शशि श्रीवास्तव
भोलू नाम का लड़का था। वह सिर्फ नाम से नहीं, स्वभाव से भी भोलाभाला था। उसे हर कोई प्यार करता था। वह भी सभी बड़ों का सम्मान और छोटों को बहुत प्यार करता था। भोलू हर रक्षाबंधन पर अपनी छोटी बहन शीलू को सुंदर-सा उपहार देता था। उसने रक्षाबंधन के उपहार के लिए एक छोटी-सी गुल्लक बना रखी थी। वह उसमें साल भर पैसे डालता रहता था। जब रक्षाबंधन आता तब वह अपनी गुल्लक तोड़ देता और उसमें से जितने भी पैसे निकलते, वह उससे शीलू के लिए उपहार ले आता था। इस बार भी वह शीलू के लिए प्यारा-सा उपहार खरीदना चाहता था, इसलिए उसने रक्षाबंधन से दो दिन पहले ही अपनी गुल्लक तोड़ दी थी। उसने गुल्लक से निकले पैसे गिने, तो उसमें से पूरे एक हजार रुपए निकले। उस दिन उसके स्कूल जाने का समय हो गया था, इसलिए वह सारे रुपए अपनी अलमारी में रख कर चला गया।
जब वह स्कूल पहुंचा तो वहां उसका दोस्त विकास मुंह लटकाए उदास बैठा मिला। जब भोलू ने उससे उसकी उदासी का कारण पूछा, तो वह दुखी मन से बोला, ‘आजकल मां बहुत बीमार है। और तू तो जानता ही है कि पापा ई-रिक्शा चलाते हैं, जबकि दो दिन से ऑटो हड़ताल चल रही है, जिससे पापा की कोई कमाई भी नहीं हुई है।’ इतना कहते-कहते विकास रो पड़ा। रोते-रोते उसने भोलू को आगे बताया कि आज तो मेरी मां की दवा भी नहीं आ सकी। विकास की बातें सुन कर भोलू ने विकास के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- ‘दोस्त मेरे होते हुए तू फिक्र मत कर। कुछ रुपए मेरे पास रखे हैं। उन रुपयों से तुम अपनी मां की दवा खरीद सकते हो। आगे ईश्वर सब ठीक करेगा।’
भोलू की बात सुन कर विकास भावुक हो उठा। वह उसके गालों पर हाथ रखते हुए बोला- ‘भोलू, तू बहुत अच्छा है।’
इस पर भोलू ने कुछ सकुचाते हुए कहा- ‘हां….हां… ठीक है पर तू चिंता न कर।’
भोलू स्कूल की छुट्टी के बाद विकास को अपने घर ले गया और चुपके से उसके हाथों में एक हजार रुपए थमा दिए। उसने उससे यह भी कहा कि बाजार जाकर अपनी मां के लिए दवा खरीद लेना। विकास ने उसका शुक्रिया अदा किया और तुरंत अपने घर की ओर दौड़ पड़ा।
उपहार के पैसे विकास को देने के बाद भोलू चिंता में पड़ गया कि अब शीलू को क्या उपहार दूंगा? अभी वह यह सब सोच ही रहा था कि उसकी नजर फेसबुक चलाते हुए मम्मी पर पड़ी। भोलू फेसबुक पर एक वीडियो देख कर ठिठक गया। उसने मम्मी से कहा- ‘मम्मी दो मिनट के लिए कंप्यूटर से हटोगी?’ और वह उत्साहित होकर मम्मी का हाथ पकड़ कर माउस को हिलाने लगा।
भोलू ने गूगल पर क्राफ्ट सर्च किया, तो उसके सामने कई वीडियो आते चले गए। उसने मन ही मन सोचा कि अब तो वह शीलू को रक्षाबंधन पर अपने हाथ का बना उपहार ही देगा। फिर उसने किचन से एक लोहे का डिब्बा ढूंढ़ा। फिर मां से कुछ रंग-बिरंगे कपड़े लिए। कुछ मां की पुरानी मोतियों की माला ढूंढ़ निकाली। दुकान से एक फेवीकोल का डिब्बा भी खरीद लाया। वह इन सबसे बढ़िया पेन स्टैंड बनाना चाहता था।
सबसे पहले उसने डिब्बे के नाप का पिंक कलर का कपड़ा काटा। फिर उसी कपड़े से डिब्बे को लपेट दिया। फिर डिब्बे को चारों तरफ से चिपका दिया। थोड़ी देर उसे सूखने को छोड़ दिया। फिर नीले रंग के कपड़े की पतली-पतली पट्टियां काटीं और उन्हें डिब्बे के ऊपर और नीचे बार्डर बनाते हुए चिपका दिया। फिर उन्हें थोड़ी देर सूखने के लिए छोड़ दिया। कुछ देर बाद उसने फेवीकोल की मदद से मोतियों को फूल और पत्तियों के आकार में चिपका दिया। कुछ ही समय में एक खूबसूरत पेन स्टैंड बन कर तैयार हो गया था। बाद में भोलू ने पेन स्टैंड को एक अच्छे से गत्ते के डिब्बे में पैक कर दिया था।
जब शीलू ने रक्षाबंधन वाले दिन भोलू को राखी बांधी, तब भोलू ने उसे उपहार का वह डिब्बा पकड़ा दिया था। शीलू उपहार देखने के लिए उतावली हो रही थी। उसने फटाफट उपहार का रैपर फाड़ दिया। डिब्बा खोल कर देखते ही वह खुशी से उछल पड़ी। खुशी से चहकती हुई बोली- ‘भैया यह अब-तक का सबसे सुंदर गिफ्ट है।’ और वह भोलू के गले लग गई थी।
भोलू, शीलू के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला- ‘मुझे पता है, लड़कियों को रंग-बिरंगी चीजें बहुत पसंद होती हैं, इसीलिए तो तेरे मनपसंद रंग का ही गिफ्ट दिया है तुझे।
इसी बीच भोलू की मम्मी बोल पड़ीं- ‘लेकिन भोलू तेरे गुल्लक के रुपए कहां गए, जो तुमने परसों गुल्लक से निकाले थे?’ भोलू कुछ नहीं बोला। उसे अपने दादाजी की बात याद आ गई। दादाजी कहते थे कि कभी किसी की मदद करो तो अपने दूसरे हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। मम्मी ने भोलू को झझकोरते हुए कहा- ‘क्या सोच रहा है बेटा।’
इस पर भोलू चौंकता हुआ बोला- ‘कुछ नहीं मम्मी।’
उसने मम्मी का उस बात से ध्यान हटाने के लिए पूछा- ‘मम्मी यह पेन स्टैंड मैंने बनाया है। कैसा है?’
मम्मी ने डांटते हुए कहा- ‘पहले यह बता कि तूने उन पैसों का क्या किया? कुछ बोलता क्यों नहीं है।’
इस बात पर भोलू ने रोते हुए कहा- ‘मम्मी मैंने कुछ गलत नहीं किया।’
मम्मी ने झल्लाते हुए कहा- ‘तो साफ-साफ बताता क्यों नहीं है। तुझे मेरी कसम है। बता, क्या बात है?’
भोलू भर्राई आवाज में बोला- ‘मम्मी… मैंने वे पैसे अपने दोस्त विकास को उसकी मां की दवा लाने के लिए दे दिए थे।’
इतना सुनते ही उसकी मम्मी की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। मम्मी ने उसे बांहों में भरते हुए गले से लगा लिया।