सय्यद मुबीन ज़ेहरा

जनसत्ता 9 नवंबर, 2014: दुनिया में एक तिहाई खाना बर्बाद हो जाता है, जबकि एक अरब से अधिक लोग भूखे रहते हैं! संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संस्था (एफएओ) का अध्ययन यही बताता है। सबसे अधिक खाना होटलों और दावतों में बर्बाद होता है, जबकि देखा जाए तो दावतें और होटल सामुदायिक रसोई का एक अच्छा उदाहरण कहे जा सकते हैं। विकासशील देशों में भोजन की बर्बादी उत्पादन के बाद और उसके प्रसंस्करण के दौरान अधिक होती है। दूरदराज के क्षेत्रों में कृषि उत्पाद को दूसरे क्षेत्रों में भेजे जाने की व्यवस्था न हो पाने के कारण भी फल, सब्जियां आदि बर्बाद हो जाते हैं। जो कुछ पैदा हुआ, अगर उसका उपयोग न हो पाए तो इसका अर्थ है कि वह बर्बाद हो गया।

खाद्य पदार्थों की बर्बादी पानी की बर्बादी से भी जुड़ी है, क्योंकि कृषि में और भोजन तैयार करते समय काफी पानी खर्च होता है। लोगों की मेहनत अलग बर्बाद होती है। यही नहीं, खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में जो पेट्रोल-डीजल इस्तेमाल होता है वह भी बर्बाद चला जाता है। इस बर्बादी के कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। सड़ा हुआ खाना मीथेन गैस बनाता है, जो प्रदूषण फैलाता है। फिर खेती में जो कीटनाशक दवाएं आदि इस्तेमाल हो रही हैं, उन्हें कैसे भुलाया जा सकता है। भोजन की बर्बादी एक तरह से ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने का भी काम करती है।

इसे रोकने का सबसे अच्छा तरीका मानवतावादी है। सोचने की बात है कि हम कैसे अपनी थाली में जरूरत से ज्यादा भोजन लेकर उसे कूड़े में फेंक सकते हैं, जबकि कोई भूखा आदमी इसी फेंके खाने से अपना पेट भरने को मजबूर है। हमको न केवल अपने घर में और आसपास भोजन की बर्बादी रोकनी होगी, बल्कि पूरे समाज को इस दिशा में सोचने को मजबूर करना होगा। बहुत से लोग यह सोच कर कि अगर दावत में कम पकवान बनवाएंगे, तो लोग हमें कंजूस समझेंगे, खूब दिखावा करते हुए भोजन बर्बाद करते हैं। इस सोच को बदलना जरूरी है।

कुछ दिनों पहले सोशल साइट पर एक छोटी क्लिप देखने को मिली, जिसमें दिखाया गया था कि एक होटल में एक आदमी अपनी थाली में बहुत सारा खाना छोड़ कर उठ जाता है। एक पढ़ा-लिखा-सा दिखने वाला आदमी आता है और उस खाने को खाने लगता है। होटल का मालिक और अन्य ग्राहक उसे दया की दृष्टि से देखते और मुस्कराते हैं। मगर वह आदमी बचा हुआ खाना खाने के बाद वहां रखे दानपात्र में उसकी कीमत से अधिक पैसे डाल देता है। यह दिखाता है कि भोजन की बर्बादी रोकने के लिए किस स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है।

किसी ने लिखा कि वे विदेश के किसी होटल में खाने गए और भूख से अधिक खाना मंगा लिया। फिर बचा हुआ भोजन छोड़ कर जाने लगे, तो आसपास बैठे ग्राहकों ने उन्हें आड़े हाथों लिया। इस पर वे कहने लगे कि पैसा मेरा है, आपको क्या परेशानी। तब उनसे कहा गया कि भले पैसा आपका है, मगर यह हमारी राष्ट्रीय संपदा है, जो आप बर्बाद नहीं कर सकते। पुलिस आई और सामाजिक संपदा की बर्बादी के लिए उनका चालान काट दिया। ऐसे सोच की हमारे यहां भी जरूरत है।

जब इंसान अपने अलावा कुछ और नहीं सोचता तब सभी प्राकृतिक स्रोतों और प्रत्येक उत्पादन की बर्बादी होती है। आप जरूरत न हो फिर भी घर पर घर खरीदते चले जाते हैं, चाहे उनमें ताले ही क्यों न पड़े रहें। आवश्यकता न हो, फिर भी वाहनों की कतार खड़ी कर देते हैं। बिना जरूरत अलमारी कपड़ों से भरी रहती है। घर के हर कमरे में एसी लगाते हैं। एक के बाद एक नया मोबाइल लाने को आतुर रहते हैं। अगर आपके पूरे व्यक्तित्व में संयम नहीं है, तो फिर यह बर्बादी केवल भोजन तक सीमित नहीं रहती। सच तो यह है कि हम इसे रिश्तों की बर्बादी तक खींच ले जाते हैं। जीवन भर का साथ, जिसमें दोनों ओर से संवेदनाओं की हद तक निवेश किया गया हो, एक पल में बर्बाद हो जाता है।

भारत में लगभग चालीस प्रतिशत खाद्य वस्तुएं लोगों तक पहुंचने से पहले ही बर्बाद हो जाती हैं, यह हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। पिछले वर्ष के एक आंकड़े के मुताबिक हमारे देश में हर साल तेरह हजार तीन सौ करोड़ मूल्य का ताजा फल केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है कि उसे कोल्ड स्टोरेज में रखने की सुविधा नहीं है। कितनी अजीब बात है कि यहां जूते तक एसी दुकानों में बिकते हैं, मगर खाने-पीने की चीजें ठेलों पर धूल-झकड़ और धूप में बिकती हैं। यह भी चीजों की बर्बादी का बड़ा कारण है। जबकि हमारे यहां तो यह तक कहा गया है कि अगर नमक का एक कण भी जमीन पर गिर गया तो निर्णय के दिन उसे पलकों से उठाना पड़ेगा।

खाने की बर्बादी रोकने की दिशा में महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। खासकर बच्चों में शुरू से यह आदत डालनी होगी कि उतना ही थाली में परोसें, जितनी भूख हो। मुहल्ले में सप्ताह में एक दिन सामुदायिक रसोई की शुरुआत करके देखिए। एक ही जगह अगर पूरे मुहल्ले या गांव का खाना बने तो सब लोग न केवल एक-दूसरे के समीप आ सकते हैं, बल्कि इससे भोजन की बर्बादी रोकी जा सकती है। इसके अलावा खाने-पीने की आदतों में दिखावे से बचा जाए। एक-दूसरे से बांट कर खाना भी भोजन की बर्बादी को बड़ी हद तक रोक सकता है।

इस दिशा में सरकार को भी बहुत कुछ करना है, क्योंकि खेतों से चल कर घरों तक पहुंचने में फल और सब्जियां तीस से चालीस प्रतिशत तक बर्बाद हो जाती हैं। इसके लिए एक पूरी शृंखला बनानी होगी कि यह सब बर्बाद न हो, उसका अधिकतम उपयोग हो सके। हमें भी इसे सफल बनाने के लिए काम करना होगा, तभी भोजन की बर्बादी के अपराध में भागीदार होने से बच सकेंगे।

 

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