राजेश राव

जनसत्ता 12 अक्तूबर, 2014: विवेक मिश्र के कहानी संग्रह पार उतरना धीरे से में आत्मिक धरातल को समझने का भाव प्रबल है। इस संग्रह की शीर्षक कहानी ‘पार उतरना धीरे से’ आंचलिक भाव-बोध समेटे एक ऐसे दंपति रातना कमैती और वीरन महतो की कहानी है, जिनकी कोई संतान नहीं थी। संतान के लिए अपनी सखी मदीनी के कहने पर रातना तांत्रिक यज्ञ-अनुष्ठान में शामिल हो जाती है। पुत्र प्राप्ति के फलस्वरूप पशु बलि के लिए मन से कभी राजी नहीं हो पाती, परिणामस्वरूप मानसिक प्रताड़ना का शिकार होती है। अहिंसा भाव को अपनाने और मानने वाली रातना कमैती का मानसिक द्वंद्व इतना बढ़ जाता है कि पशु बलि देने के बाद पशु के धड़ के बजाय अपने तीन दिन के बच्चे को नदी में प्रवाहित कर देती है।

‘तन मछरी-मन मीर’ कहानी सामंती वातावरण में स्त्री की बहुआयामी आकांक्षा को व्यक्त करती है। कहानी का एक सिरा मकड़ोरी स्टेट के राजकुमार नाहर सिंह पर जाकर खुलता है, जहां वह विवाह जैसे जीवन के महत्त्वपूर्ण फैसले के लिए खुद न जाकर अपने नौकर बिसन को भेज देता है। उधर कन्या पक्ष बिसन को नाहर सिंह समझ कर खूब आदर सत्कार करता है। सुवासिनी और बिसन पहली बार मिलते हैं और एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं। यह पसंद धीरे-धीरे प्रेम में परिवर्तित हो जाती है। विवाह की रस्म के बाद विदाई के अवसर पर सुवासिनी को पता चलता है कि बिसन नाहर सिंह का नौकर है। और उसका विवाह बिसन से न होकर नाहर से हुआ है। इस सत्य की जानकारी होते ही वह मानसिक उथल-पुथल से गुजरने लगती है। लाख भुलाने की कोशिश के बावजूद उसकी आंखें बिसन को खोजती रहती हैं।

अब उसके सामने दो दुनिया है। एक सुख-सुविधाओं की, जिसका प्रतिनिधि नाहर सिंह है, लेकिन नाहर सिंह में सम्मान और प्रेम का अभाव है। दूसरी तरफ आत्मिक सुख और प्रेम की दुनिया है। इसी द्वंद्व में फंसी सुवासिनी के ऊपर नाहर सिंह का अत्याचार आग में घी का काम करता है। सुवासिनी आखिरकार समाज और लोगों की परवाह न करते हुए हवेली छोड़ कर बिसन के साथ भाग जाती है।

‘दोपहर’ इस संग्रह की महत्त्वपूर्ण कहानी है। संस्मरणात्मक शैली में लिखी गई यह कहानी बेहद नजदीक के रिश्तों के बीच आर्थिक पक्ष के उतार-चढ़ाव के कारण संबंधों के बनने, रहने और बिगड़ने के कारणों की तलाश करती है। परिवेश और वातावरण की प्रधानता से युक्त इस कहानी में चरित्रों के बीच घटती घटनाओं के कारण हुए उलटफेर, मानसिक द्वंद्व से एक नई अर्थ-व्यंजना उत्पन्न होती है, जिससे कहानी में नया प्रभाव उत्पन्न होता है। दूसरी तरफ ‘दोपहर’ जहां सामान्य लोगों के लिए झुलसा देने वाली गरमी की प्रतीक है, वहीं बीआर भड़ेल के लिए सामाजिक और मानसिक प्रताड़ना उत्पन्न करती है। वे अपनी सामाजिक स्थिति का बयान कविताओं द्वारा व्यक्त करते-करते पागलपन की स्थिति में पहुंच जाते हैं।

‘खंडित प्रतिभाएं’ चंबल के दो डाकू गिरोहों के बीच पिसते राघव नामक व्यक्ति पर केंद्रित है। यह डाकू गिरोहों की अपनी कार्यसंस्कृति, अपराध और बदले की कहानी है, जिनके बीच में सभ्य और शहराती समाज के लोग पिस जाते हैं। लेकिन यह मात्र एक व्यक्ति के अपहरण की कहानी न होकर उस समूचे भौगोलिक क्षेत्र की कहानी है, जहां आज भी इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं।

‘दीया’ कहानी में बिलिया जैसी स्त्री चरित्र को नए प्रतीक और संदर्भ में प्रयोग किया गया है। बिलिया धर्म, आडंबर, अशिक्षा, गरीबी की मारी, शोषण की प्रतीक एक ऐसी स्त्री है, जिसका व्यापार एक वैश्विक चुनौती है। वह सतलौन से निकल कर पूरे देश की उन स्त्रियों की प्रतिनिधि चरित्र बन जाती है, जो अपनी मुक्ति के लिए तड़प रही हैं, ‘आज भी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, या कोलकाता के रेलवे स्टेशनों पर गाकर पैसे इकट््ठे करती, कोई भी सांवली-सी लड़की बिलिया हो सकती है, पर हां अगर बुंदेलखंडी में गाती कोई ऐसी लड़की आपको मिलती है, जिसके गीतों में कुरंजा, मोर, पपीहा, बगुला, तीतर, हंस, कबूतर का जिक्र आता है, तो जान लीजिए, निश्चय ही वह बिलिया है।’

‘सपना’, ‘वसंत’, ‘दुर्गा’ कहानियां कहानीकार की विविध विषयों पर पकड़ का पता देती हैं। ये कहानियां कोई बड़ा दावा नहीं करतीं और यही इनकी खूबी भी है। ‘सपना’ कहानी आम आदमी की उस छटपटाहट को व्यक्त करती है, जहां वह जीने के लिए, भविष्य को खूबसूरत और आनंदमय बनाने की जितनी ही कोशिश करता है, उतना ही गहरे-काले अंधकारमय भविष्य की ओर बढ़ता चला जाता है। ‘वसंत’ कहानी में लेखक एक ऐसे कल्पना लोक का निर्माण करना चाहता है, जहां दैहिक सुख की संतुष्टि से आगे मानसिक-आत्मिक सुख-शांति की वर्षा हो।

मूर्ति विसर्जन को केंद्र में रख कर लिखी गई कहानी ‘दुर्गा’ है। प्रतिमा के बनने और विसर्जित होने में एक आस्थावान व्यक्ति किन-किन स्थितियों से गुजरता है, यह इस कहानी का मूल कथ्य है। इन परंपराओं से संवेदनशील मनुष्य को झटका तब लगता है, जब उसका सामना सच से होता है।

‘तितली’ अंशू नाम की एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसको प्रेम का झांसा देकर, जिंदगी के हसीन ख्वाब दिखा कर, सजल नामक लड़का फांस लेता है। बाद में दो और व्यवसायी दोस्तों अभि नंदा और अनिल मोतवानी के साथ मिल कर अंशू का बलात्कार करता है। इस कहानी में ‘तितली’ उन रंग-बिरंगे ख्वाबों, बहुरंगी सपनों और मध्यवर्गीय आकांक्षाओं का प्रतीक है, जिसको नवउदारवादी समय में उपजी शक्तिशाली सत्ता व्यवस्था ने नष्ट कर दिया। इस भ्रष्ट सत्ता ने एक ऐसा वर्ग पैदा किया, जिसके अंदर स्वार्थ, छल, ढोंग और काइंयापन ठंूस-ठंूस कर भरा है। कहानी अपनी कलात्मकता में यह बताना चाहती है कि इस पूंजीवादी समय में कोई कमजोर व्यक्ति बहुरंगी सपने नहीं देख सकता।

‘थर्टी मिनट्स’ संग्रह की एक और महत्त्वपूर्ण कहानी है। कहानी का पात्र मुल्क, दिल्ली जैसे महानगर में कई जगह से धक्का खाते हुए कॉल सेंटर की नौकरी पर जम जाता है। जीवन के प्रति निराशा देखिए कि दफ्तर से आने के बाद अपने बंद कमरे में मौत का खेल खेलता है। वह प्रतिदिन साढ़े आठ बजे पित्जा का आॅर्डर देने के बाद, अपनी महिला सहकर्मी नीरू को मोबाइल से संदेश भेज कर, अपने घर पर आमंत्रित करता है। पित्जा और नीरू का इंतजार किए बगैर फांसी का फंदा तैयार करता है। उसका निश्चय कि अगर नौ बजे तक पित्जा नहीं आता है, तो वह फांसी पर झूल जाएगा। कहानी कहना चाहती है कि महानगरों ने जहां चकाचौंध भरी जिंदगी से बहुतों को आकर्षित किया, वहीं इसने जीवन में कुंठा, उदासी, अकेलापन, हताशा और कभी न खत्म होने वाले संघर्ष को पैदा किया।

विवेक मिश्र की कहानियां सर्जनात्मक दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। इनमें उनके विषय वैविध्य का पता तो चलता ही है, सभी कहानियां कथ्य, शिल्प और भाषा के जरिए विशिष्ट प्रभाव छोड़ती हैं।

 

पार उतरना धीरे से: विवेक मिश्र; सामयिक प्रकाशन, 3320-21 जटवाड़ा, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली; 200 रुपए।

 

 

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