अमेरिका की सड़कें नोएडा-आगरा एक्सप्रेस-वे की तरह हैं। एक बार कार चल पड़ी तो तीर की तरह छूट जाती है। कोई रोक-टोक नहीं, कोई झंझट नहीं। अकेले हैं, तो रेडियो ही साथी है। कुछ देर रॉक ऐंड रोल सुना, फिर खबरों का सिलसिला शुरू हो गया। मुख्य समाचार के बाद ट्रंप परिवर्तन शीर्षक के तहत एक बातचीत शुरू हुई। आॅल्ट राईट संगठन के प्रवक्ता बोल रहे थे। आॅल्ट राईट के वही सब विचार हैं, जिनकी वजह से रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति बने हैं।
समाचार वाचक ने उनके लाइन पर आते ही पूरे जोश से पहला सवाल दागा- ‘जबसे चुनाव परिणाम आए हैं, लोग कुछ डरे हुए हैं?’
पलट जवाब: ‘कौन कहता है डरे हुए हैं?’
‘बहुत सारे लोग।’
‘पता नहीं आपको ऐसे लोग कहां मिल जाते हैं।’
‘मुझे नहीं मिलते, मैं तो मीडिया रिपोर्ट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स की बात कर रहा था।’
‘मीडिया झूठ बोलता है। आपने चुनाव के दौरान देख ही लिया होगा कि मीडिया कितना झूठा है।’
‘तो आपको लगता है कि अश्वेतों, मेक्सिकन या मुसलमानों को डरने की वजह नहीं है।’
‘हां बिल्कुल। गलत लोग डरे।’
‘गलत लोग कौन हैं?’
‘वे सब जो अमेरिका के तौर-तरीके, रहन-सहन को अपनाते नहीं और उसकी संस्कृति का आदर नहीं करते। सबको याद रखना चाहिए कि हमारा तरीका क्या है। अमेरिका एक महान देश है, पर पिछले चार-पांच दशक से उसके संस्कारों को भ्रष्ट करने की कोशिश हो रही है। हमें उसे रोकना है। अमेरिका को फिर से महान बनाना है।’
‘अश्वेतों के प्रति रवैए की अगर हम बात करें तो क्लू क्लक्स क्लान की तरफ से बयान आया है कि अमेरिका को फिर से श्वेत बनाने की जरूरत है।…’
‘देखिए, हम एक लोकतंत्र में रहते हैं, सबको अपनी बात कहने की आजादी है।…’
‘क्या आप उनसे सहमत हैं?’
‘मेरे सहमत होने से क्या होता है? मैं तो बस यही कहूंगा की हर नजरिए का वाजिब सम्मान होना चाहिए। हमें सबकी बात ध्यान से सुननी चाहिए।’
‘पर कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिनको पूरी तरह से नकारा भी जा सकता है।… ऐसी बातें जो लोगों को बाटती हैं।…’
‘हर विचार का सम्मान होना चाहिए।’
‘औरतों के बारे में कई बातें कही जा रही हैं।’
‘वे घर पर रहें और उसको और मजबूत बनाएं। पारिवारिक मूल्य (फेमिली वैल्यूज) अमेरिका की धरोहर है।’
‘आप औरतों को घर में रखना…’
‘हम नहीं चाहते, पर औरतों के पास यह चॉइस होनी चाहिए। कुछ लिबरल टाइप की विचारधाराओं ने महिलाओं पर आर्टिफीशियल प्रेशर बना दिया था। हम उनको चॉइस दे रहे हैं।’
‘दूसरे शब्दों में, आप औरतों को फिर से चूल्हा-चक्की…’
‘हम चॉइस दे रहे हैं। फैसला उन्हीं को करना है और जो भी अमेरिकन वे आॅफ लाइफ को समझती है और उसका आदर करती है, जानती है उसको क्या करना है।’
‘आप धमका रहे हैं?’
‘नहीं। अमेरिका एक लोकतंत्र है, यहां यह सब नहीं चलता। पर समझदार लोग समझ रहे हैं कि अमेरिका का गौरव उसे वापस दिलाना है। हमारी संस्कृति की अपनी विशेषताएं हैं। उनका रख-रखाव हम सब नागरिकों का कर्त्तव्य है।’
‘मतलब…’
‘मतलब कुछ नहीं। आप बेवजह मुझसे वह कहलवाना चाहते हैं, जो आप सोच कर आए हैं और वह मैं कहूंगा नहीं। हम सब अमेरिकी एक मत हैं और चुनाव के नतीजे ने साबित भी कर दिया है कि अमेरिका बहुत जूझ चुका है, उसने बहुत झेल लिया है ढकोसलापन। आज जरूरत है अमेरिका को फिर से विश्व सरताज बनाने की, अगर आप हमारे साथ हैं, तो ठीक है, वरना आप राष्ट्रीय मुख्यधारा से अलग हो जाएंगे।’
‘मतलब अमेरिका श्वेत प्रधान देश होगा?’
‘अमेरिका सबका देश है।’
‘पर फिर लोग डर क्यों रहे हैं?’
‘अगर वे डर रहे हैं तो वह उनकी प्रॉबलम है। उनके डर से हमारी बातों का संदर्भ लेना गलत है। अल्पसंख्यक इतने साल अपनी बात कहते रहे, सब कुछ करते रहे, किसी ने कुछ कहा? अब दूसरे लोग कह रहे हैं लोकतांत्रिक तरीके से, तो आप लोग क्यों डर रहे हैं?’
‘ट्रंप ने भी कहा है कि वे दीवार खिंचवा देंगे और…’
प्रवक्ता महोदय कुछ उत्तेजित हो गए।
‘हां कहा था, चुनाव प्रचार में कहा था। पर मीडिया तोड़-मरोड़ कर हर चीज पेश करता है। मीडिया बिका हुआ है। झूठा है।’
हमारा गला कुछ खुश्क हो गया था, सो सड़क किनारे अमेरिकी ढाबे यानी रेस्ट एरिया में गाड़ी मोड़ ली। मैकडोनाल्ड में कुछ खास भीड़ नहीं थी। कोक और बर्गर आर्डर किया और फिर एक ग्रुप के पास वाली टेबल पर बैठ गया। छह-सात कम उम्र के लोग बैठे थे। अधिकतर गोरे थे, दो काले थे और एक शायद हिंदुस्तानी या लैटिनो था। अमेरिकन ड्रीम की मौत पर छाती पिटी जा रही थी। क्लिंटन की हार की शोकसभा चल रही थी। कहां पर किसने अश्वेत को गाली दी या पीटा या फिर किस तरह से उनके शहर में ‘गोरे गुंडे’ (रेड नेक्स) उत्साहित हैं, इसका वे भारी मन से जिक्र कर रहे थे। कुछ ग्राहक और आ गए। सुबह के नाश्ते का वक्त था। जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई, पहले वाला ग्रुप शांत होता गया और जल्दी से उठ कर चला गया। गाड़ी में रेडियो पर इंटरव्यू अब भी चल रहा था। सुनते-सुनते अचानक घर की याद आने लगी। टाइम देखा और फिर सोचा, घर पर क्या बजा होगा। टीवी पर प्राइम टाइम शुरू हो गया होगा। पुरानी यादें घुमड़ने लगीं। यहां रेडियो पर संगीत का दौर शुरू हो गया। घर वापसी का हरदिल अजीज पुराना गाना ‘माय ओल्ड केंटकी होम’ हवा में इठलाने लगा। वह 1960 के दशक के ‘अमेरिकन वे आॅफ लाइफ’ की यादें तरोताजा कर गया। ‘बॉर्न इन यूएसए’ की झंकार इसके तुरंत बाद गूंजी और फिर ‘कंट्री रोड्स टेक मी होम’ दिल को सुकून देने लगा। न जाने कितने वक्त के बाद यह सब सुन रहा था। बेयोन्से, लेडी गागा और जस्टिन टिंबरलेक के जमाने में, वर्तमान में बिसरा काल भविष्य का रास्ता दिखा रहा था।
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