1937 में ओम प्रकाश ने आल इंडिया रेडियो सीलोन में पच्चीस रुपए वेतन पर नौकरी शुरू कर दी थी। मगर उनमें अभिनय का हुनर बचपन से था। एक किस्सा उन दिनों का है, जब ओम प्रकाश लाहौर रेडियो स्टेशन पर स्थायी कलाकार के रूप में कार्यरत थे। तब द्वितीय महायुद्ध चल रहा था। ओम प्रकाश रावलपिंडी से लाहौर जा रहे थे।
रेलगाड़ी फौजी जवानों से ठसाठस भरी थी, मगर उन्हें जाना जरूरी था। ओमप्रकाश के पास तीसरे दर्जे का टिकट था, और घुसने की जगह सिर्फ पहले दर्जे में थी। उसमें तीन-चार अंग्रेज सैनिक अफसर बैठे अंग्रेजी में गिटपिट बातें कर रहे थे। ओम प्रकाश ने मजबूरन उसमें घुस कर जगह बना ली। तभी उनके दिमाग में आया कि क्यों न उन लोगों के सामने गूंगे का अभिनय किया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।
जब फौजी अफसरों ने उनसे पूछा कि क्या वे जन्म से ही गूंगे हैं, तो ओम प्रकाश ने बड़ी खबसूरती से अपना सिर हिला दिया। फौजी अफसरों के मन में उनके प्रति सहानुभूति पैदा हुई और उन्होंने ओम प्रकाश को भरपूर खिलाया-पिलाया और लेटने के लिए एक पूरी बर्थ भी दे दी। खूब मजे से उनकी वह यात्रा संपन्न हो गई।
मगर पोल खुली लाहौर पहुंचने पर। हुआ यह कि जो व्यक्ति ओम प्रकाश को लेने स्टेशन आया था, उसने पूछ ही लिया, “कहो बर्खुरदार, सफर कैसा कटा?” ओम प्रकाश उस सवाल का जवाब टाल नहीं सकते थे। जब उन्होंने उसका जवाब दिया, तो फौजी अफसर हैरान रह गए। फिर हिम्मत जुटाते हुए ओम प्रकाश ने कहा, “माफ कीजिएगा बिरादरान, आप लोगों की यह लंगड़ी अंग्रेजी मेरे भेजे के अंदर नहीं घुस पा रही थी, इसीलिए मुझे गूंगे का अभिनय करना पड़ गया।
वैसे यह न समझ लीजिएगा कि अंग्रेजी जबान मुझे नहीं आती। मैं भी लाहौर यूनिवर्सिटी में पढ़ चुका हूं। उनकी इस बात पर हंसी का जो दौर शुरू हुआ, वह ओम प्रकाश के स्टेशन छोड़ने के बाद ही रुक पाया।
हिंदी फिल्म जगत में ओम प्रकाश का प्रवेश भी फिल्मी अंदाज में हुआ था। वे अपने एक दोस्त के यहां शादी में गए हुए थे, जहां दलसुख पंचोली ने उन्हें देखा और काफी प्रभावित हुए। वहां से लौट कर उन्होंने तार भेज कर उन्हें लाहौर बुलवाया। दलसुख पंचोली ने फिल्म ‘दासी’ (1950) के लिए ओम प्रकाश को अस्सी रुपए वेतन पर अनुबंधित कर लिया।
यह ओम प्रकाश की पहली फिल्म थीं। संगीतकार सी. रामचंद्र से ओमप्रकाश की अच्छी दोस्ती थी। इन दोनों ने मिलकर ‘दुनिया गोल है’, ‘झंकार’, ‘लकीरें’ आदि फिल्मों का निर्माण किया। उसके बाद ओम प्रकाश ने खुद की फिल्म कंपनी बनाई और ‘भैयाजी’, ‘गेट वे आफ इंडिया’, ‘चाचा जिंदांबाद’, ‘संजोग’ आदि फिल्मों का निर्माण किया।
हिंदी सिनेमा का शायद ही कोई ऐसा प्रेमी होगा, जो उनके अभिनय का कायल न हो। ओम प्रकाश ने करीब साढ़े तीन सौ फिल्मों में चरित्र अभिनेता की भूमिका निभाई थी। उनकी लोकप्रिय फिल्मों में ‘पड़ोसन’, ‘जूली’, ‘दस लाख’, ‘चुपके-चुपके’, ‘बैराग’, ‘शराबी’, ‘नमक हलाल’, ‘प्यार किए जा’, ‘खानदान’, ‘चौकीदार’, ‘लावारिस’, ‘आंधी’, ‘लोफर’, ‘जंजीर’ आदि शामिल हैं। उनकी अंतिम फिल्म ‘नौकर बीवी का’ थी। अमिताभ बच्चन की फिल्मों में उनका अभिनय खासा सराहा गया। फिल्म ‘नमक हलाल’ का दद्दू और ‘शराबी’ का मुंशीलाल बनकर ओम प्रकाश ने सिने दर्शकों के दिल में स्थायी जगह बनाई।