नील नदी के पानी में ‘मोरमरूम’ नामक मछली पाई जाती है, जिसे पकड़ना बहुत कठिन है। यह आदमी की आहट दूर से ही महसूस कर लेती है और दूर चली जाती है।
वैज्ञानिकों ने काफी प्रयत्न के बाद पता लगाया है कि प्रकृति ने इस मछली को रडारयुक्त कर रखा है जिससे इसे खतरे का पूर्वाभास हो जाता है और वह सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर जाती है।वेस्टइंडीज में बया जाति की एक चिड़िया पाई जाती है जिसे वहाँ के लोग ‘स्यूइंग’ नाम से जानते हैं। यह चिड़िया अपना घोसला सुई और धागे की सहायता से बनाती है। यह सुई और धागा हमारे कल-कारखानों में बनने वाले नहीं बल्कि सुई की जगह अपनी चोंच को काम में लेती है और धागे की जगह वनस्पतियों के रेशों को। निर्माण सामग्री की एवज पेड़ों के पत्तों को काम में लेती है।
प्रकृति के नियमों में एक नियम यह भी है कि शिकारी पक्षी अपने घरों के आसपास कभी शिकार नहीं करते, अनेक शिकारी पक्षियों के घोंसलों में छोटे-छोटे जीव अपना निवास-स्थान निर्भय होकर बना लेते हैं। यही नहीं, शिकारी पक्षी जो शिकार करके लाते हैं उसमें भी वे अपना हिस्सा बांट लेते हैं। कुछ किस्म के सांपों में तापमान के प्रति बहुत अधिक संवेदनशीलता होती है। कुछ अजगर ताप-निर्धारक होते हैं, ये ऐसी किसी भी चीज को देखने में समर्थ होते हैं। जिसका तापमान आसपास के तापमान से केवल 0.2 सेंटीग्रेड अधिक हो, प्रकृति की यह अद्भुत देन है उन्हें!
मेंढकों में अपने स्थान के प्रति आश्चर्यजनक स्मरण-शक्ति होती है, भले ही वहां की चीजें और वातावरण बिल्कुल बदल गए हों। इसका कारण वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि मेंढक अपना मार्ग सूरज से नहीं, बल्कि चांद-सितारों के माध्यम से ढूंढ़ता है। जिराफ की जीभ इतनी लंबी होती है कि वह उससे चाट-चाटकर अपने कान भी साफ कर लेता है। कनाडा से भारत लाया गया एक ऐसा हाथी था जो पैरों में जूते पहने बिना बाहर नहीं निकलता था। इटली के रोपर्ड नस्ल के कुत्ते की एक आंख नीली और एक भूरी होती है।