देश में एक तरफ शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी बढ़ी है, तो दूसरी तरफ स्कूलों और संस्थानों को काम करने लायक शिक्षक और युवक नहीं मिल रहे हैं। हाल ही के एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि देश के ज्यादातर शिक्षक मौजूदा शिक्षा-व्यवस्था को रोजगार के मापदंडों के मुताबिक नहीं मानते। इसी वजह से रोजगार बाजार की मांग और शिक्षित युवाओं की उपलब्धता के बीच कोई तालमेल नहीं दिख रहा।
सर्वेक्षण से शिक्षकों की यह आम राय उभरी है कि सत्तावन फीसद भारतीय छात्र शिक्षित होने के बावजूद कोई रोजगार पाने लायक नहीं बन पाते। करीब पचहत्तर फीसद शिक्षक इस पक्ष में बताए जाते हैं कि उद्योग की जरूरतों के अनुरूप पाठ्यक्रमों को फिर से बनााया जाना चाहिए। इसी क्रम में शिक्षा-व्यवस्था में आईसीटी (इन्फार्मेशन ऐंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी) को शामिल करने पर भी जोर दिया गया है। भारत के शिक्षित युवाओं की काबिलियत को लेकर पहले भी सवाल उठाए जाते रहे हैं।
जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा ने कुछ समय पहले कहा था कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके निकल रहे युवा उद्योग की जरूरतों के मुताबिक नहीं पाए जा रहे हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हर स्तर पर योग्य शिक्षकों की कमी है। राजकीय विद्यालयों में विज्ञान शिक्षकों की भर्ती के लिए उप्र लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित चयन परीक्षा का नतीजा इस संकट की गंभीरता का संकेत दे रहा है। आयोग ने विज्ञान शिक्षकों के एक हजार पैंतालीस रिक्त पद भरने के लिए परीक्षा आयोजित की थी, जिसमें कुल पंद्रह हजार चार सौ छत्तीस अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हुए।
विडंबना है कि इसमें सिर्फ चौरासी अभ्यर्थी शिक्षक पद पर नियुक्ति के काबिल निकले। एक तरफ बेरोजगारी का ढिंढोरा पीटा जाता है, दूसरी ओर रिक्तियां भरने के लिए योग्य अभ्यर्थी नहीं मिल रहे! कुछ दशकों में योग्य शिक्षकों की कमी का संकट गंभीर होता चला गया। इस दरम्यान प्राथमिक विद्यालयों में योग्यता के मानक नजरअंदाज करके कई लाख ऐसे शिक्षक नियुक्त कर लिए गए, जिनकी योग्यता संदिग्ध है। ये शिक्षक शिक्षा प्रणाली के लिए गले की हड्डी बने हुए हैं।
इसका असर माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तर पर पड़ना स्वाभाविक है। माध्यमिक विद्यालयों में, खासतौर पर विज्ञान, गणित और अंग्रेजी के योग्य शिक्षकों की चिंताजनक कमी है। डिग्री कॉलेजों का अकाल है और तीस-चालीस फीसद पद रिक्त हैं। सरकार को इस संकट के समाधान को प्राथमिकता देनी चाहिए।
प्रदेश के राजकीय कॉलेजों में कम्प्यूटर शिक्षकों के 1673 पदों पर भर्ती के लिए कराई गई परीक्षा में छत्तीस अभ्यर्थी ही उत्तीर्ण हुए। कुल 10,801 अभ्यर्थियों के सापेक्ष उत्तीर्ण होने वालों की संख्या केवल दशमलव तैंतीस प्रतिशत है। बेरोजगारों की सेना वाले उत्तर प्रदेश में सफलता का यह न्यूनतम आंकड़ा अपने आप में सवाल है कि मेधा की कमी है या शिक्षा-व्यवस्था में खामी है या फिर शिक्षा का स्तर समय के साथ कदमताल में पिछड़ रहा है।
इस तर्क से नहीं बचा जा सकता कि एलटी ग्रेड के तहत कम्प्यूटर शिक्षकों के लिए परीक्षा पहली बार हुई थी और अभ्यर्थी इससे पूरी तरह परिचित या अभ्यस्त नहीं थे। पात्रता है बीटेक के साथ बीएड। इतने बड़े पैमाने पर अभ्यर्थियों की विफलता का सबसे अहम पक्ष नजर आता है कि क्या बीटेक वाले हाईस्कूल के छात्रों को भी कम्प्यूटर की शिक्षा देने के योग्य नहीं होते। अगर ऐसा है तो चिंताजनक बात है।
अब दूसरा महत्त्वपूर्ण बिंदु है पात्रता। बीटेक पूर्ण करने के बाद छात्रों के सामने तीन विकल्प होते हैं- नौकरी पाना, प्रशासनिक सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना या फिर उच्च शिक्षा के लिए एमटेक में प्रवेश लेना। बीएड चुनने वालों की संख्या बेहद कम होती है। 1673 पदों के लिए अभ्यर्थियों की संख्या ग्यारह हजार से कम रहना इस बात को प्रमाणित करता है।
उत्तर प्रदेश के राजकीय माध्यमिक कॉलेजों के लिए एलटी ग्रेड के अहम विषयों में योग्य शिक्षक नहीं मिल रहे हैं।
गणित विषय के आधे से अधिक पद खाली हैं। उप्र लोक सेवा आयोग ने इन कॉलेजों में रिक्त 1035 पदों के लिए लिखित परीक्षा कराई थी, पर केवल 435 अभ्यर्थी सफल हो सके हैं। छह सौ पदों के लिए योग्य अभ्यर्थी नहीं मिल सके हैं, जबकि इन पदों की परीक्षा 29,690 प्रतियोगियों ने दी थी। यूपीपीएससी ने 29 जुलाई 2018 को एलटी ग्रेड की लिखित परीक्षा कराई थी। प्रदेश के उनतालीस जिलों में हुई परीक्षा में 22,621 पुरुष और 7,069 महिला अभ्यर्थी शामिल हुए थे। यह प्रश्नपत्र भी डेढ़ सौ अंकों का था। घोषित नतीजे में पुरुषों के 561 पदों के लिए मात्र 398 अभ्यर्थी औपबंधिक रूप से चयनित हुए हैं। इस वर्ग के 163 पद खाली हैं। महिलाओं के 474 पदों में सिर्फ सैंतीस अभ्यर्थियों का चयन औपबंधिक रूप से हुआ है। 437 पद खाली हैं।
ये आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद उद्देश्यहीन शिक्षा की उपयोगिता न व्यक्ति के जीवन में है और न राष्ट्र के चहुंमुखी विकास में उसका कोई योगदान है। इसलिए सभी स्तरों पर शिक्षा को व्यक्ति और राष्ट्र के विकास से जोड़ने की आवश्यकता है। दरअसल, हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि लोगों को डिग्रियां तो मिल जाती हैं, पर वे काम के लायक नहीं होते। इसलिए शिक्षा-व्यवस्था को देश और दुनिया की बदलती जरूरतों के अनुरूप अद्यतन होते रहना चाहिए। सरकार को देखना होगा कि उद्योग की जरूरतों के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था बनाते हुए वह देश में उपलब्ध युवा शक्ति का सर्वोत्तम इस्तेमाल भी सुनिश्चित करे।
इस बजट में स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर निर्मित करने से लेकर युवाओं को प्रशिक्षण देकर विदेश में रोजगार उपलब्ध कराने तक कई प्रावधान किए गए हैं। स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली ‘स्टार्टअप’ कंपनियों के लिए भी कर छूट की घोषणा की गई है। इसके अलावा सरकार ने खासकर मानविकी विषयों की पढ़ाई करने वाले छात्रों को रोजगार के सीमित विकल्पों को देखते हुए बजट में रोजगारपरक प्रशिक्षण देने की नई योजना का एलान किया है।
इसके लिए उच्च शिक्षा के डेढ़ सौ संस्थानों में विशेष डिग्री या डिप्लोमा के पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे। इनको उद्योगों के साथ अप्रेंटिसशिप कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा। यानी इन पाठ्यक्रमों में नामांकन कराने वाले छात्र पढ़ाई के साथ-साथ संबंधित उद्योगों में प्रशिक्षण का लाभ भी उठा पाएंगे और इस दौरान उन्हें हर महीने वेतन भी मिलेगा।
इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों के लिए बजट ने रोजगार के लिए नया अवसर उपलब्ध कराया है। इसके लिए सभी स्थानीय निकायों में नए इंजीनियरों को एक साल काम करने का अवसर मिलेगा। इसके साथ ही विदेश में शिक्षक, डॉक्टर, नर्स और बच्चों तथा बुजुर्गों की देखभाल करने वालों की बड़ी मांग को देखते हुए विशेष प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी आधारभूत संरचनाओं के रखरखाव की जरूरत को देखते हुए युवाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण की योजना तैयार करेगी। इसके साथ ही बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विरासतों की देखभाल में युवाओं के लिए रोजगार के नए दरवाजे खोलने का ऐलान किया गया है। दरअसल, देश में विरासतों की देखभाल के लिए विशेषज्ञों की बेहद कमी है।
