अरे, राख मनी प्लांट में मत झाड़ देना।’ पत्नी ने कहा और उसकी तरफ पीठ कर ली। एक बार उसे लगा, शायद यह बात किसी पौधे ने ही कही है। उसने पीछे मुड़ कर देखा, पत्नी गमलों में लगे पेड़ों को पुत्रवत निहार रही थी। वह बालकनी में खड़ा सिगरेट पी रहा था। वह हमेशा यहीं खड़े होकर सिगरेट पीता है। जब वह सिगरेट पीता है तो घर का कोई सदस्य यहां नहीं आता। घर के हर सदस्य को सिगरेट से एलर्जी है, या शायद उन्हें उसका धुआं अच्छा नहीं लगता। इसलिए वह कमरे के अंदर कभी सिगरेट नहीं पीता। यहीं पीता है। दो फीट चौड़ी और लगभग पंद्रह फीट लंबी इस बालकनी में एक पूरा घर-सा बसा हुआ है। कम से उसके लिए तो यह घर ही है। इसके एक तरफ गमले रखे हैं, कुछ मिट्टी के बड़े गमले, कुछ बोतलों और डिब्बों को गमलों में बदल दिया गया है। एक तरफ ग्रिल पर भी गमले लटके हुए हैं। बोतलों को बीच से चौकोर काट कर गमले की शक्ल दी गई है और उन्हें इस तरह लटकाया गया है, जिससे जगह जाया न हो। इसी दिशा में किनारे पर एक डस्टबिन के लिए बाल्टी रखी है। दार्इं तरफ बैठने की लिए एक कुर्सी भी है। और बिल्कुल अंत में एक नल लगा है। इस बालकनी में गमले हैं यह तो वह पहले से ही जानता था, लेकिन यहां कोई मनी प्लांट भी लगा है यह उसे मालूम नहीं था। वह सिगरेट पीते हुए राख नीचे झाड़ने के बजाय हाथ पीछे करके डस्टबिन में ही झाड़ता है। लेकिन आज पत्नी की नजर उसके राख झाड़ने पर पड़ गई और उसने यह हिदायत दी कि राख मनी प्लांट में नहीं झाड़नी है।

पत्नी अंदर चली गई है। वह खड़ा है। पहली बार उसने अपने ही घर की बालकनी में लगे छोटे-छोटे पौधों पर नजर डाली है। कैक्टस, धनिया, तुलसी के पौधों को वह पहचानता है…। लेकिन मनी प्लांट…।
पत्नी वापस आ गई है। अब उसके हाथ में पानी की एक बोतल है। वह सभी पौधों में पानी डाल रही है।
‘इनमें से मनी प्लांट कौन-सा है?’ उसने पत्नी से पूछा।
पत्नी ने उसकी तरफ इस भाव से देखा मानो मनी प्लांट को न पहचान पाना कोई जघन्य अपराध हो। उसने मनी प्लांट की तरफ उंगली करके बता दिया। सभी पौधों को पानी देकर वह अंदर कमरे में चली गई। उसने मनी प्लांट को ध्यान से देखा। दिल के आकार के हरे और कुछ पीलापन लिए पत्ते। वह पौधों को देख ही रहा था कि उसकी नजर दो अन्य मनी प्लांटों पर पड़ी। ये दोनों पहले वाले की तुलना में थोड़े छोटे थे। इन्हें उन डिब्बों में लगाया गया था, जिनमें कभी होटल से दाल या कोई सब्जी आई होगी। निम्न मध्यवर्गीय परिवार के सदस्य से मालूम पड़ रहे थे वे मनी प्लांट। उसने पौधों की तरफ पीठ कर ली। अब वह सामने देख सकता है।
यह एलआईजी फ्लैट है। सारे फ्लैट एक ही तरह के हैं। दाएं बाएं कहीं भी नजर घुमाओ हर तरफ एक-सा ही माहौल है। यों ये फ्लैट महज दो कमरों के हैं, लेकिन एक कमरा लगभग हर फ्लैट में नाजायज बन चुका है। समानता कितनी नाजायज होती है वह यहां देखी जा सकती है। वह अपने घर के नाजायज कमरे के बाहर बनी बालकनी में खड़ा है और सामने देख रहा है। सामने भी नाजायज कमरे के बाहर उसी तरह बालकनी है, जिस तरह उनके फ्लैट में। उसने इधर उधर-नजर दौड़ाई। दाएं-बाएं लगभग हर घर की बालकनी में एक ही अंदाज में कपड़े सूख रहे हैं, कुछ फुटकर सामान रखा है। अचानक उसकी नजर सामने के घर में लगे मनी प्लांट पर गई। अब वह मनी प्लांट को पहचानने लगा है। मनी प्लांट की बेल भीतर रास्ता न पाकर नीचे की ओर लटक रही है या शायद उसके लिए नीचे का ही रास्ता चुना गया है। उसने दाएं-बाएं गर्दन घुमा कर देखा। लगभग हर घर की बालकनी में गमले रखे हैं और इनमें एक मनी प्लांट जरूर है। लेकिन ये सारे लोग घर के बाहर मनी प्लांट क्यों लगा रहे हैं, मनी प्लांट तो घर के अंदर होना चाहिए, वरना सुख-समृद्धि बाहर ही रह जाएगी। उसे आश्चर्य हुआ अब उसकी नजर इन पर क्यों नहीं पड़ी थी, जबकि वह न जाने कब से यहीं खड़े होकर सिगरेट पीता रहा है।
वह घर के अंदर आ गया। पत्नी दुनिया के सबसे जरूरी काम- डस्टिंग- में लगी हुई थी। वह आकर अपने दीवान पर लेट गया। उसने पत्नी से कहा, ‘मनी प्लांट घर के बाहर बालकनी में लगाने का क्या फायदा है?’
‘घर में भी पांच मनी प्लांट लगे हैं, एक तो यहीं टीवी के ऊपर रखा है, लेकिन तुम घर में रहो तो कुछ पता चले ना।’ पत्नी ने फिर से उसकी गैर-दुनियादारी पर उंगली रख दी।
उसने टीवी के ऊपर रखे एक छोटे से डिब्बे को देखा, जिसमें मनी प्लांट मुस्करा रहा था। उसे वाकई आश्चर्य हुआ कि अब तक उसकी नजर इस मनी प्लांट पर क्यों नहीं पड़ी। नजर तो पड़ी होगी, लेकिन वह मनी प्लांट को पहचानता नहीं है, इसलिए उसे पहचान नहीं पाया।
‘बाकी मनी प्लांट कहां रखे हैं?’
वह पत्नी के पीछे-पीछे चलने लगा। उसने देखा, दो मनी प्लांट अगले कमरे में प्लास्टिक के स्टूल पर रखे थे, एक बेड रूम में और एक पीछे बालकनी में। ‘कमाल है, घर में आठ मनी प्लांट हैं फिर भी पैसे की…।’
‘घर में मनी प्लांट लगाने से पैसा नहीं आता… पैसा तो काम करने से ही आता है।’ पत्नी ने कहा।
‘फिर मनी प्लांट का फायदा?’
‘मनी प्लांट से घर में सकारात्मक तरंगें आती हैं, पैसा कमाने की इच्छा पैदा होती है और घर में बरकत होती है।’
‘तब तो घर में बरकत भी हो रही होगी और पैसा कमाने की इच्छा पैदा होने के बाद पैसा भी खूब बरस रहा होगा।’ यह उसने केवल सोचा, कहा नहीं। पत्नी अपने काम में लग गई। शायद सुबह-सुबह यह सबक उसे दिया जाना था कि पैसे के लिए काम करना पड़ता है। घर में मनी प्लांट लगाने से पैसा नहीं आता। बस मनी प्लांट पैसों की भूख आपके भीतर पैदा करता है।
वह अपने दीवान पर लेट गया। उसने सोचा, बेटे की अगले महीने बीटेक की फीस जानी है। एक लाख रुपए का इंतजाम करना है। इंतजाम कहां से होगा। कहीं से आने तो हैं नहीं। मनी प्लांट भी इसमें कुछ नहीं कर सकता। एकमात्र रास्ता है ब्याज पर पैसा उठाना। ‘दादा’ ब्याज बहुत ज्यादा लेते हैं। तीन परसेंट हर महीने का मतलब हुआ छत्तीस परसेंट सालाना। उसके घर में तो खूब मनी प्लांट होंगे। तभी लाखों रुपए हैं ब्याज पर देने के लिए, लोगों का खून चूसने के लिए। मगर और कोई रास्ता भी तो नहीं है। अगर वह न हो तो जीवन ही कितना मुश्किल हो जाए। उसी से लेने पड़ेंगे। काम तो चल ही जाएगा। ऐसे ही काम चल रहा है-वर्षों से। और शायद ऐसे ही चलेगा। उसने एक बार फिर बार्इं तरफ गर्दन घुमा कर टीवी पर रखे मनी प्लांट को देखा। उसके पत्ते हल्के-हल्के हिल रहे थे। उसे लगा मनी प्लांट उसे चिढ़ा रहा है। वह सोचने लगा। यह मनी प्लांट कल्चर कब और कैसे घर में आई। पहले तो ऐसा नहीं था। बचपन, किशोरावस्था और जवानी तक उसने कभी मनी प्लांट का नाम भी नहीं सुना था। मां सामान लाने के लिए जो चिट उसे देती थी, उस पर आटा, चावल, चीनी, चाय की पत्ती… सब कुछ लिखा होता था। लेकिन मनी प्लांट….। वे बेहद गर्दिशों के दिन थे। घर में सबसे बड़ा होने के कारण सबसे पहले उसी की नौकरी लगी थी। छह सौ रुपए प्रतिमाह। उसके बाद घर की स्थितियां कुछ बेहतर होनी शुरू हुर्इं। स्थिति केवल उनकी खराब नहीं थी, बल्कि आसपास रहने वाले सभी लोग कमोबेश इन्हीं हालात में रहते थे। इस निम्नवर्गीय कॉलोनी में और बेहतर क्या हो सकता था। लेकिन कभी उसने किसी को पैसों या समृद्धि के लिए मनी प्लांट घर में लगाने की बात करते नहीं सुना।
ऐसा नहीं कि उस समय उसके रईस दोस्त नहीं थे। उनकी कॉलोनी के सामने ही एक पॉश इलाका था। वहां पांच सौ गज में कोठियां बनी थीं। उन्हीं कोठियों में रहने वाला उसका एक मित्र था-नन्टा। यही उसका घर का नाम था। वह उसे हमेशा इसी नाम से पुकारता था। एक दिन दोपहर को वह आया और बताने लगा, हमारे घर में बहुत से नए पौधे लग रहे हैं। बहुत से फूलों वाले पौधे। उसने बहुत से पौधों के नाम गिनाए थे। मगर उसे आज भी याद है कि उनमें मनी प्लांट नहीं था। आज वह सोचता है तो लगता है कि उन्हें मनी प्लांट की क्या जरूरत होगी। उनके पास तो वैसे ही खूब रुपया पैसा था।
समय बदलता गया। छह सौ रुपए की तन्ख्वाह तीन हजार हो गई। तभी उनके घर में पहली बार गैस का सिलेंडर आया। वरना मां को हमेशा स्टोव पर ही जूझते देखा था। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने ब्लैक ऐंड व्हाइट टीवी खरीद लिया। किश्तों पर। जीवन में खुशियां धीरे-धीरे आ रही थीं। पता नहीं इन खुशियों का पैसे से कोई रिश्ता था या नहीं। लेकिन तब घर के सब लोग एक साथ मिलजुल कर बैठते, बतियाते, हंसी-मजाक करते और अपनी-अपनी समस्याओं पर चर्चा किया करते थे। इन खुशियों के बीच मनी प्लांट कहीं नहीं था। किसी के जेहन में भी नहीं।
इक्कीसवीं सदी शुरू हुई तब तक बहुत कुछ बदलने लगा था, बदल चुका था। यहां तक कि वह खुशियों के अपने पिता वाले घर को छोड़ चुका था। शादी हो चुकी थी। उस छोटे घर में गुजारा नहीं था। कुछ साल किराए पर रह कर उसने किश्तों में ही यह फ्लैट खरीद लिया था। धीरे-धीरे घर में कथित रूप से सहूलियत देने वाला सामान आने लगा था। वह काम में डूबा रहता और पत्नी बच्चों को बड़ा करने में। बच्चे बड़े हो गए। अब कॉलेज जाने लगे हैं। और कॉलेज की फीस…। वह झटके से दीवान से उठा। उसने मोबाइल में दादा का नंबर देखा और मिला दिया- ‘गुड मार्निंग दादा…’
‘हां, बोलो…’
‘यार कुछ पैसों की जरूरत है…’
‘कितने चाहिए…’
‘एक लाख रुपए…’
‘एक लाख!’
‘क्यों, ज्यादा है क्या?’
‘नहीं, तुम तो हमेशा बीस हजार ही लेते हो न…’
‘इस बार एक लाख ही चाहिए…’
‘कब तक चाहिए…’
‘आज ही…’
‘अभी तो मैं कहीं फंसा हुआ हूं, कल दे दूं?’
‘नहीं दादा, आज ही चाहिए…’
‘चलो मैं शाम तक देता हूं…’
चलो पैसों का इंतजाम तो हो गया। अब कोई दिक्कत नहीं है। उसने खुद से कहा और दोबारा दीवान पर लेट गया। शाम को जाकर वह रुपए ले आएगा और बच्चे की फीस जमा हो जाएगी। बच्चे का पढ़ना बेहद जरूरी है। चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
‘लेटे ही रहोगे या कुछ करोगे भी?’ पत्नी की आवाज ऐसा लगा मानो किसी दूसरे ग्रह से आ रही है।
‘क्या करना है बताओ?’ उसने बुझे मन से कहा।
‘बताया तो है, फीस का इंतजाम।’
‘हो गया है।’
‘ब्याज पर ही लिए होंगे, और कहां से होगा।’
पत्नी दुनिया का हर रहस्य जानती है। इसके बावजूद वह सवाल करती है।
उसने थोड़ी तीखी आवाज में कहा, ‘जब तुम्हें पता है तो क्यों पूछ रही हो।’
पत्नी मुंह बना कर अंदर चली गई। वह उठा और घर से बाहर निकल आया। सुबह की दो चाय वह पी चुका था। तीसरी चाय नीचे प्रभात टी स्टॉल पर पी लेता है। वह सीढ़ियां उतर कर खरामा खरामा टी स्टॉल पर आ गया। उसने चाय का आर्डर दिया और एक किनारे खड़ा हो गया। आसपास कई और युवा छात्र भी खड़े थे। प्रभात टी स्टॉल पर चाय, नाश्ता, दोपहर और रात का खाना भी मिलता है। वह मोबाइल भी चार्ज करने का काम करता है। इसके साथ ही सिगरेट, तंबाकू, गुटका भी उसके यहां मिल जाता है। आसपास के सभी लोगों की जरूरतें वह पूरी करता है। जाहिर है, अच्छी कमाई होगी। दिन में कम से कम दो हजार रुपए कहीं नहीं गए। यानी साठ हजार रुपए प्रतिमाह। उसका फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर है। घर के पिछवाड़े में, जो सड़क के सामने पड़ता है, उसने यह चाय की दुकान खोल ली है। यों यह इस दुकान को नाजायज जमीन पर बनी दुकान कहा जा सकता है। उसका जी हुआ कि उससे पूछे कि उसके घर में मनी प्लांट लगा है या नहीं।
चाय… उसने हाथ बढ़ा कर चाय ले ली और किनारे खड़ा होकर पीने लगा। अचानक उसकी नजर सामने पड़ी है। सामने कॉलोनी की सुरक्षा के लिए एक दीवार खड़ी कर दी गई। उसकी दीवार के सामने यह दुकान है। उसने देखा, दीवार के सामने बड़े-बड़े गमले लगे हैं। उनमें अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे हैं। दीवार और दुकान के बीच एक छोटी-सी सड़क है। उसे आश्चर्य हुआ, सामने लगे गमलों में से एक गमले में मनी प्लांट भी लगा हुआ है। पता नहीं समाज में पिछले दो दशकों में हुए बदलावों से मनी प्लांट का भाग्य उदय हुआ या इंसान में इस दिल के आकार के पौधे ने लोगों में पैसे के लिए हवस पैदा करने का काम किया। पैसा पहले आया या मनी प्लांट, यह भी सवाल ही बना हुआ है।
उसकी चाय अभी खत्म नहीं हुई थी। उसने देखा, दुकान पर एक व्यक्ति आया। उसकी साइकिल पर पीछे एक टोकरी लगी थी। आगे हैंडल पर भी उसने एक टोकरी लगा रखी थी। इस टोकरी में भी छोटे-छोटे पौधे थे। उसने एक मैली-सी कमीज पहनी थी। बाल बिखरे हुए थे। वह पौधे बेच रहा था। उसने चाय वाले से चाय के लिए कहा। उसकी चाय खत्म होने वाली है। लेकिन उससे पहले ही वह पौधे वाले के पास पहुंच गया और पूछा, आपके पास मनी प्लांट भी हैं क्या? उसके चेहरे पर पौधा बिक जाने की एक उम्मीद उभरी। उसने पूरे उत्साह से कहा, जी बाऊजी है… यह कह कर वह टोकरी में रखे मनी प्लांट के पौधे दिखाने लगा।
‘कितने का है?’
‘यह एक सौ बीस रुपए का है।’ उसने एक मनी प्लांट दिखाते हुए कहा।
‘इससे कम का भी है कोई?’
‘यह सत्तर रुपए का है।’
उसने पौधे को ध्यान से देखा। बहुत ही छोटे-छोटे दिल वाला यह मनी प्लांट बिकने के लिए उतावला है। पौधे बेचने वाला भी उसकी तरफ इस आस से देख रहा है कि शायद यह बिक जाएगा। उसने पौधे को वापस टोकरी में रख दिया।
‘बाऊजी, एक खरीद लो, आज सुबह से बिक्री नहीं हुई है। मैं साठ रुपए लगा दूंगा।’ उसके चेहरे पर दयनीयता का भाव उभर आया।
उसने चाय का गिलास एक कोने पर रखा, जेब से सत्तर रुपए निकाल कर उसे दिए और एक मनी प्लांट खरीद लाया। उसने सोचा, पत्नी उसके हाथ में मनी प्लांट देख कर खुश होगी और सोचेगी कि अब वह भी पैसों की महत्ता को समझ गया है।
घर में जैसे ही पत्नी ने उसके हाथों में मनी प्लांट देखा, तो वह गुस्से से भड़क गई ‘मैंने दिखाया तो था आपको, घर में आठ मनी प्लांट हैं, फिर इसे क्यों उठा लाए?’
‘ताकि मेरे भीतर भी पैसा कमाने की हवस पैदा हो!’ उसने मनी प्लांट को टीवी में पहले से ही रखे एक मनी प्लांट के बराबर में प्लांट रख दिया और अपने दीवान पर लेट गया।