आज सुबह कोरोना की खबरों से तंग आई इतना कि जब देखा कि फिल्म ‘आवारा’ दिखा रहा था कोई मूवी चैनल, मैंने न्यूज चैनलों पर अपना निरंतर सफर बंद किया और इस पुरानी फिल्म को मजे से देखने लगी। राज कपूर और नरगिस की यह सत्तर वर्ष पुरानी पिक्चर पहले देखी तो है, लेकिन महामारी के इस दौर में और भी ज्यादा अच्छी लगी।
शायद इसलिए कि कहानी है उस पुराने, मासूम जमाने की जब हर मर्ज की दवा मिल ही जाया करती थी। यह वह जमाना था बॉलीवुड का जब लावारिस, गरीब बच्चों को अक्सर मिल जाया करते थे पिक्चर समाप्त होने से पहले धनवान पिता, जो रोते-रोते माफियां मांग कर उनको अपना लेते थे। यथार्थ की कड़वाहट में घुली रहती थी परियों की कहानियों की मिठास।
सच पूछिए कि मुझे इतना चैन आया इस पुरानी पिक्चर को देख कर कि वापस समाचारों पर ध्यान देना बुरा लगा। दुनिया भर के समाचार चैनलों में पिछले दो महीनों से सिर्फ मिली हैं कोरोना कि खबरें। कोरोना के आंकड़े। पिछले सप्ताह एक छोटी-सी खुश खबर यह मिली कि जर्मनी में तालाबंदी हटाए जाने के प्रयास शुरू हो गए हैं।
दुकानें खुल रही हैं, स्कूल भी और कोशिश हो रही है कि जर्मनी की प्रसिद्ध फुटबॉल टीम को भी खेलने का मौका दिया जाएगा, लेकिन जिस स्टेडियम में मैच होगा, उसके अंदर दर्शक नहीं, पुतले होंगे। दूसरी अच्छी खबर यह थी कि स्वीडेन की तरफ अब दुनिया देख रही है, यह मालूम करने के लिए कि तालाबंदी न करके क्या स्वीडेन ने सही किया था? स्वीडेन ने अपने होटल, रेस्तरां और बार तक नहीं बंद किए। लोगों को सिर्फ एहतियात बरतने की सलाह दी। स्वीडेन में कोरोना का असर अमेरिका और ब्रिटेन से कम दिखा है, जहां पूर्णबंदी रही है।
सो, क्या भारत में भी पूर्णबंदी की आवश्यकता नहीं थी? यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब बहुत बाद में मिलेगा, लेकिन अभी कहा जा सकता है कि पहली पूर्णबंदी न होती तो कोरोना के आंकड़े शायद बहुत पहले पचास हजार पार कर गए होते। कहा यह भी जा सकता है कि शायद तीसरी पूर्णबंदी से लाभ कम और नुकसान ज्यादा हुआ है।
इस लिए कि कोरोना के फैलने को अभी हम रोक नहीं सके हैं, लेकिन जितनी बुरी तरह अर्थव्यवस्था रुक गई है, उसको देख कर हमारे शासकों को शायद डर लगने लगा है अब। वरना ऐसा क्यों किया गया कि जब दुनिया में तेल के दाम इतने कम हैं, भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम इतने बढ़ा दिए हैं कि कंगाल, बेहाल किसानों और मजदूरों के जिंदा रहने के कमजोर साधन और कमजोर हो गए हैं। देश में गरीबी इतनी बढ़ जाने की आशंका है
अर्थशास्त्रियों को कि कई कहने लगे हैं कि पिछले तीस वर्षों में जो गरीबी कम करने में सफलता हमने पाई थी, वह जाया जा सकती है।
दो चीजें बिलकुल स्पष्ट हैं मेरी राय में। एक तो चौथी पूर्णबंदी इस देश के लोगों को बर्दाश्त नहीं होगी। दूसरी यह कि कोरोना इतनी जल्दी नहीं जाने वाला है। सो, जैसे हमने भारत में आदत डाल ली है अन्य बीमारियों के साथ जीवित रहने की, वैसे ही हमको आदत डालनी होगी कोरोना को बर्दाश्त करने की। जिस तरह हमने इस महामारी के होने का कलंक लगाया है उन जगहों पर जहां हॉटस्पाट बन गए हैं, उस कलंक को हटाना होगा।
ऐसा मैं नहीं कह रही हूं, मुझसे ज्यादा जानकार लोग कह रहे हैं। जिस तरह पूरे जिले सील कर दिए हैं हमने और जिस तरह सारे के सारे अस्पताल बंद कर दिए गए हैं जब एक व्यक्ति पॉजिटिव पाया गया है, वह बेवकूफी नहीं पागलपन है। जिस तरह कोरोना मरीजों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है जैसे अपराधी हों, वह तो बिलकुल पागलपन है। मेरे गांव से कोई दस किलोमीटर दूर दो-तीन लोग जब कोरोना पॉजिटिव पाए गए, तो गांववालों का सुझाव था कि उनको जेल भेज देना चाहिए।
कोरोना के साथ उसी तरह हमको जीना सीखना होगा जिस तरह टीबी के साथ जीना सीखा है। हर साल भारत में कोई पंद्रह लाख लोग टीबी से मरते हैं। हर साल मलेरिया से मरते हैं कोई बीस हजार लोग। हर साल कोई दो लाख बच्चे मरते हैं अपने पांचवें जन्मदिन से पहले दस्त या निमोनिया से।
माना कि कोरोना ज्यादा जल्दी फैलता है, लेकिन इसको पूर्णबंदी से हराया नहीं जा सकता, ऐसा हमने देख लिया है। इसकी रफ्तार थोड़ी बहुत कम की जा सकती है, लेकिन इसको पूरी तरह नहीं रोका जा सकेगा जब तक इसका कोई इलाज या इसको रोकने के लिए टीके का ईजाद नहीं होता। विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा कम से कम अगले अठारह महीनों में नहीं होने वाला है। क्या भारत में पूर्णबंदी तब तक चल सकती है, अर्थव्यवस्था को तबाह किए बिना?
विनम्रता से अंत में एक सुझाव देना चाहती हूं अपने प्रधानमंत्री को। इस युद्ध को प्रधानमंत्रीजी आप अकेले नहीं जीत सकते हैं। इस युद्ध को जीतना है तो आपको पूरा सहयोग चाहिए देश के मुख्यमंत्रियों का। उनका भी, जो भारतीय जनता पार्टी से वास्ता नहीं रखते हैं। सो, जो गंदे राजनीतिक खेल आपके लोग महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में खेलने की कोशिश कर रहे हैं, उनको बंद कराना जरूरी है। महाराष्ट्र में रोज कोई न कोई बयान आता है पूर्व मुख्यमंत्री का, जो पूरी तरह नकारात्मक होता है।
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के पीछे तो आपके लोग हाथ धोकर पड़े हुए हैं। वास्तव में भी और सोशल मीडिया पर भी। पश्चिम बंगाल में चुनाव दूर हैं, सो अभी से प्रचार शुरू करना बेकार है। महाराष्ट्र में सरकार गिराने के प्रयास शर्मनाक हैं।