टेलीविजन धारावाहिक और फिल्मों में इतिहास के साथ जो छेड़छाड़ और विरूपण किया जाता है, क्या समाज पर उसका कोई असर होता है? देखिए, मैं टेलीविजन पर कोई ऐतिहासिक धारावाहिक नहीं देखता और न ही मुझे इतिहास पर बनी फिल्में पसंद आती हैं। उसकी एक बड़ी वजह यही है कि मुझसे ये सब देखा नहीं जाता। लेकिन मैं लगातार यह सुनता और पढ़ता रहता हूं कि फिल्मकारों ने हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ की या उसे दोबारा लिखने की कोशिश की। ‘मुगल-ए-आजम’ में जिस तरह से अनारकली को गढ़ा गया और उसे एक प्रेम कहानी बना दिया गया, उसका इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। बाद की फिल्मों में भी लगातार यही हुआ। फिल्मकार अपनी सहूलियत के लिए ऐतिहासिक घटनाओं को प्रेम और नाटकीयता के मिश्रण के साथ पेश कर देते हैं। धारावाहिकों में तो यह खेल और भी तेजी से चल रहा है।
तो क्या इसका समाज पर कोई प्रभाव पड़ता है?
मुझे नहीं लगता कि इस तरह के धारावाहिकों और फिल्मों को कोई गंभीर आदमी गंभीरता से लेता है। लोग देखते हैं और भूल जाते हैं। मेरा मानना है कि लोगों की जो जेहनियत 200-300 सालों से बनी हुई है, उसे आसानी से नहीं बदला जा सकता। शिवाजी या महाराणा प्रताप की जो छवि भारतीय जनमानस में दर्ज है, उसके खिलाफ (अगर वह इतिहास है तब भी) जाना आसान नहीं होता। टीवी पर और फिल्मों में इसी जेहनियत को भुनाया जाता है। कोई यह बात नहीं सुनना चाहता कि शिवाजी और प्रताप दोनों ने ही अपनी रियासतों को बचाने के लिए लड़ाइयां लड़ीं। इन दोनों पर यदि कोई पूरे तथ्यों के साथ लिखता है तो लोग विरोध करना शुरू कर देते हैं। इसलिए टीवी और फिल्मों को लोग मनोरंजन की दृष्टि से ही देखते हैं। अनारकली या जोधाबाई नाम का इतिहास में कोई किरदार नहीं था, यह सब जानते हैं फिर भी इनकी प्रेम कहानियों को देखते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि वे इन्हें केवल प्रेम कहानियों के रूप में ही देखते हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि इतिहास को विरूपित करने वाले जो अन्य स्रोत हैं उन पर भी चोट होनी चाहिए।