विदेश मंत्री एस जयशंकर और इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव, नागर, सुशिक्षित और मृदुभाषी हैं। जयशंकर का विदेश सेवा में एक विशिष्ट करिअर रहा है। वहां उन्हें उदारवादी माना जाता था। वैष्णव साहब रेलमंत्री के अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी हैं। वे सिविल सेवा में थे, इस्तीफा दिया, निजी क्षेत्र में शामिल हुए, अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया और संसद सदस्य के रूप में वापस लौटे।
मुझे पता है कि जयशंकर की अर्थशास्त्र में रुचि है। वैष्णव ने वार्टन बिजनेस स्कूल से स्नातक के रूप में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया है। दोनों ही भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति से परिचित हैं। उन्होंने हाल ही में टेलीविजन चैनल, एनडीटीवी, द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में इस विषय पर बात की।
आंकड़ों का आतंक
संख्याएं सबसे बेहतरीन दिमागों को भी भ्रमित करने का माध्यम हैं। सबसे पहले, जयशंकर ने अर्थव्यवस्था के आकार पर गर्व जाहिर किया: ‘आज हम 800 अरब डालर के व्यापार के साथ चार ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था हैं… अगर आप भारत में विदेशियों के निवेश को देखें…’। मगर हकीकत इससे कहीं अलग है। हम अभी चार ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था नहीं हैं। हम पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की ओर, उस संख्या को पार करने के लिए, हांफते हुए भाग रहे हैं- वित्तमंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार ने पिछले छह वर्षों में लक्ष्य को तीन बार बदला है। व्यापार पर, 2023-24 के अंत में, हमारा व्यापारिक निर्यात 437 अरब डालर और आयात 677 अरब डालर था। व्यापार घाटा 240 अरब डालर का था। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2021-22 में 84.84 अरब डालर से घटकर 2023-24 में 70.95 अरब डालर हो गया है।
जयशंकर ने ‘लाभ पहुंचाने की हमारी क्षमता… खाद्य और पोषण सहायता’ की प्रशंसा की। अगर वे प्रति व्यक्ति पांच किलो राशन का उल्लेख कर रहे थे, जो मुफ्त में वितरित किया जाता है, तो मुझे लगता कि यह व्यापक संकट और कम मजदूरी का संकेत है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। उन्होंने भारत की ‘कोविड के दौरान टीकों का सबसे कुशल उत्पादक और आविष्कारक’ होने के लिए भी, प्रशंसा की। भारत में आविष्कार किया गया एकमात्र टीका था कोवैक्सिन, जिसने लगभग 80 फीसद प्रभावशीलता दिखाई। अन्य टीके, कोविशील्ड की प्रभावशीलता लगभग 90 फीसद थी और इसे आक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा लाइसेंस दिया गया था। उपयोग में लाए गए 200 करोड़ टीकों में से 160 करोड़ कोविशील्ड थे।
मजबूत स्तंभ नहीं
वैष्णव साहब ने भी भारत के ‘6 से 8 फीसद की निरंतर वृद्धि दर हासिल करने’ को लेकर अपने विचार साझा करते हुए कोई कम उत्साह नहीं दिखाया। उन्होंने ‘चार स्तंभों’ की पहचान की: पूंजी निवेश, विनिर्माण, समावेशी विकास और सरलीकरण। जबकि, अगर हम आंकड़ों पर गौर करें, तो भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर पिछले छह वर्षों में औसतन 4.99 फीसद रही है, लेकिन इसमें कोविड-प्रभावित वर्ष भी शामिल है। केंद्र सरकार और सार्वजनिक उद्यमों द्वारा पूंजीगत व्यय वास्तव में 2019-20 में जीडीपी के 4.7 फीसद से घटकर 2023-24 (मोदी का दूसरा कार्यकाल) में 3.8 फीसद हो गया। सकल घरेलू उत्पाद के फीसद के रूप में विनिर्माण भी 2014 में 15.07 फीसद से घटकर 2019 में 13.46 फीसद और 2023 में 12.84 फीसद हो गया।
समावेशी विकास बहस का मुद्दा है, जिसे संक्षिप्त टिप्पणी में साबित या खारिज नहीं किया जा सकता, इसलिए मैं इस पर बात करने से परहेज करूंगा। और, सरलीकरण पर आज दस साल पहले की तुलना में, खासकर नियामक कानूनों के तहत, अधिक नियम और कानून हैं। किसी भी चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी या कानूनी व्यवसायी से पूछिए, तो वे आपको आयकर, जीएसटी, कंपनी कानून, आरबीआइ विनियम, सेबी विनियम आदि से संबंधित कानूनों में नियमों और विनियमों- और जटिलताओं- के बड़े पैमाने पर जोड़े जाने के बारे में बता देंगे। क्या आपने हाल ही में पासपोर्ट के लिए आवेदन किया या कोई बिक्री करार पंजीकृत किया या बैंक खाता खोला है? मैं इन सब जगहों पर आवश्यक हस्ताक्षरों की संख्या देख कर हैरान हूं।
वास्तविकता की जांच करें
जयशंकर और वैष्णव साहब 1991 में उदारीकरण के बाद से देश में हुई प्रगति पर गर्व कर सकते हैं। यह आर्थिक आजादी की सुबह थी। खासकर, 1997 (एशियाई वित्तीय संकट), 2008 (अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट), 2016 (नोटबंदी) और 2020 (कोविड) के दौरान कुछ बाधाएं आर्इं। फिर भी, उसके बाद की सरकारें लगातार पिछली सरकारों के कंधों पर खड़े होकर ही निर्माण के और पत्थर जोड़ने में कामयाब होती रही हैं। कोई भी सरकार ऐसी स्लेट लेकर शुरू नहीं हुई, जो गंदगी से भरी रही हो, उसे साफ कर दिया और लिखना शुरू कर दिया- जैसा कि मोदी सरकार हमें विश्वास दिलाना चाहती है। कोविशील्ड टीके को ही लें: सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की स्थापना 1996 में हुई थी, इसने विशाल क्षमता का निर्माण किया और जैविक उत्पादों के निर्माण में बहुत बड़ा अनुभव प्राप्त किया। जब कोविड काल आया, तो यह एस्ट्राजेनेका तकनीक को अपनाने और दुनिया में टीकों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बनने के लिए तैयार था।
जेएएम को ही लें- जो जनधन खाते, आधार और मोबाइल के लिए संक्षिप्त नाम है। ‘नो-फ्रिल्स बैंक अकाउंट’ (शून्य धनराशि खाता) के बीज आरबीआइ के दो गवर्नरों- डा एस रंगराजन और डा बिमल जालान (1992-1997, 1997-2003) ने बोए थे और उनके वक्त में लाखों खाते खोले गए थे। पहला आधार नंबर 29 सितंबर, 2010 को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआइ) के मार्गदर्शन में जारी किया गया था। मोबाइल क्रांति तब शुरू हुई, जब 31 जुलाई, 1995 को पहली ‘काल’ की गई।
अगर आप अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को जानना चाहते हैं, तो आपको निश्चित रूप से मंत्रियों द्वारा की गई प्रशंसा सुननी चाहिए (यह आपकी क्षमता को बढ़ाएगी), मगर हर महीने प्रकाशित होने वाले आरबीआइ के बुलेटिन में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर छपे लेखों को भी पढ़ना चाहिए।