राम करन
कविता: मधुमक्खी
मधुमक्खी की रानी मक्खी,
रानी की हैं सब मधुमक्खी।
हमें बताती बूढ़ी कक्की –
रानी बड़ी सयानी मक्खी।
ड्यूटी पर रहती मधुमक्खी,
छत्ते में बस रानी मक्खी।
जंगल उपवन जाती मक्खी,
रस फूलों से लाती मक्खी।
छत्ता बड़ा बनाती मक्खी,
रखती बहुत सिपाही मक्खी।
छत्ते की रखवाली में वह,
करे नहीं कोताही मक्खी।
सन-सन-सन-सन आती मक्खी,
भन-भन-भन-भन गाती मक्खी।
छत्ते में है अंडा मक्खी,
छत्ते पर रहती मधुमक्खी।
काम में रहती खोई मक्खी,
मिली नही पर सोई मक्खी।
जब छेड़ा तब बिगड़ी मक्खी,
रपट-रपट कर पकड़ी मक्खी।
मधु खाने को देती मक्खी,
नहीं कभी कुछ लेती मक्खी।
इसीलिए अच्छी मधुमक्खी,
मन से है सच्ची मधुमक्खी।
शब्द-भेद: कुछ शब्द एक जैसे लगते हैं। इस तरह उन्हें लिखने में अक्सर गड़बड़ी हो जाती है। इससे बचने के लिए आइए उनके अर्थ जानते हुए उनका अंतर समझते हैं।
खरा / खारा: शुद्ध का पर्याय है खरा। खरा यानी जिसमें कोई कमी न हो, कोई खोट न हो। जैसे खरा सोना। जबकि खारा का अर्थ होता है नमकीन। नमक मिला हुआ। समुद्र का पानी खारा होता है। बिस्किट भी खारा बनाया जाता है।
बुरा / बूरा: अच्छा का विलोम है बुरा। यानी जिसमें किसी प्रकार की अच्छाई न हो, वह बुरा कहलाता है। जबकि पिसी हुई चीनी, खांड या गुड़ को बूरा कहते हैं। कई जगहों पर चावल के साथ बूरा खाया जाता है।