विमर्श: व्यंग्य की अस्मिता और स्थापना
सीधी बात कहने से भाषा में शक्ति नहीं आती, लेकिन जब भाषा के तेवर पैने व आक्रामक हों तो वे व्यंग्य बन जाते हैं।...
दुनिया मेरे आगे : दस्तकारी की दुनिया
अनेक छोटे कारीगर, जो अपना काम खुद चलाते हैं, उन्हें बाजार का पता नहीं है। वे नहीं जानते कि वे अपने माल का समुचित...
दुनिया मेरे आगे : संत्रास के रंग
दलित-कला समकालीन कला आंदोलन के भाग रूप में चली भी, कुछ चित्रकारों ने आंचलिकता के नाम पर उसे संयोजित भी किया, लेकिन वह व्यापकता...
दुनिया मेरे आगे- रंग बेरंग
जो लोग समसामयिक कला को अपनाए हुए हैं, वे कारोबारी होते जा रहे हैं और बिना काम किए ही समकालीन कला में राजनीति करके...
चश्मा- कोरा फैशन नहीं है
धूप का चश्मा आंखों को बचाने का सुरक्षित उपाय है, बशर्ते कि चश्मा समुचित रूप से जांचा-परखा गया हो। इससे जहां आंखों को इस...
दुनिया मेरे आगे: दस्तकारी का संकट
जयपुर में पली-बढ़ी बीसियों हस्तकलाएं इस समय संकट के दौर से गुजर रही हैं।
दुनिया मेरे आगे: अमूर्तन बनाम यथार्थ
एक ही शैली में रंग-रेखाओं का संयोजन, जहां कला जीवन की त्रासदी बन रहा है, वहीं वह मानव जीवन से सही सरोकार बना पाने...
राजनीति: शिक्षक, शिक्षा और समाज
आज देश में भाषा, क्षेत्र तथा जाति के नाम पर टकराव की प्रवृत्तियां पनप रही हैं। सांप्रदायिक शक्तियां सिर उठा रही हैं, देश के...
जानकारी- ऊंट
ऊंट-पालन के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और मेलों आदि में इनके गलत उपयोग पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए।
‘दुनिया मेरे आगे’ कॉलम में चंद्रकांता शर्मा का लेख : सांगानेरी का संकट
कैसे एक बेहतरीन कला और उसकी परंपरा सबके देखते-देखते दम तोड़ने लगती है, सांगानेरी दस्तकारी इसका एक बड़ा उदाहरण है!
दुनिया मेरे आगेः हाशिए पर मूर्तिकला
गुलाबी नगर जयपुर की मूर्तिकला लंबे समय से सारी दुनिया में जानी जाती रही है तो इसकी वजहें भी रही हैं। हर साल जयपुर...
‘दुनिया मेरे आगे’ कॉलम में चंद्रकांता शर्मा का लेख : यथार्थ का कैनवस
भारतीय चित्रकला के प्राचीन स्वरूप में जहां सामंती चित्रों की भरमार है, वहीं अब जनवादी कला का रूप-स्वरूप दलित कला चेतना केंद्रित चित्रों की...
चंद्रकांता शर्मा का लेख : मौजूदा दौर में बाल साहित्य
कहानी, उपन्यास, लेख और आलोचना साहित्य लिखने वाले लोग ही बाल साहित्य भी लिखते हैं, लेकिन वे इस बात से बेपरवाह हो जाते हैं...
अमूर्तन की रचना
कला की अभिव्यक्ति और उसे देखने की लगन मनुष्य की प्रारंभिक समझ और सोच से जुड़ी एक सहज प्रक्रिया है।
हाशिये की कला
गायन-वादन में पारंगत ये कलाकार ठाढ़ी और मीरासी नामों से जाने जाते हैं। हालांकि ये मुसलिम धर्मावलंबी है, लेकिन हिंदुओं के सभी शुभ कार्यों...
चैत की हवा
ग्रामीण मेलों की भरमार लग जाती है। छोटे-छोटे कस्बों और नगरों में हाट बाजार लगते हैं और देहात के लोग अपने आनंद की अभिव्यक्ति...
दुनिया मेरे आगेः इंद्रधनुष के रंग
सोता हुआ मौसम जब उनींदी पलकों से झांकता है तो उसे रंगों के इंद्रधनुष टंगे दिखाई देते हैं। दिन बदले हुए खुले-खुले से और...