबी’ के लिए पहली बार रवींद्र संगीत रिकार्ड कराया। इसी साल उन्होंने कोलंबिया लाबेल के लिए गैर-फिल्मी रवींद्र संगीत का रिकार्ड करवाया। उन्होंने 1947 में बांग्ला फिल्म ‘अभियात्री’ के लिए संगीत निर्देशन किया।

