Dream Girl Movie Review and Rating: एक लड़का है करमवीर (आयुष्मान खुराना)। बचपन से ही लड़कियों की आवाज निकालने में माहिर। उसकी इसी खासियत की वजह से उसे रामलीला में हमेशा सीता की भूमिका मिलती है और कृष्णलीला में राधा की। हालांकि वो बड़ा हो चुका है और ये भूमिकाएं नहीं करना चाहता पर लोग उसकी आवाज पर फिदा हैं।

लेकिन वो बेरोजगार है और नौकरी पाने के लिए काफी भटकता है। आखिरकार एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल जाती है। पर वहां भी पूजा नाम की एक लड़की की आवाज निकालनी है जो फोन करनेवालों से रसभरी बातें करती हैं। कॉल सेंटर में फोन करनेवालों के बीच करमवीर नाम के ये बंदा तो हिट हो जाता है। कई उसके दीवाने हो जाते हैं। इनमें एक पुलिस वाला (विजय राज) है. एक खुद करमवीर का पिता (अन्नू कपूर) है और एक लड़की भी जो एक जगह संपादक है और मर्दों को नापसंद करती है। एक दीवाना तो उसके प्यार में अपनी नशें काट लेता है। अब पूजा बना करमवीर क्या कर? हालात अजीब हो रहे हैं।

`ड्रीम गर्ल’ इसी लड़के करमवीर का किस्सा है और उसके साथ उन लोगों का भी जो किसी भी उम्र के हों, किसी वजह से ऊबे हुए हैं या दुनिया में तन्हा हैं। और अपनी तन्हाई से बचने के लिए जुगाड़ में लगे रहते हैं और कॉलसेंटरों में घंटों फोन करते रहते है और उनकी आय बढ़ाते रहते हैं। बिना ये जाने कि जिससे फोन पर बात कर रहे है वो पुरुष है या स्त्री, उससे दोगुनी उम्र की है या आधे उम्र की। निर्देशक राज शांडिल्य ने इसी के इर्द गिर्द एक हास्य फिल्म रची है जिसमें कॉमेडी का भरपूर डोज है। शुरू से अंत तक हंसी के फव्वारे। बीच में करमवीर और माही (नुसरत भरूचा) की प्रेम कहानी भी है। पर इसकी अहमियत भी भी कॉमेडी को और फैलाने के लिए हैं।

फिल्म पूरी तरह से आय़ुष्मान खुराना के कंधों पर हैं और जो पिछली फिल्मों की तरह एक अछूते से विषय से जुड़े किरदार की भूमिका में है। उनकी कॉमिक टाइमिंग गजब की है और हर लम्हें और हर डॉयलाग में वे दर्शकों को हंसा देते हैं। पर उनके अलावा इस फिल्म में दो और अभिनेता हैं जो कॉमेडी के डोज को डबल कर देते हैं। एक तो हैं विजय राज को एक ऐसे पुलिस कांस्टेबल की भूमिका में है शायर बनना चाहता है और हर बात में अपनी अजीबो गरीब शेर सुनाया करता है।

यहां तक कि थाने में एफआईआर लिखते हुए बीच में अपने शेर लिख देता है जिसकी वजह से एफआईआर भी विचित्र सा हो जाता है। दूसरे अभिनेता हैं अन्नू कपूर जिन्होंने करमवीर के पिता की निभाई है जो उम्र के इस दौर में शादी के लिए अपना मजहब भी बदलने को तैयार हो जाता है। निर्देशक ने हर दृश्य में हंसी पैदा करने की कोशिश की है और इस फिल्म के हर संवाद यानी डायलाग मे एक नुकीलापन है जो कुछ जगहों पर तो दो जगहों पर मार करता है। फिल्म में तीन गाने भी हैं। हालांकि वे आगे याद नहीं ऱखे जाएंगे पर फिल्म के भीतर मौजूं लगते है।