विलंब से शुरू हुआ संसद का सत्र जैसे ही समापन के करीब पहुंचा, वित्तमंत्री ने खुद को एक अजीब स्थिति में पाया। राज्यसभा ने 4 जनवरी, 2018 को अर्थव्यवस्था की हालत पर अल्पावधि चर्चा के लिए सूचीबद्ध किया था और अपेक्षा थी कि वित्तमंत्री चर्चा का जवाब देंगे। बजट से सत्ताईस दिन पहले यह विचित्र था कि वित्तमंत्री अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विस्तार से बोलें या कोई आश्वासन दें। अर्थव्यवस्था की हकीकत सबको मालूम है। जेटली का जवाब ‘उत्तर-सत्य’ था। मैं यह जरूरी समझता हूं कि हकीकत एक बार फिर बयान की जाए।

वृद्धि दर, राजकोषीय घाटा
1. वित्तमंत्री: ‘‘पिछले साढ़े तीन-चार साल में सरकार ने अर्थव्यवस्था संबंधी निर्णय प्रक्रिया की बाबत ऐसे कई कदम उठाए हैं , जो अर्थव्यवस्था और जनता, दोनों के हित में तथा विश्वसनीय हैं।’’
राजग सरकार की निर्णय प्रक्रिया या तो गैर-पारदर्शी (नोटबंदी) या मनमानी (जीएसटी) रही है। वायदों से पलटी मारने की कई मिसालों को देखते हुए, विश्वसनीयता का दावा भी कतई नहीं किया जा सकता। नतीजा वृद्धि दर में गिरावट है, जिसे भारी मन से ही सही, सरकार ने माना है। जनवरी, 2016 से शुरू करके सात तिमाहियों में सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) इस प्रकार रहा है: 8.7 फीसद, 7.6 फीसद, 6.8 फीसद, 6.7 फीसद, 5.6 फीसद, 5.6 फीसद और 6.1 फीसद। इसी दरम्यान जीडीपी की दर 9.1 फीसद से गिर कर 6.3 फीसद पर आ गई और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) 121.4 से 120.9 के बीच ठहरा रहा है।
2. वित्तमंत्री: ‘‘आज आपने इस पर चिंता प्रकट की है कि क्या राजकोषीय घाटा फिसलन की राह पर जा सकता है। आज हम थोड़े-से फिसलन को लेकर चिंतित हैं…आपके समय राजकोषीय घाटा 6 फीसद के करीब था।’’
2008 के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के बाद यूपीए सरकार ने सरकारी खर्च में इजाफा किया और इसके फलस्वरूप राजकोषीय घाटा बढ़ कर 2011-12 में 5.9 फीसद हो गया। अगले दो साल में यह कम होकर 4.9 फीसद और 4.5 फीसद पर आ गया (जो कि 31-3-2014 को था)। राजग सरकार इसे 3.2 फीसद पर ले आएगी (जैसा कि 31-3-2018 को होगा)। दोनों सराहनीय कमी है- यूपीए सरकार द्वारा दो साल में 1.4 फीसद, और राजग सरकार द्वारा चार साल में 1.3 फीसद। जब वित्तमंत्री वित्तवर्ष 2017-18 के अंत में राजकोषीय घाटे का अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे, तो मैं उन्हें जरूर बधाई दूंगा।
व्यापार सुगमता, निर्यात
3. वित्तमंत्री: ‘‘आपने व्यापार सुगमता (इज आॅफ डूइंग बिजनेस) के मामले में 168 देशों की सूची में देश को 142वें स्थान पर ला दिया था। अगर हम 142वें स्थान से सौवें स्थान पर आते हैं, तो आप कुछ और सोचने लगते हैं, आप इसका प्रभाव जानते हैं।’’
2011 (यूपीए) में भारत का स्थान 134/183 और 2015 (राजग) में 142/189 था। यह आंकड़ा सुधर कर वर्ष 2017 में 130/189 हो गया। यह शुभ समाचार है, अलबत्ता यह केवल दो शहरों में हुए सर्वे पर आधारित है और इसकी वजह सिर्फ दो मानकों में आया सुधार है। हालांकि इसका ‘प्रभाव’ संदेहास्पद है। दो पैमानों पर नजर डालें:
2016-17 2013-14
(राजग) (यूपीए)
निवेश प्रस्ताव (सीएमआइई)
करोड़ रु. 7,90,000 16,20,000
ठप परियोजनाएं 926 766
(संख्या): सितं. 2017
4. वित्तमंत्री: ‘‘यह स्वाभाविक है कि जब विश्व अर्थव्यवस्था कमजोर होगी, तो खरीदार कम खरीदेंगे, निर्यात की गति धीमी होगी। लेकिन इस साल निर्यात के आंकड़े बदल रहे हैं।’’
आंकड़े बताते हैं कि विश्व वृद्धि दर और निर्यात के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। जब विश्व वृद्धि दर सुधरी है तब भी निर्यात 300 अरब डॉलर से नीचे रहा है:
निवेश, एनपीए
5. वित्तमंत्री: ‘‘पूंजी निर्माण- जिसके आधार पर आपने सरकारी व्यय को चुनौतीपूर्ण बताया- पिछली तिमाही के आंकड़ों से संबंधित था… यह करीब 4.7 फीसद से शुरू हुआ है, फिर से सकारात्मक क्षेत्र में आया है, इसी तरह गैर-खाद्य ऋण से संबंधित आंकड़ा भी, जो कि 10 से 11 फीसद के बीच है।’’
कुल निश्चित पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में 2014-15 की पहली तिमाही (32.2 फीसद) से लगातार कमी आई है। यह 2017-18 की दूसरी तिमाही में 28.9 फीसद तक लुढ़क गया था। ऋण वृद्धि 2014-15 की पहली तिमाही (12.9 फीसद) से सुस्त रही है। यह 2016-17 की चौथी तिमाही में गिर कर 5.4 फीसद पर चली गई थी, और फिर सुधर कर 2017-18 की दूसरी तिमाही में 6.5 फीसद पर आ गई। क्या दूसरी तिमाही के आंकड़े पटरी पर आने का संकेत है? साफ है कि ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।
6. वित्तमंत्री: ‘‘हमने पुनर्पूंजीकरण की योजना बनाई ताकि हम बैंकों की क्षमता बढ़ा सकें।’’
एनपीए के आंकड़े खुद बोलते हैं। एनपीए 2013-14 में 2,63,372 करोड़ रु. था, जो कि बढ़ कर 30 सितंबर 2017 तक 7,76,087 करोड़ रु. हो गया। तैंतालीस महीने सत्ता में रहने के बाद इसका दोष पिछली सरकार पर मढ़ कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। अभी तक इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है कि 31 मार्च 2014 को जो कर्ज फंसे हुए नहीं थे, क्यों पिछले चार साल में फंसे हुए कर्ज की श्रेणी में आ गए?
हकीकत
यह हकीकत है कि अर्थव्यवस्था को ठीक से संभाला नहीं जा रहा है, जिससे न तो निवेशक आकर्षित हो रहे हैं न रोजगारों का सृजन हो पा रहा है। ‘उत्तर सत्य’ (पोस्ट ट्रुथ) यह है कि देश की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज या दूसरे नंबर की सबसे तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्था है और इसलिए ‘हमारा कोई सानी नहीं है।’ पुन:, सच्चाई यह है कि 2017-18 का समापन 6.5 फीसद कीवृद्धि दर के साथ होगा, शायद वृद्धि दर इससे भी कम रह सकती है; और 2018-19 कीमतों, निवेश और रोजगार के लिहाज से चुनौती-भरा साल होगा, और लोग यह पूछेंगे कि आखिर ‘हमने पिछले पांच साल में क्या पाया?’