इन दिनों बाजार नकली उपभोक्ता वस्तुओं से कराह रहा है। इससे उत्पादक कंपनियां तो घाटा उठा ही रही हैं, उपभोक्ता भी ठगी के शिकार हो रहे हैं और सरकारें राजस्व से वंचित हो रही हैं। खुली अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता वस्तुओं की सभी के लिए सहज पहुंच के साथ ही नकली उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार चुनौती बनता जा रहा है। उद्योगपतियों के संगठन एसोचैम के एक सर्वे के अनुसार इस समय देश में जाली उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार 2500 करोड़ रुपए को पार कर गया है ।
ऐसोचैम का कहना है कि नकली उत्पादों के बाजार को बढ़ने से रोकने के लिए सरकार को सुधारात्मक उपाय लागू करने होंगे। इसके लिए बौद्धिक संपदा प्रवर्तन के साथ ही कानूनी और न्यायिक ढांचे की खामियों को भी दूर करना होगा। एक मोटे अनुमान के अनुसार करीब 25 प्रतिशत हिस्सेदारी नकली उपभोक्ता वस्तुओं की बाजार में देखने को मिल रही है। माना जा रहा है कि इंटरनेट और ऑनलाइन शॉपिंग के माध्यम से नकली विलासिता वस्तुओं का बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है। विभिन्न चैनलों पर भी ऑनलाइन शॉपिंग के विज्ञापन प्रमुखता से लोगों को अपनी ओर खींच रहे हैं। लगभग सभी डीटीएच संचालकों द्वारा आॅनलाइन कंपनियों से जुड़े चैनलों को प्रमुखता से दिखाया जाता है और तत्काल आर्डर देने पर छूट के नाम पर धड़ल्ले से आर्डर प्राप्त कर लेते हैं। फिर चैनलों पर इसे आकर्षक तरीके से उत्पादों को प्रदर्शित किया जाता है कि लोग प्रभावित हो जाते हैं और बिना सोचे समझे ऑर्डर दे देते हैं।
एक समय जिन्हें विलासिता की वस्तुएं माना जाता था, आज उन्हें जरूरत के रूप में देखा जाने लगा है। इन वस्तुओं की पहुंच सभी वर्ग के लोगों तक आसानी से हो गई है। मोबाइल, कूलर, फ्रिज, टीवी और इसी तरह की वस्तुएं अब लोगों की जरूरत की चीज हो गई हैं। वाशिंग मशीन, ओवन, ओटीजी, मिक्सी, रेडिमेड वस्त्र, नकली ज्यूलरी, इलेक्ट्रिक आइटम आदि से बाजार अटा पड़ा है। एक कमरे के मकान में रहने वालों के लिए भी यह चीजें आम हैं। सामान्य और मध्य वर्ग के परिवारों में भी घर के सदस्यों के पास एक से अधिक सिम के मोबाइल हंै। अब तो एंड्राइड फोन भी आम हो रहे हैं।
इसे गलत भी नहीं माना जा सकता। लोगों के जीवन स्तर में सुधार होना अच्छा है। पर परेशानी का कारण नकली उपभोक्ता वस्तुओं से बाजार का अटा होना है। इन वस्तुओं का टिकाऊपन कम होने के कारण देश में तेजी से इ-कचरा बढ़ रहा है। नकली वस्तुओं के बिकने की एक बड़ी वजह होती है उनका सस्ता होना। इस बात को बड़ी कंपनियों क भी ध्यान में रखना चाहिए। अगर वे अपने उत्पादों को सस्ता कर दें तो काफी-हद तक नकली बाजार से छुट्टी पाई जा सकती है। इसके साथ ही उत्पादकों और सरकार को बाजार पर भी नजर रखनी होगी। नकली उत्पादों की बिक्री पर सख्ती के साथ ही ऐसे प्रयास किए जाने होंगे कि विक्रेता इस तरह के उत्पाद रखने से बचने का प्रयास करे।
होता यह है कि आज लोग जानते हैं कि सस्ता और उनकी पहुंच का उत्पाद अमुक शहर में कहां पर मिलेगा। यह जानकारी ऐसी नहीं है कि कपंनियों या सरकार को न पता हो, पर इस पर रोकथाम कौन करे, यही समस्या का मूल कारण है। कभी पकड़े भी जाते हैं तो अधिकांश मामले पुलिस को ले-दे कर सुलटा लिए जाते हैं। ऐसे में सरकार को इस संबंध में सख्त कानून बनाने होंगे, कड़ी सजा के प्रावधान करने होंगे और उत्पादकों को भी बाजार पर नजर रखनी होगी तभी आम आदमी को नकली उत्पादों से राहत और सरकार का राजस्व बढ़ सकेगा। हमें भी खरीदारी करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि नकली उत्पाद हमारे लिए हानिकारक हैं।