बहुत पुरानी बात है। किसी गांव में चार भाई रहते थे। कल्लू, लल्लू, चौपट, पोपट। चारों भाई अव्वल दर्जे के मूर्ख थे। इसलिए गांव में उन्हें कोई काम नहीं देता था। जो उन्हें काम देता उसका काम चौपट हो जाता। ऐसे में कई बार तो उन्हें भूखों मरने की नौबत आ जाती। मगर चारों भाइयों में बड़ा प्रेम था। वे हमेशा मिल-जुल कर रहते थे। चारों भाइयों ने विचार किया कि क्यों न पास के गांव में जाकर कुछ काम किया जाए। चार पैसे आएंगे तो गुजारा चलेगा। वे बड़े सवेरे उठ कर पैदल ही निकल पड़े गांव की ओर। गांव में पहुंचते ही ठाकुर की हवेली दिखाई दी। ठाकुर हवेली के बाहर खड़ा था। चारो भाइयों ने हाथ जोड़ कर राम-राम की। बड़ा भाई कल्लू बोला, ‘ठाकुर, हम पास ही के गांव चंदनपुर से आए हैं, काम की तलाश में। हमें पता चला है कि आपके यहां से कोई निराश नहीं जाता। कुछ काम मिल जाए तो बड़ी कृपा होगी।’ ठाकुर को सचमुच काम करने वालों की तलाश थी। उसने सोचा, खुद चल कर आए हैं तो पैसे भी कम लेंगे। दो रुपए रोज मजदूरी और पेट भर खाना तय हुआ। ठाकुर ने छोटे भाई कल्लू को तो अपनी बूढ़ी मां की सेवा करने का काम सौंपते हुए कहा कि तुम उनकी मक्खियां उड़ा दिया करो। दूसरे भाई लल्लू से कहा कि तुम जाकर खेत की सफाई करो। तीसरे भाई चौपट से कहा कि तुम बकरियां लेकर जंगल में चराने जाओ। चौथे भाई पोपट से कहा कि तुम बैलगाड़ी लेकर जंगल से लकड़िया काट लाओ। सबको काम बता कर ठाकुर अपने बेटे के साथ शहर चला गया। खेत की सफाई करने पहुंचे कल्लू ने खेत में लगे धान के सारे पौधों को उखाड़ कर फेंक दिया और ठाकुर के घर लौट आया।
लकड़ी लेने गए चौपट ने कुल्हाड़ी से लकड़ियां काटीं और उन्हें गाड़ी में भरने ले गया। गाड़ी गरम थी। उसने सोचा कि दिन भर धूप में खड़ी रहने के कारण गाड़ी को तेज बुखार हो गया है। अधिक लकड़ियां लाद दी, तो बैल चल नहीं पाए। तब उसने सोचा कि उसकी गाड़ी बुखार से मर गई है। ऐसे में उसे यहीं जला कर दाह संस्कार कर देना चाहिए। उसने बैलगाड़ी को जला दिया और बैलों को लेकर वापस लौट आया। तीसरा भाई, जो बकरियां चराने जंगल गया था, उसे रास्ते में एक कुआं मिला। उसने सोचा चलो, कुएं का स्वच्छ मीठा पानी मिल गया है। उसे जोर से प्यास लगी थी। उसने पानी पीया और बकरियों के कान पकड़ कर कुएं में धकेल दिया और कहा कि देखो, खूब पेट भर कर पानी पी लेना, फिर ठाकुर से मत कह देना कि मैंने तुम्हें प्यासा रखा। बहुत देर बाद भी जब बकरियां कुएं से वापस नहीं आर्इं, तो वह खाली हाथ लौट आया। उधर चौथा भाई दिन भर बुढ़िया के पास बैठा मक्खी भगाता रहा। जैसे ही मक्खियां बुढ़िया के ऊपर बैठतीं, वह एक थप्पड़ मक्खी के ऊपर लगाता। मक्खी तो उड़ जाती, पर थप्पड़ बुढ़िया को लगता। दिन भर थप्पड़ खा-खाकर बुढ़िया अधमरी हो गई। बुढ़िया बेहोश हो गई। चारों भाइयों ने सोचा कि बुढ़िया मर गई है। उन्होंने अरथी तैयार कर दी और बुढ़िया को लेकर राम नाम सत्य करते श्मशान घाट की ओर चल पड़े। अरथी ढीली थी, पूरी तरह से बंधी नहीं थी, इसलिए बीच रास्ते में ही बुढ़िया अरथी से गिर पड़ी। बुढ़िया को वहीं छोड़ चारों ने अरथी को ले जाकर जला दिया और रोते-पीटते वापस आ गए।
उधर ठाकुर अपने बेटे के साथ शहर से गांव लौट रहा था। तभी उसकी नजर सड़क के किनारे पड़ी बुढ़िया पर पड़ी। उसने बेटे को रोका। जाकर देखा तो वह चौंक गया। देखा, उसकी मां बेहोश पड़ी है। उन्हें बैलगाड़ी पर रखा और वैद्यजी के घर ले गए। उन्होंने मां को दवा देकर इलाज किया। तभी झूमते-गाते चारों भाई आ गए। ठाकुर ने चारों भाइयों की पिटाई की और भगा दिया कि लौट कर दुबारा इस गांव में मत आना। कभी आगे दिखे, तो तुम्हारी खैर नहीं। चारों मूर्ख भाई पिट कर अपने गांव वापस आ गए। ०