सत्यजीत रे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थी। वे फिल्म निर्माता, पटकथा लेखक, गीतकार, संगीतकार, ग्राफिक डिजाइनर और साहित्यिक लेखक थे। उन्हें महान फिल्म निर्माताओं में से एक माना जाता है।
शिक्षा और करिअर की शुरुआत
कलकत्ता में पैदा हुए सत्यजीत रे महज तीन साल के थे जब उनके पिता सुकुमार रे का निधन हो गया। मां सुप्रभा रे ने उन्हें बड़ी मुश्किलों से पाला था। उनके दादा उपेंद्र किशोर रे प्रतिष्ठित लेखक, चित्रकार, वायलिन वादक और संगीतकार थे। कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे शांति निकेतन गए और अगले पांच साल तक वहीं रहे। इसके बाद 1943 वे फिर कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई किताबों के मुखपृष्ठ बनाए, जिनमें जिम कार्बेट की ‘मैन-ईटर्स आॅफ कुमाऊं’ और जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी आॅफ इंडिया’ शामिल हैं।

1928 में छपे विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के मशहूर उपन्यास ‘पथेर पांचाली’ का बाल संस्करण तैयार करने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई, जिसका नाम था ‘अम अंतिर भेपू’ (आम की गुठली की सीटी)। रे इस किताब से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने इस किताब के मुखपृष्ठ को बनाने के साथ किताब के अंदर के चित्र भी तैयार किए। इनमें से बहुत से चित्र उनकी पहली फिल्म ‘पथेर पांचाली’ के खूबसूरत और मशहूर शॉट्स बने। सत्यजीत रे ने विजया रे से आठ साल तक प्रेम संबंध रखने के बाद 20 अक्तूबर 1949 को शादी कर ली थी।

भारतीय सिनेमा की पहचान
सत्यजीत रे जाने-माने फिल्म निर्माता ही नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा की पहचान हैं। सिनेमा के मानवतावादी दृष्टिकोण के लिए उन्हें जाना जाता है। उन्होंने बांग्ला में फिल्में बनाईं। फ्रांसीसी फिल्म निर्देशक ज्यां रेनुआ से मिलने पर और लंदन में इतालवी फिल्म ‘लाद्री दी बिसिक्लेत्ते (बाइसिकल चोर)’ से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्म बनाने की ठानी। 1955 में उन्होंने ‘पथेर पांचाली’ बनाई, जो उनकी पहली फिल्म थी। इस फिल्म ने समीक्षकों और दर्शकों का दिल जीत लिया।

इस फिल्म ने ग्यारह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते। ‘पथेर पांचाली’ को भारतीय फिल्म जगत का बेहतरीन ‘क्लासिक’ कहा जाता है। इसके अलावा उन्होंने कई ऐतिहासिक फिल्में बनाईं, जिनमें ‘चारुलता’, ‘अपराजितो’, ‘अपुर संसार’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ प्रमुख हैं। उन्होंने 37 फिल्मों के निर्देशन के साथ फीचर फिल्में, वृत्तचित्र, कई उपन्यास और लघु कथाएं भी लिखीं।

सम्मान और पुरस्कार
सिनेमा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले। 1992 में सत्यजीत रे को ‘आॅनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट’ के लिए आॅस्कर पुरस्कार देने की घोषणा की गई। उस दौरान वे बहुत बीमार थे। ऐसे में आॅस्कर के पदाधिकारियों ने फैसला लिया था कि ये पुरस्कार उनके पास पहुंचाया जाएगा। फिर आॅस्कर के पदाधिकारियों की टीम कोलकाता में सत्यजीत रे के घर पहुंचीं और उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

1992 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा। इसके अलावा उन्हें दादा साहब फाल्के सहित 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से भी नवाजा जा गया। उन्होंने कला फिल्मों को इस अंदाज में उभारा कि देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने उनकी प्रतिभा का लोहा माना। उन्हें आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।