90 के दशक की सुपरहिट फिल्म ‘घायल’ में सनी देओल ने ऐसा किरदार निभाया, जिसमें एक आम शख्स कानून को अपने हाथ में लेने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। इस किरदार ने सनी देओल को एक अलग पहचान दी। कहना गलत नहीं होगा कि इस किरदार को उनसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता था। ‘घायल वंस अगेन’ की शुरुआत वहां से होती है, जहां पहली फिल्म खत्म हुई थी (इसे साबित करने के लिए एक छोटा सा फ्लैशबैक भी दिखाया जाता है)। पिछली फिल्म से इसमें सिर्फ सनी देओल का किरदार उधार लिया गया है, जो अब उम्रदराज हो चुका है। जिसके दिल में पहले की तरह की दर्द और बदले की भावना भरी हुई है। यह किरदार भी पिछले वाले की तरह ही है यानी एक ऐसा शख्स जो अकेला ही पूरे भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ लड़ता है।
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पिछले और इस फिल्म में फर्क सिर्फ डायरेक्टर का है। सनी देओल डायरेक्टर की भूमिका को ढोने में नाकाम हुए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्लॉट बेहद थकाऊ किस्म का है, जिसे कई ऐसी फिल्मों के टुकड़ों से जोड़कर तैयार किया गया है, जिन्हें हम पहले भी देख चुके हैं। विलेन भी परिचित किस्म के हैं। यानी एक अमीर कारोबारी (नरेंद्र झा), एक जटिल राजनेता (मनोज जोशी) और उनके गुर्गे। गुर्गों में नया यही है कि इनमें से अधिकतर ‘फिरंगी’ हैं। हालांकि, यही इस फिल्म के साथ एक बड़ी समस्या है। फिल्म में हर जगह विदेशी तत्व नजर आते हैं। फिल्म के कुछ हिस्सों को देखकर विदेशी एक्शन फिल्मों मसलन- डाय हार्ड, मिशन इम्पॉसिबल, ट्रू लाइज आदि की याद आती है।
फिल्म की कहानी कई हिस्सों से जुड़कर बनी है। गुंडों से भयभीत कुछ युवा, मुंबई में आतंक मचाते गुंडे जो एक ऐसे अरबपति शख्स के नीचे काम करते हैं, जो एक खास आकार वाली इमारत में रहता है। एक आरटीआई एक्टिविस्ट (पुरी) के अलावा अजय सत्यकाम मेहरा (सनी) जो सभी बचाने के लिए सामने आता है। सनी दिओल जिनका ‘ढाई किलो का हाथ’ आपको अर्नालड श्वाजनेगर की याद दिला सकता है। उनके सामने एक ऐसे विलेन की जरूरत थी जो कम से कम उनकी टक्क्र का दिखे। यहां अमरीश पुरी की याद आना लाजिमी है। बतौर एक्टर सनी देओल में अब भी बहुत दम है, जो अपने विरोधियों को तिनकों की तरह उड़ा सकता है। डायरेक्टर सनी देओल को अपना रास्ता बदल लेना चाहिए।
स्टारकास्ट: सनी देओल, सोहा अली खान, अोम पुरी, टिस्का चोपड़ा, नरेंद्र झा, मनोज जोशी