एक टैक्स। दो टैक्स। तीन टैक्स। चार टैक्स। एक-एक करके कुल सत्रह टैक्स! टैक्स पर टैक्स! तौबा तौबा! वित्तमंत्री अरुण जेटली मुस्कान दबा कर बताते रहे कि सत्रह टैक्स आउट! अब एक ही टैक्स: ‘जीएसटी’ यानी ‘गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स’! नेहरू की तरह ऐन आधी रात में ‘भविष्य से मुलाकात’ करने वाले मोदीजी ने एक जुलाई के पहले क्षणों में संसद के सेंट्रल हॉल से जीएसटी की अपनी परिभाषा दी: ये है ‘गुड ऐंड सिंपल टैक्स’!  कहां हैं बेनेडिक्ट एंडरसन ‘इमेजिंड कम्युनिटीज’ वाले? लगता है कि अब सिर्फ कल्पनाएं राष्ट्र नहीं बनातीं। राष्ट्र को बनाता है एक टैक्स और राष्ट्र रहता है टैक्स की वसूली में! जीएसटी एक बाजार, एक राष्ट्र बनाने वाला है: जीएसटी एंडरसन की थियरी को पलट कर कहता है: कल्पित समुदाय नहीं है राष्ट्र। उसे समान टैक्स देने वाले समुदाय बनाया करते हैं!

अगले ही रोज पीएम मोदी ने सीए लोगों की एक लंबी क्लास ली और इस क्लास में उन्होंने सीए लोगों को जितने प्यार से रगड़ा, वह देखते ही बनता था और मजा यह कि सीए लोगों को वे जितना रगड़ते, वे उतनी ही जोरदार ताली पीटते। मोदी के लगभग हर वाक्य पर ताली थी। कहीं-कहीं तो वाक्य के शुरू होते ही ताली पड़ती थी। मोदीजी के पास व्यंग्यों की कमी नहीं थी। एक-एक वाक्य चुटीला था। ऊपर से प्यार, अंदर से मार और गजब यह कि जिस पर लगती थी, वही खुश होकर ताली भी बजाता था!धन्य हो महाराज! एक से एक वक्ता सुने और देखे। लेकिन जैसे आप हो, कोई दूसरा नहीं है कि ठोकते हो, तो भी ठुकने वाले को मजा आता है!  यह किस तरह का दिव्य संवाद था प्रभु! इसके मूल्यांकन की थियरी ही नहीं बनी!आपकी देसी लक्षणा-व्यंजनाओं को सिर्फ ‘चाणक्य’ समझ सकते हैं! कट टू इजरायल! वाह! क्या सीन! क्या शॉट! एकदम परफेक्ट! क्रीम रंग का बंद गला सूट, जेब में नीला रूमाल! जहाज से उतरते ही नेतन्याहू से ‘भुजभर भेंट’! राष्ट्रगान। सुरक्षा गार्ड सैलूट! दोनों नेताओं के प्रफुल्लित-उल्लसित चेहरे! बेहद दमदार कूटनीतिक दृश्य! जिस तरह दोनों ने एक-दूसरे की पीठ थपथपाई, उससे लगा कि न जाने कितने दिनों के बिछड़े दो भाई मिले हैं! अपने चैनल तीन दिन फुल टाइम लहालोट रहे!

लेकिन इसी बीच विघ्न-संतोषी चीन ने एक बार्डर-विघ्न-कथा बनानी शुरू की। देश भक्ति की ताल ठोक-ठोक हर चैनल ने चीन को और अपनी जनता को समझाया कि ये सन बासठ का भारत नहीं है और कि अब र्इंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा!हर एंकर एक युद्ध बनाता रहता था। ज्यादातर दुधमुंहे एंकर चीन को लेकर ताल ठोकते रहते कि अगर चीन ने युद्ध करने की गलती की, तो मजा चखा देंगे। सूट-बूट पहने दुधमुंहों के लिए स्टूडियो से युद्ध बनाना और युद्ध के लिए ललकारना टीआरपी का सबसे बढ़िया धंधा है: उन्माद जगाते चलो, टीआरपी उगाहते चलो! तीन सप्ताह से दक्षिण भारत में हिंदी पिट रही है! पहले तमिल वाले ठोकते दिखे, अब हर शाम कन्नड़ वाले हिंदी को ठोकते हैं। अंगरेजी चैनल इसे ‘भाषा युद्ध’ नाम देते हैं और बेचारी हिंदी को दोष देते रहते हैं! आसन्न चुनावी राजनीति के कारण कर्नाटक में पैदा किए जा रहे भाषाई विवाद को ‘भाषा युद्ध’ कहना एक नए युद्ध को बनाने जैसा है!‘सीएनएन न्यूज अठारह’ तीन बार चर्चा करा चुका है। रिपब्लिक शायद दो बार चर्चा करा चुका है। टाइम्स नाउ भी पीछे नहीं रहा है। भाषाई विवाद अब ‘भाषा युद्ध’ की तरह दिखाया जाने लगा है।

जब तीन-तीन अंगरेजी चैनल मामूली भाषाई विवाद को भाषा युद्ध की तरह बनाते रहेंगे तब वह भाषा युद्ध क्या न बनेगा? यही हुआ! एंकर अगर न कहते दिखते कि हिंदी के खिलाफ पूरा दक्षिण आंदोलित हो रहा है, तो शायद वह न हुआ होता, जो वृहस्पतिवार को बंगलुरू में दिखा! अब तक के विजुअल्स में सिर्फ मेट्रो स्टेशनों में लिखी हिंदी को स्पे्र से काला किया जा रहा था, लेकिन वृहस्पतिवार के दिन कुछ स्वनामधन्य कट्टर कन्नड़वादियों ने बंगलुरू के कुछ रेस्त्रा, होटलों, मॉलों को आदेश जारी कर दिया कि अब होटलों में न हिंदी के गाने बजेंगे, न अंगरेजी के बजेंगे। सिर्फ कन्नड़ के बजाओ!जो अंगरेजी एंकर अब तक हिंदी को पिटते देख खामोश रहते थे, अंगरेजी की ठुकाई देख परेशान से दिखे। कहने लगे कि बंगलुरू कास्मोपोलिटन शहर है, हिंदी तीसरे नंबर पर लिखी है, वह कन्नड़ की जगह नहीं लिखी जा रही, तब थोपना क्या? कन्नड़ के अंधभक्त कहते कि बंगलुरू में एक फीसद हिंदी वाले हैं, हिंदी की क्या जरूरत?
और, कहां हैं अपने हिंदी के चैनल? अंगरेजी चैनलों में रोज हिंदी मार खा रही है और हिंदी के चैनल सोए पड़े हैं। जिस हिंदी की खाते हैं, उस पर कायदे की चर्चा तक कराने की उनको फुर्सत नहीं है। अंगरेजी के एक चैनल में ‘कन्नड़ रक्षा वैदिके’ के एक नेता सफेद कुरता, कंधे पर लाल-पीला अंगवस्त्र धारण किए हिंदी को ठोकते रहे। बंगलुरू को सिर्फ कन्नड़ चाहिए। अंगरेजी भी नहीं चाहिए। देखते-देखते तीन भाषा फार्मूला पीटा गया और दो भाषा से भी अब एक भाषा पर आ गए! तब बंगलुरू काहे का कास्मोपोलिटन?

बंगाल जीतना है! देखो देखो बशीरहाट में एक हिंदू मारा गया! एक चैनल रूपा गांगली के हवाले से कहता है कि क्या बंगाल में हिंदू होना पाप है? फिर पूछता है कि क्या बंगाल में हिंदू कोे जगह नहीं? एक चैनल ऐसी लाइन ‘हैशटेग’ कर बहस कराता है!बशीरहाट की लिंचिंग भयानक है। रिपब्लिक लिंचिंग की कहानी को पूरा कवर करके बताता है कि किस तरह क्या क्या हुआ! लेकिन कुछ चैनल जिस तरह की बहसें आयोजित करते रहे, उनमें जिस क्षोभ के साथ हिंदू बरक्स मुसलमान होता रहा, उससे दोनों समुदायों के बीच शांति और संवाद की जरूरी जगह बचती ही न थी!दुर्भाग्य कि इन दिनों कई अंगरेजी चैनलों की बहसों में हिंदू हिंदू के लिए बोलता है,मुसलमान मुसलमान के लिए बोलता है! दोनों के बीच के सौहार्द और संवाद के लिए कोई नहीं बोलता! धार्मिक पहचानें इस कदर ‘हैशटेग’ की जाने लगी हैं कि पोलराइजेशन की साजिश को एक्सपोज करते-करते चैनल खुद पोलराइज्ड बहसें कराने लगते हैं। धु्रवीकरण आसान है। साझी जगह बनाना कठिन! लेकिन यही तो मीडिया की असली चुनौती है कि वह हर हाल में साझी जगह बनाए, क्योंकि साझी जगह ही मीडिया की अपनी जगह होती है!