किसके पास सही समय पर कहने के लिए सही शब्द होते हैं? शायद बहुत कम लोगों के पास। पर दूसरी तरफ हमारे पास शब्दों के सिवा और है भी क्या?
शब्द ही वास्तव में हमारा संपूर्ण व्यक्तित्व हैं। वे हमें परिभाषित करते हैं- हमारी सोच, कल्पना और कर्म का प्रसार करके सजीव करते हैं। जब तक हम शब्द गुनते रहते हैं, सुनते रहते हैं, बोलते रहते हैं तब तक हम जीवित रहते हैं। उनके जाते ही निष्प्राण हो जाते हैं। प्राणवायु हैं मुंह से निकले शब्द। आखिरी सांस से भी कुछ टूटे-फूटे शब्द ही निकलते हैं।

शब्द एक को दूसरे से जोड़ते हैं। शब्द शृंखला वास्तव में मानव शृंखला को गूंथती है, एक अदृश्य धागे की तरह। और जब शब्द गायब हो जाते हैं तो यह शृंखला स्वत: ही बिखर जाती है। मूकता टूट लाती है। जब हम चुप हो जाते हैं तो सामने वाले को साफ जाहिर हो जाता है कि हमने अपने को उससे अलग कर लिया है। वह अगर दुश्मन नहीं है तो मित्र भी नहीं है- यानी हमारी शब्द शृंखला से टूट कर अलग हो गया है।

शब्द खुद मरते ही नहीं, बल्कि मारते भी हैं। शायद शब्द मनुष्य द्वारा निर्मित हथियारों में सबसे विध्वंसकारी हथियार है। वह अमृत भी है और विष भी- ऐसा अमृत, जो क्षण भर में विष या विष से अमृत बन जाता है। इसीलिए जब भी शब्द हो तो वह सही शब्द ही होना चाहिए। जरा-सी भी चूक मनोहर ताल को तांडव में बदल देती है।

शब्दों के जरिए कोई नायक बन जाता है, तो कोई खलनायक। एक के शब्द आपसी एकजुटता बढ़ाते हैं, तो दूसरे के उस पर क्रूर प्रहार कराते हैं। वैसे शब्द मन को व्यक्त करते हैं। निश्छल मन अपशब्द कभी नहीं उगल सकता है, जबकि कटु शब्द हृदय में निहित कटुता से जन्म लेते हैं। जननायक के हृदय को विवेक का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। विवेकशील रहना विशिष्ट दायित्व है और उसको निभाना उसका सर्व प्रथम कर्तव्य है। पर जब वह अपने कर्तव्य से हट जाता है तो धर्म हानि होनी शुरू हो जाती है। शब्द अपशब्द बन कर उभरने लगते हैं। सही समय पर भी वह गलत शब्दों का चयन करने लगता है। इससे शृंखला में टूट शुरू हो जाती है और फिर अचानक ही समाज ध्वस्त हो जाता है। धड़ाम से गिरते ढांचे के शोर को वह अपनी जीत का उद्घोष समझने लगता है।

शब्दों की तलवारबाजी सबसे घातक युद्ध है। इसमें सब मारे जाते हैं- बहस करने वाले और बहस सुनने वाले भी। बहस माहौल के प्राण खींच लेती है और जनचेतना को छिन्न-भिन्न कर देती है। किसी के हाथ कुछ ठोस नहीं आता है। खुद धूल फांक कर दूसरे को धूल चटाने की फिराक में सींग लड़ाए हुए वाक-पहलवान क्रमश: अपने घुटनों पर दम तोड़ देते हैं।

किसी भी समाज में जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जब सही शब्दों का उपयोग लुप्त होने लगता है तो साहित्यकारों और लेखकों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। साहित्य के पास हमेशा सही वक्त के लिए उपयुक्त शब्द होते हैं। अगर हम इतिहास को उठा कर देखें तो पाएंगे कि स्थायी सृजन वही रहा है, जिसने किसी ऐतिहासिक पल की गुत्थम-गुत्था के दौरान वे शब्द दान दिए, जिनसे धूल भरी आंधी से लड़खड़ाए हुए समाज को गुबार से निकलने का रास्ता साफ हुआ था। सृजनकर्ता ने अपनी कृति से समाज को वह कल्पना दी, जो कि कल्पना होते हुए भी हमारी असल वास्तविकता थी।

वेदों ने देवताओं, पितृ, ऋत्त और धर्म की कल्पना की, उनको परिभाषित किया। उनका सृजन मूलत: साहित्यिक था, पर आज हमारे जीवन का यथार्थ है। आज ही नहीं, इस यथार्थ की लंबी और गौरवशाली परंपरा से हमारा समाज लभान्वित हुआ है। उपनिषद, पुराण, शास्त्र, महाकाव्य आदि किसी राजा या सेनापति या फिर लोकप्रिय नेता/ नायक ने नहीं प्रकट किए थे। रचनात्मकता उनके बस की है भी नहीं। वे रचनात्मकता को अपने सीमित लक्ष्यों के लिए उपयोग ही कर सकते हैं, लोक कल्पना को उद्वेलित करने के लिए।

रामराज्य की जो चर्चा राजनीतिक हल्कों में जोश और घमंड से होती है, वह सृजन सम्राट वाल्मीकि और तुलसी की देन है। शब्द कितने प्रभावी होते हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तुलसी ने राम के आगे मर्यादा पुरुषोत्तम लगा कर प्रभु की महिमा को विशिष्ट संदर्भ दे दिया था, जो लगभग पांच सौ सालों से आदर्श के रूप में सर्वमान्य हैं।

कला, कलाकार, कवि, लेखक, बुद्धिजीवी वास्तव में देश, देशकाल के असली नायक हैं। जिस व्यवस्था ने, चाहे वह राजनीतिक हो या सामाजिक, इनकी उपेक्षा की है या प्रताड़ित किया है, वह जल्द ही खाक हो गई है। विशाल नंद साम्राज्य सिर्फ एक चाणक्य के हाथों परास्त हो गया था। ऐसे कई और उदाहरण हैं और अगर कोई इनसे सबक नहीं लेता है, तो उसकी सोच दयनीय है।

शब्दों का चुनाव और उनका सही संदर्भ में उपयोग सृजनकर्ताओं को किसी और पर नहीं टालना चाहिए। उन्हें पूरे हौसले से आगे बढ़ कर अपना दायित्व निभाना चाहिए। हमारे व्यापक जीवन का हर पल ऐतिहासिक पल है। अगले पल पर अपने सृजन को टाल कर हम अपनी ऐतिहासिकता से घोर अन्याय कर रहे हैं। अर्थहीन शब्दों का शोर सृजन को कब तक दबाएगा?