बोर्ड परीक्षाओं की तारीखें घोषित हो चुकी हैं। बच्चों में तनाव बढ़ने लगा है। जिन बच्चों का पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाया होता है, उनमें परीक्षा की तारीखें घोषित होने के बाद अधिक तनाव देखा जाता है। वे रात-दिन लग कर पाठ्यक्रम पूरा करने में जुट जाते हैं। इस चक्कर में उन्हें सेहत संबंधी कई गड़बड़ियों का सामना करना पड़ता है। फिर पाठ्यक्रम भी दिमाग में उलझने लगता है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों को संभालें और परीक्षा के समय उन्हें तनावमुक्त रखें। परीक्षा के दिनों में माता-पिता को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए सुझाव रहे हैं रवि डे।
कहते हैं, परीक्षा शब्द से ही व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का भय पैदा हो जाता है। पता नहीं कि प्रश्नपत्र में क्या पूछा जाएगा, उन सवालों के सही जवाब हम दे पाएंगे कि नहीं आदि शंकाएं मन में उबरवनी शुरू हो जाती हैं। इसके अलावा एक बड़ा दबाव अच्छे अंक प्राप्त करने का भी होता है। आजकल जिस तरह पढ़ाई-लिखाई में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, अध्यापक और अभिभावक दोनों, बच्चों पर लगातार अच्छे अंक हासिल करने का दबाव बनाए रखते हैं। जब बोर्ड की परीक्षाएं होने वाली हों, तब यह दबाव कुछ अधिक बढ़ जाता है। इससे बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है, और वे लगातार तनाव में बने रहते हैं। इस तरह तनाव में, वे बेहतर प्रदर्शन करने की होड़ में अपने पाठ्यक्रम में उलझ जाते हैं। जबकि मनोवैज्ञानिक तथ्य यह है कि बच्चे जितना मुक्त भाव से पढ़ेंगे-सीखेंगे उतना ही उनका बोध का स्तर मजबूत होगा। परीक्षा में अधिक अंक हासिल करने की होड़ और अध्यापकों-अभिभावकों के दबाव में बच्चे विषय के बिंदुओं को समझने के बजाय रटने में लग जाते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास कमजोर होता जाता है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है कि बोर्ड परीक्षाओं के दौरान बच्चों को सहज और संतुलित बने रहने को प्रोत्साहित करें।
अंक का दबाव न बनाएं
हमारे देश में योग्यता का मापदंड बच्चे के परीक्षा में प्राप्त अंक हैं। चाहे आगे की कक्षाओं में मनचाहा विषय लेना हो, किसी अच्छे कॉलेज या विश्वविद्यालय में दाखिला लेना हो, बच्चे के प्राप्तांक देखे जाते हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से अभिभावक भी बच्चों पर दबाव बनाए रखते हैं कि उसे अच्छे अंक लाने हैं। कई माता-पिता इसके लिए बच्चों को तरह-तरह की ट्यूशन दिलाते हैं। उन्हें खेल-कूद आदि से रोक कर दिन-रात पढ़ते रहने को उकसाते रहते हैं। बार-बार पढ़ाई के लिए दबाव बनाने से बच्चा कई बार खिन्न हो जाता है। इससे उसमें किताबों के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है। ऐसे में बच्चों को सहज भाव से पढ़ने को कहें। बेवजह दबाव या तनाव में पढ़ेगा, तो उसे समझने-सीखने में बाधा उत्पन्न होगी। अच्छे अंक आने से न सिर्फ अभिभावक को, बल्कि बच्चों को भी अच्छा लगता है। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। उन्हें अपनी योग्यता के प्रति भरोसा पैदा होता। आगे की पढ़ाई के प्रति वे अधिक उत्साह से रुचि लेते हैं। पर रटंत विद्या के बल पर बच्चों को अच्छे अंक लाने के लिए प्रोत्साहित न करें। उनमें बोध पैदा होने दें। जब बोध पैदा होगा, तो वह मिलते-जुलते तमाम सवालों के जवाब तलाशने में सफल होगा। इस तरह उसका आत्मविश्वास ज्यादा बढ़ेगा। इसलिए अधिक अंक पाने के लिए दबाव बनाने के बजाय उसे इस तरह पढ़ाएं कि उसका बोध स्तर मजबूत हो।
सहज रहें
कई बार कुछ माता-पिता परीक्षा के दिनों में बच्चों को बार-बार ताने मारने वाले अंदाज में पढ़ने को कहते रहते हैं- पढ़ लो नहीं तो फेल हो जाओगे, नहीं पढ़ोगे, तो अपने दोस्तों से पिछड़ जाओगे। परीक्षा के दिन हैं और इसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। इस उमर में तो हम रात-रात भर जाग कर पढ़ा करते थे। ऐसी बातें सुन कर बच्चा झुंझला जाता है। नकारात्मक बातें किसी के भी मन पर हथौड़े की तरह प्रहार करती हैं, फिर वह तो बच्चा है। इसलिए बच्चे से हर समय सकारात्मक बातें करने का प्रयास करना चाहिए। खासकर परीक्षा के दिनों में उसके साथ चिड़चिड़ेपन के साथ बातें कतई न करें। उसके साथ अधिक से अधिक समय बिताएं। उसे खेलने-कूदने, संगीत सुनने, समय पर भोजन करने और सो जाने को कहें। उसकी समस्याओं को जानें कि वह कहां अटक रहा है या कमजोर महसूस कर रहा है, उसे दुरुस्त करने का प्रयास करें। उसे प्रोत्साहित करें कि कोई बात नहीं, घबराने की कोई जरूरत नहीं।
बच्चे के साथ व्यवहार तो सहज रखें ही, प्रयास करें कि घर का माहौल भी सहज बना रहे। इसलिए आपस में तनावपूर्ण बातें करने से बचें। खुशनुमा माहौल बनाए रखें।
समय से भोजन, समय से नींद
परीक्षा के दिनों में तनाव और घबराहट होने की वजह से अक्सर बच्चों का खानपान प्रभावित हो जाता है। उनका मेटाबॉलिज्म यानी भूख और पाचन का चक्र गड़बड़ हो जाता है। ऐसी स्थिति में कुछ बच्चे या तो जरूरत से ज्यादा खाने लगते हैं या कुछ की भूख ही समाप्त हो जाती है। इसी तरह कई बच्चे देर रात तक जाग कर पढ़ते रहते हैं। ये दोनों ही स्थितियां ठीक नहीं हैं। माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों को समय से भोजन करने बिठाएं और समय पर उन्हें सोने को कहें। परीक्षा के दिनों में सहज दिनचर्या बहुत जरूरी होती है।
रात को सोने से पहले गरम दूध में शहद और मुनक्का डाल कर दें। इससे मस्तिष्क में ताजगी ओगी, थकान दूर होगी और नींद अच्छी आएगी। सोते समय उन्हें कोई ऐसा संगीत सुनने को भी कह सकते हैं, जिससे उनका तनाव कम हो, नींद अच्छी आए। आजकल सोते समय सुने जाने वाले संगीत के संग्रह इंटरनेट पर बहुत सारे उपलब्ध हैं।
अंतराल का समुचित उपयोग
परीक्षा की समय सारिणी में दो प्रश्नपत्रों के बीच के अंतराल का समुचित उपयोग करना चाहिए। उन दिनों की पढ़ाई परीक्षा में बहुत काम आती है। जिन पाठों को बच्चे अच्छी तरह समझते हों, उन पर सरसरी नजर डालें और जहां उन्हें कठिनाई पैदा हो रही हो, उन्हें बाद में और ध्यान से पढ़ें। ऐसे पाठों को पढ़ने में बच्चों के साथ बैठें। उनसे कह सकते हैं कि वे उन पाठों को पढ़ कर उन पर आपसे बातचीत करें। जरूरी नहीं कि आप उस विषय के विशेषज्ञ हों, पर जब बच्चे उस पाठ के बारे में आपसे बात करेंगे, उसके बारे में आपको समझाएंगे, तो उनकी समझ भी खुलेगी। इस तरह उन्हें जहां कठिनाई महसूस हो रही होगी, वहां वे सहज होते जाएंगे।
प्रसन्न मन से परीक्षा दें
बच्चों को परीक्षा केंद्र पर खुद छोड़ने और लेने जाएं। सुबह जल्दी जाग कर बच्चों को गरम पानी से नहाने और साफ-सुथरे कपड़े पहनने को कहें। हल्का नाश्ता जरूर दें। गरम दूध, अंडा वगैरह न दें, इससे गैस बनती और शरीर में शिथिलता आती है। इसलिए लस्सी या फलों का रस आदि दें। परीक्षा के लिए निकलते समय उसे प्रसन्न करने वाली बातें करें। किसी भी तरीके से डराएं नहीं, बल्कि उनके मन का भय दूर करें। कई बार माता-पिता खुद परीक्षा वाले दिन सशंकित और डरे हुए होते हैं, इसका बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। बच्चा तनाव में होगा, तो परीक्षा में घबराया रहेगा और उसके सवालों के गलत उत्तर लिखने की आशंका बनी रहेगी। इसलिए बच्चों को जहां तक हो सके परीक्षा केंद्र में प्रसन्न मन ले जाएं और प्रवेश कराएं।