लड़का (अगर आपको 50 साल के आदमी को लड़का कहने में आपत्ति न हो तो) लंदन में रहता है। वो यानी आशीष (अजय देवगन) तलाशशुदा तो नहीं है लेकिन पत्नी और बच्चों से अलग और अकेले रहता है। लंदन में ही रहने वाली लड़की आयशा (रकुल प्रीत सिंह) छब्बीस साल की है। यानी दोनों की उम्र में पचीस- छब्बीस साल का फर्क है। क्या दोनों में प्यार हो सकता है? पर ये भी क्या सवाल है? दोनों में प्यार हो जाता है। और इसके लिए पहल करती है आयशा। वो चुलबुली है, स्मार्ट है। और हंसुमख भी। और आजकल की भाषा में कहें तो हॉट है। पर वो अपने जवान बॉयफ्रेंड से बोर हो गई है। इसलिए आशीष की तरफ झुकती है और झुकती ही चली जाती है। ऐसे में आशीष भी क्या करे? वो भी लड़की के प्रति दीवानगी महसूस करने लगता है। दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगता है।

अब अगला चरण तो शादी है और इसके लिए दोनों तैयार हो जाते है। यहां से फिल्म रोमांटिक दिशा को छोड़करकॉमेडी की दिशा में चली जाती है। अशीष आय़शा से कहता है कि चलो हिंदुस्तान चलकर तुमको अपने परिवार-पत्नी और बच्चों से मिलवा दें ताकि उनको भी मालूम हो कि मैं क्या करने जा रहा हूं। और जब आशीष आय़शा को लेकर भारत आता है तो रायता फैलने लगता है। वो इसलिए कि जब दोनों आशीष के घर पहुंचते है तो मालूम होता है कि आशीष और उसकी पत्नी मंजु की बेटी की शादी की तैयारियां चल रही और लड़के वाले लड़की के परिवार से मिलने वाले हैं। आशीष और मंजु की बेटी अपने होने वाले पति से कह चुकी है कि उसके पिता तो बहुत पहले चले गए। मतलब गुजर गए। इसलिए सवाल है कि अब आशीष का परिचय होनेवाले रिश्तेदारों से किस तरह कराया जाए? उसे लड़की का मामा बनाया जाए या कुछ और। खैर, जैसे तैसे हालात संभालने की कोशिश की जाती है फिर भी उल्टी पुल्टी चीजें होती रहती हैं और हंसी मजाक के नए नए नजारे सामने आने लगते है।

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इस तरह `दे दे प्यार दे’ रोमांस और कॉमेडी- दोनों नावों की सवारी करनेवाली फिल्म है और कुछ एक चीजों को छोड़ दें ये सवाली ठीक ठीक हो गई है। अधेड़ उम्र का पुरुष भी एक जवान लड़की से प्रेम कर सकता है या एक जवान लड़की एक अधेड़ उम्र के पुरुष से इश्क कर सकती है। और ये इश्क भी बेहद जज्बाती हो सकता है ये जताने वाली फिल्म है `दे दे प्यार दे’। निर्देशक अकिव अली ने इश्क और हंसी-मजाक – दोनों ही पहलुओं को जिस खूबी से एक साथ पिरोया है उसमें किसी तरही की अस्वाभाविकता नहीं है। हां, आशीष और मंजु के बीच राखी बंधवाने वाला दृश्य थोड़ा अजीब है और पारंपरिक भारतीय दर्शकों को पंसद नहीं आएगा। अजय देवगन वाले एकाध दृश्यों में`सिंघम’ की याद दिला दी गई है ताकि बंदे में अभी भी दम है इसका एहसास कराया जा सके।

फिल्म के पहले वाले हिस्से में रकुल प्रीत सिंह तालियां बटोर लेती हैं लेकिन दूसरे वाले हिस्से में दर्शक के दिल को तब्बू वाला चरित्र छूता है। अजय देगवन दोनों ही अंदाज में- यानी एक अधेड़ प्रेमी और पिता की भूमिका में- जमें हैं। एक छोटे सी यानी कैमियो के रोल में जिमी शेरगिल भी प्रभावशाली लगे हैं। उन्होंने भी उस अधेड़ पुरुष का किरदार निभाया है जो दूसरे की पत्नी पर डोरे डाल रहा है। किस पर, इसका जवाब पाने के लिए फिल्म देखिए।