Traffic नाम से हिंदी में बनी यह फिल्म 2011 में बनी मलयालम मूवी की तरह ही है। एक मरते हुए मरीज को बचाने के लिए एक ब्रेन डेड शख्स के धड़कते हुए दिल को भीषण ट्रैफिक जाम से गुजरते हुए कितनी जल्दी पहुंचाया जा सकता है? क्या आप इतने तेज हैं कि बारिश, सड़कों के गड्ढे, ऊंची नीची सड़कों को धता बताते हुए वक्त पर पहुंच सकते हैं?
ओरिजनल फिल्म में हुए इस पूरे घटनाक्रम में मैं इन्वॉल्व हो गई थी। वह फिल्म Amores Perro से प्रेरित थी, जिसमें कई पर्तें और चरित्र शामिल थे जो एक बिंदु पर आकर मिलते हैं। जहां तक इस फिल्म की बात है, मैं खुद को इससे जोड़ नहीं पाई। इसकी वजह वैसी ताजगी और तात्कालिकता में कमी है। अगर आपने ओरिजनल फिल्म न भी देखी हो तो भी यह नई वाली मूवी लड़खड़ाती नजर आती है। किसी जवान शख्स के मौत से जुड़ी मार्मिकता किसी का भी दिल छू सकती है। किटू गिडवानी और सचिन खेड़ेकर उन भावनाओं को उकेरने में कामयाब हुए हैं। आप उस मशीन को कैसे बंद कर सकते हैं, जिसने आपके बेटे को जिंदा रखा हो? क्या पता वह कोमा से बाहर आ जाए? दोनों ने अपने चरित्र को अंडरप्ले किया है, जो प्रभावशाली भी लगता है।
यह बेहद कठिनाई से लेने वाला फैसला था और वे यह फैसला एक अन्य युवा की जान बचाने के लिए लेते हैं। वे एक अन्य पीडि़त अभिभावक (प्रसन्नजीत चटर्जी और दिव्या दत्ता) की मिन्नतों के आगे झुक जाते हैं। सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि दिल को काफी तेज स्पीड से मुंबई से पुणे कैसे पहुंचाया जाए। इस काम को अंजाम देता है एक कॉन्स्टेबल, जिसका रोल मनोज वाजपेयी ने निभाया है। सर्जन की भूमिका परमब्रता चटर्जी जबकि पुलिस चीफ की भूमिका जिमी शेरगिल ने निभाई है। जिमी एक डॉक्टर और कुछ अन्य लोगों से मिले लेक्चर के बाद इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये सभी अपना काम करते हैं, लेकिन इस दौरान अनावश्यक बैकग्राउंड म्यूजिक भी है। कुल मिलाकर फिल्म देखी जा सकती है।
स्टारकास्ट: मनोज वाजपेयी, जिम्मी शेरगिल, परंब्रता चटर्जी, प्रसन्नजीत चटर्जी, अमोल पराशर, दिव्या दत्ता, सचिन खेडेकर, किटू गिडवानी, दिव्या उन्नी।
डायरेक्टर: राजेश पिल्लई।