नए साल के पहले दिन एक ही भविष्यवाणी की जा सकती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लंबे राजनीतिक जीवन का यह सबसे महत्त्वपूर्ण साल रहेगा। इस साल में अगर वे परिवर्तन और विकास लाने में सफल होते हैं तो 2019 में उनका मुकाबला कोई नहीं कर पाएगा। नाकाम रहते हैं, तो उनका भविष्य रौशन नहीं है और न ही इस देश का। यह कह रही हूं मैं इस आधार पर कि गए वर्ष के आखिरी दिनों में हमने विपक्ष के तमाम चेहरे देखे जरूरत से कुछ ज्यादा और उनको देख कर, उनकी बातें सुन कर, ऐसा लगा जैसे कोई बहुत पुरानी पिक्चर देख रहे हों, जिसमें अभिनेता भी पुराने थे और उनकी बातें भी।
मोदी का सौभाग्य है कि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कुछ नई चीज नहीं सीखी है। बदलती दुनिया के बदलते पहलुओं से अभी तक वाकिफ ही नहीं हैं। यह कहते हुए लेकिन यह भी कहना होगा कि इस घिसी-पिटी जमात में से कोई भी मोदी को 2019 में हराने के काबिल हो जाएगा, अगर मोदी परिवर्तन और विकास लाने में नाकाम रहते हैं इस वर्ष। मोदी ने नोटबंदी करके साबित किया है कि बड़े आर्थिक फैसले करने से वे डरते नहीं हैं। इसलिए शायद तमाम कठिनाइयों के बावजूद भारत का आम आदमी अभी तक मोदी के इस फैसले का समर्थन करता है, इस उम्मीद से कि भ्रष्टाचार वास्तव में कम हो जाएगा और ऐसा होने से उसका जीवन बेहतर हो जाएगा। प्रधानमंत्री को लेकिन याद रखना चाहिए कि जिस भ्रष्टाचार को इस देश का आदमी सबसे ज्यादा झेलता है, अक्सर तब जब उसको किसी सरकारी अधिकारी या विभाग से वास्ता रखना पड़ता है।
नोटबंदी के बाद सरकारी अधिकारियों के हौसले बुलंद हो गए हैं और भी, क्योंकि उनकी शक्ति इस फैसले के कारण बढ़ गई है। अब अगर कोई दुकानदार या छोटा कारोबारी उनको रिश्वत देने से कतराता है, तो काला धन रखने का आरोप लगा कर उसे सीधा जेल भेजा जा सकता है। सो, बहुत जरूरी है कि प्रधानमंत्री नया साल चढ़ते ही ऐसे कदम उठाएं, जिनसे सरकारी अधिकारियों को नियंत्रण में रखा जा सके और सरकारी भ्रष्टाचार कम हो। वरना माहौल ऐसा बन गया है नोटबंदी के बाद जैसे कि फिर लौट कर आ गया हो वही इंस्पेक्टर राज, जिसने दशकों तक भारत के ईमानदार कारोबारियों को आगे बढ़ने से रोक रखा था।
महाचोर, भ्रष्ट अधिकारियों के चंगुल में अव्वल तो फंसते नहीं हैं और अगर फंस भी गए तो एक-दो करोड़ रुपए खिला कर उनको चुप करा सकते हैं। फंसते हैं ईमानदार भारतवासी, जो रिश्वत देने के काबिल नहीं होते। सो, इंस्पेक्टर राज को दोबारा आने से रोकना बहुत जरूरी है। इसके बाद प्रधानमंत्री को ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिनसे भारत में बिजनेस करने के लिए माहौल बेहतर हो जाए, क्योंकि ऐसा अगर नहीं होता है, तो किसी हाल में नहीं पैदा होंगे रोजगार के नए अवसर, जिनकी देश के नौजवानों को सख्त जरूरत है। अर्थशास्त्री अनुमान लगाते हैं कि भारत को हर वर्ष पैदा करनी होंगी कम से कम एक करोड़ नई नौकरियां। सरकारी नौकरियां इस तादाद में पैदा नहीं हो सकती हैं, क्योंकि सरकारी कारखाने तकरीबन सारे घाटे में चल रहे हैं और सरकारी दफ्तरों में वैसे भी मुलाजिम इतने ज्यादा हैं कि जो काम एक आदमी कर सकता है उसके लिए रखे गए हैं कम से कम दस लोग।
ऐसा भी नहीं है कि इन लाखों सरकारी अधिकारियों के होते हुए देश का भला हो रहा हो। यथार्थ यह है कि जो बच्चे 2017 में पैदा होंगे भारत में उनका जीवन इतना कठिन होगा कि अगर वे इतने खुशकिस्मत हों कि पांच वर्ष तक जीवित रह पाएं तो ऐसे स्कूलों में पढ़ाई करने पर मजबूर होंगे, जिनमें पढ़ाई सिर्फ नाम के वास्ते होती है। स्कूल खत्म करने पर अगर वे अपने नाम लिख सकें, तो उनको शिक्षित माना जाता है और सौ तक गिन पाएं तो गनीमत। वह भी ऐसे दौर में जब विकसित देशों में कंप्यूटर की शिक्षा पहली कक्षा से दी जाती है। शिक्षा हासिल करने के बाद भी जो नौजवान अशिक्षित ही रहते हैं, उनको अच्छी नौकरियां कैसे मिलेंगी? प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी ने खुद कई बार स्वीकार किया था अपने भाषणों में कि भारत इतना बेहाल है कि हर तरह के सुधार लाने होंगे। इसलिए समझना मुश्किल है कि उनका आधे से ज्यादा कार्यकाल पूरा होने के बाद भी इन सुधारों का नामो-निशान क्यों नहीं जमीनी तौर पर दिख रहा है।
योजनाओं की घोषणाएं बहुत हुई हैं, सो स्वच्छ भारत का लक्ष्य भी है हमारे सामने और खुले में शौच को बंद करने का भी, लेकिन जमीनी तौर पर यह परिवर्तन अभी तक दिखता नहीं है। मैंने 2016 का आखिरी सप्ताह समंदर किनारे महाराष्ट्र के एक गांव में बिताया, सो रोज समंदर किनारे टहलने का मौका मिला। इतना खूबसूरत है यह गांव कि यहां पर्यटक आते हैं दूर-दराज से, लेकिन इतना गंदा है कि स्वच्छ भारत का थोड़ा भी असर नहीं दिखता। रही बात खुले में शौच रोकने की, तो इस योजना की खबर तक नहीं पहुंची है इस गांव में, सो सुबह-शाम कतारें देखने को मिलती हैं खुले में बेझिझक शौच करते लोगों की, बावजूद इसके कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने अमिताभ बच्चन को इस गंदी आदत को तोड़ने के प्रचार में नियुक्त किया है।
सो, बहुत काम है करने को इस वर्ष प्रधानमंत्रीजी आपके लिए। दुआ करती हूं कि इन कार्यों में भी आप वही दृढ़ता दिखाएंगे, जो नोटबंदी में हमने देखी है।