तलवार

निर्देशक- मेघना गुलजार

कलाकार- इरफान खान, कोंकणा सेन शर्मा, नीरज काबी, विवान शाह
आरुषि तलवार की हत्या 2008 में नोएडा में हुई थी और हत्या किसने की यह एक रहस्य ही है, हालांकि सबूतों के मद्देनजर इस बारे में अदालत का फैसला आ चुका है और आरुषि के माता-पिता हत्या के आरोप में सजा पा चुके हैं। लेकिन अदालती फैसला सबको स्वीकार नहीं हुआ है क्योंकि कई ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब न अदालत दे सकी और न सीबीआइ या पुलिस-जिन्होंने इस बारे में तहकीकात की। इलाहाबाद हाई कोर्ट में इसे लेकर फिर से सुनवाई होनी है।

मेघना गुलजार की यह फिल्म आरुषि की हत्या के कुछ पहलुओं की पड़ताल करनेवाली है। हालांकि यह फिल्म भी कोई फैसला नहीं करती कि किसने हत्या की। इसका अंत बहुत कुछ ‘रशोमन’ (कुरोसावा की कालजयी फिल्म) से प्रभावित है और उसमें यह आशय निहित है कि घटनाएं अलग-अलग ढंग से देखे जाने पर अलग-अलग निष्कर्षों की तरफ ले जाती है।

इसके अलावा यह फिल्म संवेदना के स्तर पर आरुषि के माता-पिता के पक्ष में झुकी हुई लगती है और कहीं न कहीं यह कहती है कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है। इरफान ने इसमें सीडीआइ के अधिकारी अश्विन कुमार की भूमिका निभाई है। फिल्म में तलवार परिवार की जगह टंडन परिवार है। नूतन टंडन (कोंकणा सेन शर्मा) और रमेश टंडन (नीरज काबी) पाते हैं कि उनकी बेटी श्रुति (आयशा परवीन) का खून हो गया है।

फिर पुलिस की टीम जांच पड़ताल करने आती है और इंस्पेक्टर धनीराम (गजराज राव) कुछ प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद खास पुलसिया शैली में इस नतीजे पर पहुंचता है कि हत्या में श्रुति के माता-पिता का हाथ है। लेकिन पुलिस ने जिस तरह से तफ्तीश की है उस पर कई सवाल उठते हैं और फिर मामला केंद्रीय जांच के लिए सौंपा जाता है जिसका अधिकारी अश्विन कुमार (इरफान खान) है।

इरफान खान ने इस फिल्म में जो भूमिका निभाई है उसकी वजह से वे इस फिल्म के केंद्रीय चरित्र बन गए हैं और उनका हर अंदाज एक ऐसे अधिकारी का है जो बेहद संतुलित ढंग से चीजों को देखता है। यह अधिकारी किसी तरह के पूर्वग्रह से काम करता है और न हड़बड़ी में। कोंकणा हालांकि कम दिखी हैं फिर भी उनके काम में संजीदगी है और एक मां की छवि के अनुरूप उनकी भूमिका है।

लेकिन जिस पक्ष की सबसे ज्यादा तारीफ की जानी चाहिए वह है फिल्म की पटकथा जिसे विशाल भारद्वाज ने लिखा है। इस वजह से फिल्म सिर्फ एक रहस्य कथा ही नहीं बल्कि निगाहों के फलसफे की तरफ ले जाती है। आप कैसे चीजों को देखते हैं इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है और आपके फैसले पर उसकी छाप होती है। इसी वजह से ‘तलवार’ आरुषि हत्याकांड से आगे की फिल्म हो जाती है। निर्देशक मेघना गुलजार ने ऐसी फिल्म बनाई है जो शायद बाक्स ऑफिस पर ज्यादा पैसा न बनाए पर अपनी दृष्टि के लिए याद रखी जाएगी।