हम जैसे-जैसे बूढ़े होते जाते हैं, हमारे सोचने और याद रखने की क्षमता भी कमजोर पड़ती जाती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह समस्या बढ़ती जाती है। यह इस बात का संकेत है कि हमारे दिमाग की कोशिकाएं मर रही हैं। दिमाग की कोशिकाएं मरने का नतीजा यह होता है कि हम भूलने लगते हैं, कुछ भी याद नहीं रह पाता। इस बीमारी को अल्झाइमर कहते हैं। यह ऐसी बीमारी है, जो आमतौर पर साठ साल के बाद धीरे-धीरे पनपने लगती है। अल्झाइमर की शुरुआत दिमाग में स्मरण-शक्ति को नियंत्रित करने वाले हिस्से में होती है और जब यह मस्तिष्क के दूसरे हिस्से में फैल जाती है तब भावों और व्यवहार की क्षमता प्रभावित होने लगती है।
अल्झाइमर में याददाश्त की कमी होना, फैसले नहीं कर पाना, बोलने में दिक्कत आना और फिर इसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति आदि शामिल हैं। रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सिर में कई बार चोट लग जाने से भी इस बीमारी के होने का खतरा बढ़ जाता है। दिमाग में एक सौ अरब कोशिकाएं (न्यूरान) होती हैं। हर कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं से संवाद कर एक संजाल बनाती है। इस संजाल का काम विशेष होता है। कुछ सोचती हैं, सीखती हैं और याद रखती हैं। अन्य कोशिकाएं हमें देखने, सुनने, सूंघने आदि में मदद करती हैं। इसके अलावा अन्य कोशिकाएं हमारी मांसपेशियों को चलने का निर्देश देती हैं। अपना काम करने के लिए दिमाग की कोशिकाएं लघु उद्योग की तरह काम करती हैं। वे सप्लाई लेती हैं, ऊर्जा पैदा करती हैं, अंगों का निर्माण करती हैं और बेकार चीजों को बाहर निकालती हैं। अल्झाइमर रोग में कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं, जिससे दूसरे कामों पर भी असर पड़ता है। जैसे-जैसे नुकसान बढ़ता है, कोशिकाओं में काम करने की ताकत कम होती जाती है और अंतत: वे मर जाती हैं।
लक्षण
अल्झाइमर एक गंभीर दिमागी रोग है। इसमें याददाश्त, सोचने की शक्ति और अन्य व्यवहार बदलने लगते हैं। इसका असर सामाजिक जीवन पर पड़ता है। यह याददाश्त खोने (डिमेंशिया) का सबसे सामान्य रूप है। इस रोग में बौद्धिक गतिविधियां भी कम होने लगती हैं, जिससे रोजमर्रा के जीवन पर असर पड़ता है। जैसे याददाश्त खोना। भूलना अल्झाइमर का सबसे सामान्य और शुरुआती लक्षण है। व्यक्ति अक्सर भूलने लगता है और बाद में उसे याद नहीं कर पाता। अल्झाइमर से पीड़ित साधारण शब्द भी भूलने लगता है और उसकी बोली या लिखावट अस्पष्ट होती जाती है। इस मर्ज के रोगी कई बार तो यह भी भूल जाते हैं कि वे कहां हैं, कैसे आए और घर वापस कैसे जाना है।
अल्झाइमर से ग्रस्त मरीज के स्वभाव में तेजी से बदलाव आते हैं। जैसे वह बेवजह रोने लगेगा, गुस्सा करने लगेगा या हंसने लगेगा।
अल्झाइमर का मरीज बेहद निष्क्रिय, टीवी के सामने घंटों बैठने वाला, बहुत अधिक सोने वाला या सामान्य गतिविधियों को पूरा करने में अनिच्छुक हो सकता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति का सामाजिक दायरा संकुचित होता चला जाता है और वह अपने आप में सिमटता चला जाता है। हालांकि बीमारी के शुरुआती दौर में नियमित जांच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है।
ऐसे पाएं काबू
ऐसा नहीं कि अल्झाइमर पर काबू पाया ही नहीं जा सकता। अगर शुरू में इसके लक्षण नजर आने लगें तो इस बीमारी को तेजी से बढ़ने से रोका जरूर जा सकता है। योग, ध्यान, किताबें पढ़ने और रचनात्मक कामों में व्यस्त रह कर इस बीमारी से बचा जा सकता है।
खानपान : खानपान से दिमाग को हमेशा दुरुस्त रखा जा सकता है। इसलिए अल्झाइमर के रोगी का खानपान हमेशा अच्छा होना चाहिए। बादाम, अखरोट और दूसरे सूखे मेवे खाने से दिमाग तेज होता है और याददाश्त बढ़ती है। फूल गोभी के सेवन से दिमाग तेज होता है। इससे हड्डियां भी मजबूत होती हैं।
इसके अलावा अल्झाइमर के दौरान दिमाग में बढ़ने वाले जहरीले बीटा-एमिलॉयड नामक प्रोटीन के असर को ग्रीन टी के सेवन से कम किया जा सकता है। हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, साबुत अनाज, मछली, जैतून का तेल अल्झाइमर रोग से लड़ने में मदद करते हैं।
ये न खाएं : अगर अल्झाइमर हो तो तिल, सूखे टमाटर, कद्दू, मक्खन, चीज, फ्राइड फूड, जंक फूड, रेड मीट, पेस्ट्री और मीठे का सेवन न करें।
योग और व्यायाम : रोजाना व्यायाम और योग करके अल्झाइमर के असर को कम किया जा सकता है। ध्यान करने से भूलने की समस्या पर काबू पा सकते हैं। याददाश्त तेज करने के लिए सर्वांगासन करें। दिमाग तेज करना हो और याददाश्त बनाए रखनी हो तो भुजंगासन करें। एकाग्रता बढ़ाने के लिए कपालभाति प्राणायाम करें। ल्ल