पारिवारिक पृष्ठभूमि
देवकी नंदन खत्री का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा में हुआ था। उनके पिता लाला ईश्वर दास एक धनी व्यापारी थे, जिनके पूर्वज मुगल शासन में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह के शासनकाल में लाला ईश्वरदास काशी में आकर बस गए थे। घर में संपन्नता के कारण देवकी नंदन खत्री का बचपन खुशनुमा माहौल में बीता। उन्होंने अपना बचपन अपने नाना के घर में बिताया। देवकी नंदन खत्री की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू-फारसी में हुई थी। बाद में उन्होंने बनारस में हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी का भी अध्ययन किया। पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण रियासतों के शासकों में उनके कई दोस्त थे। इसके अलावा फकीर, औलिया और तांत्रिकों से भी उनकी अच्छी दोस्ती थी।

लहरी प्रेस की स्थापना
प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे गया में टेकरी एस्टेट चले गए। बाद में उन्होंने वाराणसी में ‘लहरी’ नाम से एक प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत की और 1898 में हिंदी मासिक ‘सुदर्शन’ का प्रकाशन आरंभ किया। बीसवीं सदी की शुरुआत में देवकी नंदन खत्री और उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद की कई रचनाओं को ‘लहरी’ प्रेस से दुबारा प्रकाशित किया गया।

‘चंद्रकांता’ ने बनाया मशहूर
देवकी नंदन खत्री बचपन से ही सैर-सपाटे के बहुत शौकीन थे। वे लगातार कई दिनों तक चकिया और नौगढ़ के बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों में घूमा करते थे। बाद में इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की पृष्ठभूमि में अपनी तिलिस्मी तथा ऐयारी कारनामों की कल्पनाओं को मिश्रित कर उन्होंने ‘चंद्रकांता’ उपन्यास की रचना की। यह उपन्यास उन्होंने उन्नीसवीं सदी के अंत में लिखा। इस उपन्यास ने देवकी नंदन खत्री को मशहूर बना दिया। यह तिलिस्म और रहस्यों से भरा हुआ उपन्यास था। कहा जाता है कि देवकी नंदन खत्री की इस रचना को पढ़ने के लिए कई गैर-हिंदीभाषी लोगों को हिंदी सीखने को मजबूर होना पड़ा। इस उपन्यास पर ‘चंद्रकांता’ नाम से टेलीविजन धारावाहिक भी बनाया गया, जो बेहद लोकप्रिय रहा। यह धारावाहिक 1994 और 1996 के बीच दूरदर्शन के डीडी नेशनल चैनल पर प्रसारित होता था। उन दिनों जब यह धारावाहिक टीवी पर प्रसारित होता था, तो सड़कें और गलियां खाली पड़ जाती हैं। यही नहीं, देवकीनंदन खत्री ने ‘तिलिस्म’, ‘ऐय्यार’ और ‘ऐय्यारी’ जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया। इस उपन्यास की लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसी कथा को आगे बढ़ाते हुए दूसरा उपन्यास ‘चंद्रकांता संतति’ भी लिखा, जो ‘चंद्रकांता’ की अपेक्षा कई गुना रोचक था। यह उपन्यास भी अत्यंत लोकप्रिय हुआ।

प्रमुख रचनाएं
उन्होंने ‘चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संतति’, ‘काजर की कोठरी’, ‘नरेंद्र-मोहिनी’, ‘कुसुम कुमारी’, ‘वीरेंद्र वीर’, ‘गुप्त गोदना’, ‘कटोरा भर’, ‘भूतनाथ’ जैसी अनेक रचनाएं लिखीं। ‘चंद्रकांता संतति’ के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकी नंदन खत्री ने ‘भूतनाथ’ की रचना की। पर असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छह भाग लिख पाए। उसके बाद के शेष पंद्रह भागों को उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया।

जन्म : 18 जून, 1861- निधन : 1 अगस्त, 1913