Choriya Choro Se Kam Nahi Hoti Movie Review: ये एक हरियाणवी फिल्म है और लगता है कि `बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ के अभियान के तरह बनाई गई है। ये दीगर बात है कि इसकी घोषणा फिल्म में कहीं नहीं है लेकिन इसका एहसास शुरु से अंत तक होता है। हां फिल्म हरियाणा की भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के मकसद से बनाई गई है ये तो घोषित भी किया गया है, पर ये भी कहना पड़ेगा कि इसमें हरियाणवी भाषा बस छौंक के रूप में है। इतनी की हिंदी वाले भी इसे आसानी से समझ सकते हैं। इससे ज्यादा हरियाणवी तो `दंगल’ में थी। वैसे इसकी कहानी में भी `दंगल’ का प्रभाव दीखता है। हालांकिदंगल से काफी फर्क भी है। खासकर इस मायने में कि दंगल में पिता अपनी बेटियों को पहलवान बनाने में मदद करता है और यहां पिता अपनी बेटी की पढ़ाई की राह में अवरोध खड़ा करता है।
पिता है चौधरी जयदेव सिंह (सतीश कौशिक) जो किसान है। उसकी जमीन पर उसके रिश्तेदारों की नजर है और वे उस हड़प भी लेते हैं। जयदेव चौधरी की दो बेटियां हैं और उसे मलाल है कि उसका कोई छोरा यानी बेटा नहीं है। इस बात को लेकर वो लगातार खीझता रहता है। इसी माहौल में दोनों बेटियां बड़ी होती है। बड़ी बेटी की तो जैसे तैसे शादी हो जाती है लेकिन दूसरी बेटी विनीता (रश्मि सोमवंशी) ये साबित करने में जुट जाती है कि वो छोरों से किसी तरह कम नहीं। और उसकी राह में कई बाधाएं आती हैं। क्या अपने पिता की जमीन छुड़वा पाएगी और खुद जिंदगी मे कुछ बन पाएगी?
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हरियाणा उन राज्यों में है जहां लडकियों को लेकर काफी सामाजिक विद्वेष रहा है। यहां के कई जिलों में लड़कियों या महिलाओं का जनसंख्या मे प्रतिशत पुरुषों से काफी कम है। ऐसे मे इस तरह की फिल्म निश्चित ही एक अलग तरह का सामाजिक संदेश देती है। फिल्म छोटे बजट में बनी है इसलिए कई स्थलों पर कमजोर भी हुई है। फिर भी अपने सामाजिक पक्ष के कारण ये हरियाणा में महिलाओं के लिए एक सकारात्मक माहौल पैदा कर सकती है।