शोकसभा
जो शोकसभा में
भोंपू की तरह बज उठते हैं
क्या होते हैं सचमुच शोकाकुल
शोकसभा में
कभी मेरा दर्द परिभाषित नहीं हुआ
शब्द दरवाजों खिड़कियों को मुमकिन नहीं बनाते
क्रूर समय तना रहता है भीतर
जमीन से आसमान तक
तन जाता है गूंगापन
अभी कल था
एक बिलखती शोकसभा में
देखता रहा विधवा के पांव
लोग बखान करते रहे
मृतक के शौर्य का
नहीं थीं लेकिन दीख रही थी जंजीरें
औरत के चुपचाप सहते पांव
शोकसभा में कल
सरहद थी, दृश्यमान थीं अदृश्य दीवारें
और हवा में
दबी हुई चीख सरसरा रही थी।
दीमक
दीमक को शायद
आदमी से ज्यादा प्यार है किताबों से
परंतु वह पढ़ी किताबों पर सोच नहीं पाती
जो आदमी के जीवन के अंधियारों में
टिमकती रहती है सितारों की तरह
बार बार…।
भीतर का दुख
भीतर का दुख कैसे खोलता
नहीं था चेखोव की कहानी का घोड़ा
रास्ता भरा था पत्थरों से
जो दुख नहीं सुनते
मुझे बड़ा था दुख जुलाहे का
कबीर ने अनबिके थान रख दिए सामने
मैंने एक चादर ली
दुख चादर में सिमटा
साथ ही लौट आया।
भूलना
भूलना चाहने पर कुछ नहीं भूलता
चलो
भूलने के लिए यात्रा पर निकलें
शब्दों को निरावरण पहुंचने दें
अपने गहरे दर्द तक
जो एक नदी की तरह उतरें
और शामिल हो जाएं
जन जन की पीड़ा के समुद्र में।
चिड़िया का चहचहाना
चिड़िया के चहचहाने में
प्रार्थना थी
खरगोश के भागने में लय
हिरण की कुलांच में गीता
कुदरत के अभिनंदन से
संतुष्ट हुआ ईश्वर
बही बारिश की बूंदें
हरहरा गया तन मन। ०