जानेमाने स्वतंत्रता सेनानी और वकील आसफ अली का जन्म 11 मई 1888 को हुआ था। आसफ अली ने दिल्ली के स्टीफंसकॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। फिर 1909 में कानून की पढ़ाई के लिए वे लंदन चले गए। आसफ अली जब लंदन में थे तो सैयद अमीर अली ने लंदन मुसलिम लीग की स्थापना की। 1914 में उस्मानी साम्राज्य पर ब्रिटिश हमले का भारतीय मुसलमानों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। आसफ अली ने तुर्की के पक्ष का समर्थन किया और प्रिवी काउंसिल से इस्तीफा दे दिया। वे दिसंबर 1914 में भारत लौट आए और पूर्ण रूप से राष्ट्रीय आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे।

व्यक्तिगत जीवन
आसफ अली की शादी 1928 में अरुणा गांगुली के साथ हुई थी। यह शादी आसान नहीं थी क्योंकि आसफ मुसलिम थे और अरुणा हिंदू। यही नहीं अरुणा 21 साल छोटी थीं आसफ से। मगर दोनों ने समाज और रूढ़ियों की परवाह नहीं की और एक-दूसरे के साथ रहने का फैसला किया। अरुणा गांगुली आसफ अली से शादी करने के बाद अरुणा आसफ अली बन गईं और बाद में इसी नाम से मशहूर भी हुईं। गौरतलब है कि अरुणा आसफ अली को 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बांबे के गोवालिया टैंक मैदान पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए जाना जाता है।

नामी वकील
आसफ अली की गिनती देश के नामी वकीलों में होती थी। आठ अप्रैल 1929 में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका था, जिसके बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे में भगत सिंह और उनके साथियों का बचाव आसफ अली ने ही किया था। 1945 में आसफ अली को कांग्रेस पार्टी द्वारा स्थापित आइएनए रक्षा टीम का संयोजक बनाया गया, जिसका काम राजद्रोह के आरोप वाले भारतीय राष्ट्रीय सेना के अधिकारियों का बचाव करना था। 1942 में महात्मा गांधीजी के आह्वान पर वे भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए।

राजनीति में प्रवेश
1935 में आसफ अली का चुनाव केंद्रीय विधानसभा के सदस्य के रूप में हुआ और उन्होंने मुसलिम राष्ट्रवादी पार्टी की नुमाइंदगी भी की। दूसरी बार वे फिर से मुसलिम लीग के उम्मीदवार के खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए। उन्होंने विधानसभा में कांग्रेस उपाध्यक्ष के तौर पर कार्य किया।

राजदूत और राज्यपाल
आसफ अली दो सितंबर 1946 से जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में बनी अंतरिम सरकार में रेलवे और परिवहन विभाग की कमान संभाली। उन्होंने 1947 में संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के पहले राजदूत के तौर पर नियुक्त किया गया। 1948 से 1952 तक वे ओड़िशा के राज्यपाल रहे। वे स्विट्जरलैंड, आॅस्ट्रिया और वैटिकन में भी भारत के राजदूत रहे।

निधन
चौसठ वर्ष की आयु में स्विट्जरलैंड में भारत के राजदूत के रूप में सेवा करने के दौरान बर्न दूतावास में उनका निधन हो गया था। 1989 में भारत सरकार ने आसफ अली के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था।