कई बार ऐसा भी होता है कि घरों में या होटलो में रात के बने खाने को गरम करके दिन में परोस दिया जाता है। यानी बासी खाना गरमा गरम। पर चाहे जितना भी गरमा गरम हो बासी तो बासी ही रहता है। `प्रस्थानम’ फिल्म के साथ भी ऐसा ही कुछ है। नौ साल पर पहले बनी इसी नाम की तेलगु फिल्म को तड़का लगाकर फिर पेश कर दिया गया है। इसीलिए ये उस पुराने फर्नीचर की तरह लगती है जिस पर रंगरोगन करके ड्राइंग रूम में लगाया है।

संजय दत्त ने इसमें उत्तर प्रदेश के एक नेता बलदेव प्रताप सिंह का रोल किया है। फिल्म बलदेव परिवार की कहानी है। मनीषा कोईराला संजय दत्त की पत्नी बनी है। बलदेव के दो बेटे हैं आयुष (अली फजल) और विवान (सत्यजीत दुबे) पर दोनों के स्वभाव में काफी पर्क है। वैसे दोनों सौतेले भाई हैं। आयुष ठंडे दिमाग का है और विवान गर्म दिमाग वाला।

फिल्म की कहानी मुख्य रूप से इस बात पर टिकी है बलदेव प्रताप सिंह का राजनैतिक उत्तराधिकार किसे मिलेगा- आय़ुष को या विवान को। दोनों के बीच की प्रतिद्वंदिता ही फिल्म की धुरी है। इसलिए इसमे षडयंत्र, प्रतिशोध जैसे कई तरह के जजबात भी हैं। हां, बीच में अली फजल और अमायरा दस्तूर की प्रेमकहानी भी है। इसीलिए बीच में कुछ गाने भी ठूंसे गए है जिनकी कोई जरूरत नहीं थी।

प्रस्थानम’ कुछ जगहों पर अमिताभ बच्चन वाली `सरकार’ से प्रभावित भी लगती है। जैकी श्रॉफ और मनीषा कोइराला के रोल अधपके से रह गए हैं। हां, संजय दत्त कुछ जगहों पर जमें है। अली फजल भी। चंकी पांडे भी खलनायक जैसे बाजवा खत्री की भूमिका में कुछ जगहों पर तालिया बटोर ले गए है। वैसे ये भी पूछा जा सकता है कि नायक (संजय दत्त) ही अपने मिजाज में खलनायकी करता रहा है तो अलग से खलनायक की क्या जरूरत। टुकड़े टुकड़े में ये फिल्म अच्छी भी है। लेकिन पूरी तरह से नहीं। फिल्म की निर्माता संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त है। यानी वहां भी पारिवारिक ड्रामा है।