सारा राय की कहानियों का मिजाज अपने समकालीनों से अलग है। उनमें हमारे आसपास की दुनिया नजर आती है। वे हमसे सीधे बात करती हैं। उनकी कहानियां न तो किसी नैतिक ऊंचाई को लक्ष्य बना कर चलती हैं और न ही बौद्धिकता का आडंबर रचती हैं। वे इस तरह हमारे बीच होती हैं कि उनके पात्र जाने-पहचाने-से लगते हैं। उनमें जिंदगी के मर्म छिपे होते हैं। इन कहानियों का दायरा काफी विस्तृत है, जिसमें पेड़-पौधों, नदी-झरनों और मनुष्य के मन की परतों से लेकर पूरी कायनात मौजूद है। एक नई आत्मीय शैली, जो पाठक को चकित करती है।
सारा राय के नए संग्रह भूलभुलैयां और अन्य कहानियां में कुल बारह कहानियां हैं। इनमें मानवीयता का विस्तार है। अगर साहित्य का काम अपने समय को परखना और उसकी चौकसी करना है, तो सारा राय की कहानियां यह काम बखूबी करती हैं। अगर मुक्तिबोध के शब्दों में कहें कि लेखक आत्मा का गुप्तचर होता है, तो सारा राय ऐसे खतरे खूब उठाती हैं। उनकी कहानियां स्वाभिमान, गरिमा और मानवीय संबंधों की गहरी पड़ताल करती हैं। किसी भी अच्छे साहित्य का काम है अपने समाज की जटिल परतों को उघाड़ना। सारा राय की कहानियां इसी तरह आती हैं- अंधेरों और उजालों के बीच, आत्मीयता और गरमाहट के बीच।
संकलन की पहली कहानी ‘थार मरु’ किसी पहाड़ी नदी की तरह बहती जाती है और हर कदम पर एक खूबसूरत भू-दृश्य छोड़ जाती है। ‘…वह थार मरु था, मीलों तक फैला। रेत ही रेत। रेत से लदी आंधियां आती थीं। सपाट भूगोल का चेहरा मिटता था और बनता था। कैसे लगे थे टीले। जैसे सचमुच जिंदा हों। वे सिर्फ बालू के टीले नहीं थे। वे सांस लेते, जागते जीव थे। सुबह की हवा उनकी कोमल गोलाइयों को सहलाती थी तब वे लहरों से चमचमा उठते थे। उन पर लगी छोटी-छोटी कंटीली झाड़ियां और पेड़ों के ठूंठ धूप की तेजी में सिहरने लगते।’
भाषा की यह सघनता ही सारा राय की कहानियों की खूबसूरती है। तुरंत अपने घेरे में ले लेने वाली आत्मीयता। इन कहानियों में ऐसे पात्र हैं, जो भले हमारे न हों, पर हमारे जीवन के आसपास के लगते हैं। अच्छे साहित्य की पहचान है उसके पास हमारे समय की जटिल परतों को आरपार भेद सकने की दृष्टि का होना। यही वजह है कि जब वह बियाबान की राधा के बहाने कहानी बुनती है, तो जिंदगी नई शक्ल में मिलती है। जहां यादें खामोशी से सुलगती हैं। सारा राय के कथा अनुभव जैसे खुद उनके लिए, वैसे पाठकों के लिए एक अंदरूनी वारदात हैं। वे पाठकों को बड़े भरोसे के साथ उन जगहों पर ले जाती हैं, जहां निपट अंधेरा है- बाहर-भीतर।
‘बियाबान’ कहानी में वे कहती हैं- ‘हम नीचे देखते हैं- एक खामोश बच्ची और एक खामोश औरत। हम नीचे सड़क को देखते हैं, स्कूल को, अपने घर को, उस पूरी बस्ती को, जहां इतने लोग रहते हैं। मुझे लगता है मैं यह नजारा इतनी सफाई से पहली बार देख रही हूं।’ इनकी कहानियों पर निर्मल वर्मा की टिप्पणी बहुत सटीक है। वे कहते हैं- ‘सारा राय की कहानियों का अवसाद किसी बाहरी ट्रेजेडी या भीतर के किसी झुलसे पैशन से उत्पन्न नहीं होता, वह हवा के भीने झोंके की तरह याद आता है, किसी एक घटना या दुर्घटना के घाव से रिसता नहीं, स्मृति के खुरंड को हल्के से खुजलाता हुआ बह जाता है। वह कहीं टिकता नहीं। सारा राय की कहानियों में प्रकृति चुप कदमों से प्रवेश करती है।’
उनकी हर कहानी के बिंब अलग-अलग हैं। संकटों और चुनौतियों भरी जिंदगी के उतार-चढ़ाव में एक अंतर्निहित लय है। कहानियां नदी की तरह हैं, जो धीरे-धीरे बहती रहती है। कहानियां कोई घोषणा नहीं करतीं। कोई रास्ता नहीं दिखातीं। सतहों के नीचे झांकने देती हैं। आप तय कर लें कि कौन-सा टुकड़ा आपका अपना है। निर्मल वर्मा कहते हैं- ‘सारा राय नारीत्व के प्रति अतिरिक्त रूप से अक्रांत या सम्मोहित नहीं हैं, इसलिए वह अलग से प्रदर्शन या विद्रोह की मुद्रा में प्रकट न होकर मेहंदी की तरह उनकी कहानियों में रची-बसी दिखाई देती है।
वह प्रमाणित कुछ नहीं करती, इसलिए हमारा ध्यान अपनी ओर नहीं, उन चीजों के प्रति आकृष्ट करती है, जो नारी स्पर्श के कारण एक नया आयाम, एक गहराई, एक विचित्र लयात्मकता ग्रहण कर लेती है।’
‘अबाबील की उड़ान’ ऐसी ही कहानी है। यह स्त्री जीवन की भीतरी तहों में दाखिल करती है और अपने विविध रंगों और छवियों के साथ मौजूद है। ‘क्या यह अबाबील थी? भाई ने बताया था कि अबाबील सारी चिड़ियों में सबसे ऊंची उड़ती है, वही एक चिड़िया है, जो एकदम मुक्त है, शिकार उसे पकड़ नहीं सकता।’ ‘पी. सुंदरम की शाम’ हो या ‘अमरवल्लरी’ या फिर ‘बारिश’- तमाम कहानियां बहुरंगी और विविध भावना संसार की सर्जना करती हैं। इसलिए उनके कथा-संसार में केवल मनुष्य नहीं, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नदी-नाले सभी जीवित रूप में मौजूद हैं।
‘अमरवल्लरी’ कहानी जैसे प्रकृति की गाथा है। प्रकृति के मरने का शोक। ‘सुना है अब यहां कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनेगा। ऊंची-ऊंची जगमगाती हुई ‘हाई राईज’ इमारतें, जिनकी शीशे की दीवारें आईना बन कर आसमान को ललकारेंगी। बुलडोजर आएंगे, आरा मशीनें और ट्रक, जिसमें र्इंट-गारे-लक्कड़ का मलबा भर-भर के यहां से जाएगा। पुराने और विशाल पेड़- ढाई-ढाई फुट चौड़े तने वाले- दर्दनाक कराह के साथ गिरेंगे। तनों की बोटियां की जाएंगी, अंदर से लहू के रंग की, जो ट्रकों में लाद कर रवाना होंगी और कुछ दिनों तक हवा में कटी लकड़ी और कुचले पत्तों की बू के अलावा कुछ नहीं होगा।’
सारा राय की कहानियां जीवन से उपजी हैं, जिनमें सारे रंग मौजूद हैं। यह अपनी अस्मिता, अपने अस्तित्व, संस्कार और संस्कृति के साथ मनुष्यता को बचाए रखने की कहानी है।
निवेदिता
भूलभुलैयां और अन्य कहानियां: सारा राय; सूर्य प्रकाशन मंदिर, नेहरू मार्ग, बीकानेर; 250 रुपए।