शैलेंद्र सरस्वती
बादशाह अमीर शाह नाम के ही नहीं, दिल के भी बहुत अमीर थे। जो भी गरीब उनके दरबार में हाजिर हो कर अपनी गरीबी, तंगहाली, बेरोजगारी का रोना रोता, बादशाह मदद करता। धन देने से पहले वह एक-दो दिन का समय लेता। इन एक-दो दिनों में वह अपने जासूसों के जरिए मालूम कर लेता कि जिसको दान दिया जा रहा है,वह वाकई में जरूरतमंद है या नहीं। इससे असली जरूरतमंदों को ही धन मिल पाता था और जो फर्जी तरीके से धन पाने की सोचता उसे जेल की हवा खानी पड़ जाती।
एक दिन एक फकीर साफ-सुथरा लेकिन फटा-पुराना कपड़ा पहनकर दरबार में पहुंचा और पहरेदार से बोला, ‘बादशाह अमीर शाह से कहो कि उनका फकीर भाई उनसे मिलने आया है।’ यह सुन पहरेदार हैरान हुआ। सोचने लगा कि फकीर का दिमाग तो नहीं चल गया कि बादशाह को अपना भाई बता रहा है। आखिर में जब काफी जांच-परख के बाद पहरेदार को तसल्ली हो गई तो वह बादशाह के पास जा कर बोला कि दरवाजे पर खड़ा एक फकीर आपको अपना भाई बता कर आपसे मिलना चाहता है। यह सुन बादशाह के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई। उसने पहरेदार से कहा, ‘उस बंदे को बाइज्जत मेरे सामने पेश किया जाए।’फकीर के दरबार में आते ही बादशाह शाही तख्त से उठ कर उसको इज्जत से अपने पास बैठाया। सारे दरबारी यह नजारा हैरानी से देखते रह गए। इतनी इज्जत बादशाह ने अब तक किसी को नहीं बख्शी थी। बादशाह ने फकीर से पूछा, ‘अब बताइए भाईजान! आपने यहां आने की क्यों तकलीफ की?’
‘खुदा मेरे भाई को सलामत रखे कि क्या बताऊं भाई कि मैं जिस महल में रह रहा हूं, वह अब गिरने को है। मेरे बतीस खादिम(नौकर) मेरे साथ छोड़ गए और मेरी पांच बेगमें भी अब मेरी सेवा करने से कतराती हैं। अब एक तुम ही हो भाई, जो मेरी कुछ मदद कर सकता है।’
यह सुन बादशाह ने अपने खजांची से कहा, ‘शाही खजाने से मेरे फकीर भाईजान को दो सौ दीनारें अदा की जाएं।’ बादशाह का आदेश सुन फकीर का मुंह लटक गया। उसने उदास नजरों से बादशाह को देखते हुए कहा, ‘यह बात तो मेरी शान के खिलाफ है भाई। सिर्फ दो सौ दीनारें!’ बादशाह ने जवाब दिया, ‘रियासत का खर्चा ज्यादा होने से शाही खजाने में कमी चल रही है…इसलिए मैं आपकी इस समय बस इतनी ही मदद कर सकता हूं।’ यह सुन फकीर ने हंसते हुए बादशाह से कहा, ‘अगर ऐसा है तो फिर तुम मेरे साथ काले बंदरगाह चलो, वहां करोड़ों सोने की खाने हैं। जितना सोना चाहो,ले आना!’
बादशाह ने कहा,‘बात तो आप सही फरमा रहे हैं,लेकिन बीच में जो समंदर आएगा,भला उसे कैसे पार करेंगे?’ ‘उसकी तुम क्यों परवाह करते हो? मेरे पांव पड़ने से वह समंदर भी सूख जाएगा! ‘फकीर का जवाब सुन बादशाह की हंसी छूट गई। उसने तुरंत खजांची से कहा, ‘मेरे फकीर भाईजान को दो सौ दीनारों की जगह हजार दीनारें अदा की जाएं।’जब फकीर हजार दीनारों को लेकर बादशाह को हजारों दुआएं देता दरबार से चला गया तो एक दरबारी ने बादशाह से पूछा, ‘जहांपनाह! आपके और फकीर के बीच जो बातें हुई, उसे हम सब दरबारी समझ नहीं पाए। हम सभी दरबारी चाहते हैं कि हुजूर इसे तफसील से समझाएं।’
बादशाह ने सभी दरबारियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘सुनिए! जिस तरह मैं इस मुल्क का बादशाह हूं उसी तरह वह फकीर दीन (धर्म) का बादशाह है। इस रिश्ते से वह मेरा भाई हुआ। उसने कहा कि उसका महल गिरने वाला है, इससे उसका मतलब था कि बुढापे के कारण उसका शरीर कमजोर हो गया है और मौत कभी भी हो सकती है। बत्तीस नौकरों से उसका मतलब बत्तीस दांतों से था, जिनके गिरने से उसका मुंह पोपला हो गया था। पांच बेगमों से उसका मतलब पांचों इंद्रियों से था।’
‘और हुजूर,पांव पड़ते ही समंदर के सूख जाने का क्या मतलब हुआ?’ एक अन्य दरबारी ने पूछा तो बादशाह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘उसने मेरे ऐसा कहने पर कि शाही खजाने में तंगी है,पर तंज(व्यंग्य) किया था। दरअसल पांव पड़ते ही समन्दर के सूख जाने का मतलब था कि जब मेरे पांव रखते ही शाही खजाना खाली हो गया है तो उसके पैर रखते ही समंदर भी जरूर सूख जाएगा।’
यह सुनते ही बादशाह के साथ सारे दरबारी भी अपनी हंसी रोक नहीं पाए। १