फिल्महैप्पी भाग जाएगी

निर्देशकमुदस्सर अजीज

कलाकारडायना पेंटी, अभय देओल, अली फैजल, जिमी शेरगिल. मोमल शेख, पीयूष मिश्रा

बेचारे, जिमी शेरगिल। क्या फिल्मी किस्मत पाई है भाई ने । वे शादी की तैयारी करते हैं, फिर बारात लेकर दुल्हन के यहां पहुंचते हैं और मालूम होता है कि शादी ही नहीं हुई। क्योंकि या तो लड़की शादी के एन वक्त पर इनकार कर देती है या फिर घर से भाग जाती है। `तनु वेड्स मनु’ मे यही हुआ, फिर `तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में यहीं हुआ और अब `हैप्पी भाग जाएगी’ में यहीं हुआ। जिमी शेरगिल ने इसमें बग्गा नाम के एक छोटे मोटे नेता का किरदार निभाया है। बग्गा अमृतसर का बंदा है और इसी शहर की हैप्पी (डायना पेंटी) नाम की एक लड़की से शादी करना चाहता है। बैंडबाजे के साथ और शादी के जोड़े में वहां पहुंचता भी है। लेकिन हैप्पी के दिल में तो गुड्डु (अली फैजल) नाम का एक बंदा बसा है। सो हैप्पी शादी के ठीक पहले एक ट्रक में चढ़कर भाग जाती है। और भाग कर पहुंचती कहां है? अटारी बॉर्डर होते हुए सीधे लाहौर। सारा कुछ गलतफहमी से होता है। और जिस फिल्म में गलत फहमी एक बार हो जाती है उसमें बार बार होती है। इस तरह ये फिल्म गलतफहमियों पुलिंदा है। यानी फिल्म का हास्य गलतफहमियों पर टिका है।

`हैप्पी भाग जाएगी’ एक साफ सुथरी कॉमेडी है। इसमें कहीं भी द्विअर्थी संवाद नहीं है। जिसे अंग्रेजी में सिचुएशनल कॉमेडी कहते हैं उस तरह की हंसी इसमें है। और हां, बीच में तड़का लगाने के लिए हिंदुस्तान- पाकिस्तान का मसला भी डाल दिया है। आखिर जब लड़की भाग कर लाहौर पहुंचेगी तो भारत- पाकिस्तान के रिश्ते तो सामने आएंगे ही। पर ये पहलू ज्यादा बड़ा नहीं है और जितना है उसमें किसी तरह की अंधराष्ट्रवादी नारेबाजी नहीं है। बस कुछ मजाकिया लम्हें हैं जो गुदगुदाकर रह जाते हैं।

अभय देओल ने पाकिस्तान के एक राजनैतिक परिवार के वारिस बिलाल का किरदार निभाया है। हालांकि बिलाल का मन राजनीति में नहीं क्रिकेट में लगता है। पर राजनैतिक पिता का दबाव है बेटा राजनीति में जाए और पाकिस्तान की राजनैतिक दिशा को बदल दे। फिल्म में हैप्पी अमृतसर से भाग कर लाहौर बिलाल के घर में पहुंचती है। और फिर बिलाल किस तरह हैप्पी और गुड्डु को मिलाने की और उनकी शादी कराने की कोशिश करता है उसी पर सारी फिल्म टिकी है। इस पर पूरी तरह से तो नहीं लेकिन छोटे और पैरोडी के स्तर पर बजरंगी भाईजान का असर है।

`हैप्पी भाग जाएगी’ एक बहुत बड़ी कॉमेडी भले न हो, लेकिन दर्शक को मोहती है और पारिवारिक फिल्म के दायरे में है। डायना पेंटी ने जिस हैप्पी का किरदार निभाया है उसमें एक जिंदादिली और मस्ती है और उसके लाहौर की गलियों में और सड़कों पर उसके भागने का दृश्य ठहाके के लिए विवश करता है। अभय का किरदार एक शांत आदमी का है और दिल को छूता है। पीयूष मिश्रा ने पाकिस्तानी पुलिसकर्मी का जो किरदार निभाया है वह भी काफी मजेदार है। फिल्म में कुछ असंगतियां जरूर हैं। जैसे हैप्पी को पाकिस्तान से भारत वापस भेजा कैसे जाता है? आखिर उसके पास न वीसा है न पासपोर्ट। कागजी खानापूरी कैसे हुई। निर्देशक ने इस पहलू को नजरअंदाज कर दिया है। एक और बात खटकती है। गुड्डु को टुनटुना बजाने वाला बताया गया है। लेकिन वह कहीं भी इस वाद्य को बजाता नहीं दिखता है। अगर उसके संगीतकार वाले पक्ष को थोड़ा मजबूत बनाया जाता तो फिल्म और बेहतर हो सकती थी। आखिर एक खूबसूरत लड़की किसी लड़के पर फिदा हो और उसके लिए शादी की रात घर से भाग जाए, तो उसे नाकारा तो नहीं दिखाया जाना चाहिए। आखिर इश्क के भी कुछ उसूल होते हैं। है कि नहीं? और इसी कारण फैजल का किरदार भी दब गया है।