एगोराफोबिया एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है, जिसे सरलभाषा में कहेंगे बाहर की दुनिया का भय। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को सार्वजनिक जगहों पर जाने और दूसरे से मिलने में डर लगता है। पवन कृपलानी की फिल्म इसी बीमारी पर केंद्रित है और इसमें राधिका आप्टे ने महक नाम की एक लड़की का किरदार निभाया है जो वैसे तो कलाकार है लेकिन अपने आसपास के माहौल में डरती है। हालांकि इस डर की शुरूआत एक खास वाकये से होती है, जिसमें वह एक टैक्सी में चलने के दौरान एक हादसे से बची थी।
इस हादसे के बाद वह लोगों से मिलने जुलने से बेचैन हो जाती है। यहां तक कि जब उसका एक पुरुष मित्र, जिसे अभी उसने बॉयफ्रेंड का दर्जा नहीं दिया, जब उसे एक फ्लैंट में रहने के लिए ले जाता है तो वहां भी महक दरवाजे पर बजने वाली घंटी से लेकर बगल के फ्लैट से आने वाली आवाजों से डरने लगती है। और ये डर इतना बढ़ जाता है कि सच में उसके साथ और उसके बगल में रहने वाली लड़की के साथ दुर्घटना घटती है।
फोबिया एक हॉरर फिल्म है। बॉलीवुड की ज्यादातर हॉरर फिल्में प्रेतात्मा पर आधारित होती है लेकिन फोबिया के साथ ऐसा नहीं हैं। और इसमें यह भी नहीं दिखाया गया है कि अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है। इसका अंत भी विचलित करने वाला है। फिल्म की ज्यादात्तर कहानी एक फ्लैट तक ही सीमित है।
राधिका आप्टे ने इस फिल्म में अपने भीतर के डर को जिस तरह दिखाया है वह दर्शक को कुछ जगहों पर सिहरा देता है। निर्देशक ने हॉरर फिल्म के किसी सरल नुस्खे का सहारा नहीं लिया है। जो हॉरर फिल्म के दीवाने हैं उनके लिए ये नई तरह की चीज है।
निर्देशक- पवन कृपलानी
कलाकार- राधिका आप्टे, सत्यदीप मिश्रा, यशस्विनी दयामा